खवाजा अजमेर की ऊची शान
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Social Short Story – Khwaja – Ajmer’s Pride
Photo Credit: www.cepolina.com
हिंदुस्तान में अंग्रेजी राज के एक वायसराए लोर्ड करजन कहा करते थे-
मैंने अपने जीवन में बुजुर्ग ऐसे देखे है जो अपनी मौत के बाद भी लोगो पर इस तरह हुकूमत कर रहे है जैसे कि वे खुद उनके बीच मौजूद है. इनमे से एक खवाजा मोईनुद्दीन चिश्ती है और दूसरे शहंशाह औरंगजेब आलमगीर.
लोर्ड करजन ने इन दोनों बुजुर्गो की शान की हकीकत में सही अनुमान लगाया. लेकिन खवाजा मोईनुद्दीन चिस्ती का मक़ाम व दर्जा तो इतना ऊंचा था कि औरंगजेब आलमगीर ने भी बुजुर्ग व ऊंची शान वाला माना है तथा आपके मजार पर कई बार हाजिरी दी. सुल्तानुल हिंद खवाजा गरीब नवाज के आसताने पर जिन बड़े- बड़े बादशाहों व शासको ने हाजिरी दी यहाँ हम उनमे से कुछ का हल लिख रहे है.
सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने खवाजा के दरबार में हाजरी दी-
एक बार मलवे के शासक और पड़ोस के राजपूत राजाओ ने एकता बनाकर जलालुदीन किल्जी के खिलाफ हो गए.सुल्तान ने भी अल्लाह के भरोसे पर अपनी पूरी ताकत प्रस्तुत की और उनके लड़के से पहले खवाजा गरीब नवाज के आस्ताने पर हाजिर होकर दुआ मांगी.इसके बाद राजपूतो से भीड़ गया. अल्लाह ने उसे जीत प्रदान की और राजपूत सेना को हर का मूह देखना पड़ा. सुल्तान जीत के बाद खवाजा के आस्ताने पर हाजिर हुआ और उसके करीब एक बड़ी ईमारत बनवायी जो आज भी मौजूद है.
जलालुद्दीन अकबर ने खवाजा के दरबार में हाजरी दी-
अकबर के राज्य काल में मुग़ल राज को बड़ी सफलता मिली.लेकिन वह अपने तथा-कथित दीने इलाही और गैर इस्लामी दृष्टी कोण की वजह से बड़ा बदनाम है. लेकिन हम तारीख में पढ़ते है की अकबर को चिस्तिया खानदान के एक बुजुर्ग शेख सलीम चिश्ती से बड़ी लगाव थी.इस लगाव में यकीन उस समय और हो गयी जब इनकी दुआ से सलीम पैदा हुआ.
शहजादा सलीम व मुराद की पैदाइश पर अकबर सोने के सिक्के बांटना हुआ आगरे से अजमेर पैदल पंहुचा और वहा अपनी दौलत से असंख्य लोगों को फ़ायदा पंहुचा. दरगाह के सेवको को हजारो रूपए पेश किए और खानकाह के लिए कई इमारते बनवायी. इसके अलावा एक महान मश्जिद जो आज भी अकबरी मश्जिद कहलाती है बनवायी थी. अजमेर के चारो ओर उसने एक दीवार भी बनवायी थी.
अकबर के बाद जहांगीर भी खवाजा गरीब नवाज के मजार पर हाजिरी देने गया. वह अपने आठवें साल में अजमेर गया ओर एक कोस पहले ही सवारी से उतर कर पैदल रुपया बांटता चलने लगा.उसने मजार पर हाजिरी दी और फातिहा के बाद अपने डेरे पर आकार सरकारी कर्मचारियो को हुकुम दिया की शहर के हर छोटे – बड़े , गरीब मुसाफिर को इनाम देकर खुश किया जाये.
जहांगीर एक बार अजमेर में तीन साल तक ठहरा रहा ओर इस बीच ५ बार खवाजा के मजार पर हाजिर हुआ. एक बार उसने साठ मन की देग तैयार कराई और उसने दरगाह शरीफ को भेटे कर दी. इसमें भोजन बना कर पाच हज़ार गरीबो को अपने सामने बैठाकर भोजन करवाया.
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