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Basant Aayo Re

Published by praveen gola in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag Festival | flower | spring | terrorist

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Basant Aayo Re – Hindi Story on Issue of Terrorism in Valley
Photo credit: takekha from morguefile.com

बसंत ऋतु आने पर सबका मन खुद ~ब~ खुद झूमने लगता है । वैसे तो यहाँ पर बसंत में भी अच्छी-खासी बर्फ जमी रहती है लेकिन उस ठिठरने वाली ठण्ड से तो हम भी  इस ऋतु में निजात पा ही लेते हैं ।अब तक सिर्फ टी .वी में ही देखते और सुनते थे कि शहरों में बसंत ऋतु के आगमन पर  बहुत से उत्सव मनाये जाते हैं परन्तु इस बार पूरे 40 साल बाद हमारी घाटी में भी बसंतोत्सव मनाने का फैसला लिया गया था। सब इतना खुश थे कि पूछिए ही मत । जिसके पास जो कुछ भी था देने को ,वो सब वह उस बसंतोत्सव में लगाने को तैयार था । छोटी-छोटी लडकियां पिछले एक महीने से अपने नृत्ये के अभ्यास में जुटी थी । चारों तरफ ख़ुशी का माहौल था।

मैं और मेरी सात वर्षीय छोटी बहन सबीना भी अपने घर को सारे के सारे पीले फूलों से सजाने के लिए बेताब थे ।कल सुबह बसंतोत्सव जो था ।सबीना तो मारे ख़ुशी के सोना ही नहीं चाहती थी ।उसको तो बस यही लग रहा था जैसे कि सुबह मानो हो ही गयी । वो बेचारी ये क्या जाने की घाटी के बसंतोत्सव में इस साल ऐसा ख़ास क्या है । उसके लिए तो उसके होश संभालने पर ये पहला ही बसंत था जिसे वो हमेशा के लिए शायद अपने ज़हन में अपनी बचपन की स्मृति बनाकर सहेजना चाहती थी ।बड़ी ही मुश्किल से उसे डांटकर मैंने सुलाया नहीं तो कल वो उत्सव में थक जायेगी और खुद भी आँखें बन्द करके बिस्तर पर लेट गयी ।

अगले दिन पौ फटते ही हम दोनों उठ गए और टोकरियों में रखे गेंदे के फूलों की लम्बी-लम्बी लड़ियाँ पिरोने में जुट गए । दोपहर 12 बजे से ही उत्सव हमारे आँगन में ही मनाया जाना था । आस-पड़ोस की सभी छोटी बच्चियाँ  भी अब तक यहाँ पहुँच चुकी थी । सबने मिलकर हरे-हरे पत्तों और पीले फूलों की न जाने कितनी ही लड़ियाँ पिरो कर अंगान में अब तक सज़ा ली थीं । मगर सबीना तो बस बार-बार एक ही सवाल पूछ रही थी कि ,” आपा ,हम बसंतोत्सव में सिर्फ पीले फूल ही क्यों सजाते हैं ?बसंत में लाल रंग के फूल क्यों नहीं सजाए जाते ?”  और मैं बार-बार उसकी बात को टाल देती थी क्योंकि इतने साल बाद हमारी घाटी का रंग जो बदलने जा रहा था ।

दरअसल सबीना को लाल रंग के फूल बहुत अच्छे लगते थे । लाल रंग के फूल वह हर उत्सव में सजाती थी । अब बसंत में एक भी लाल रंग का फूल न देखकर उसका मन उदास सा हो चला था । उसकी उदासी देखकर मैं उसके पास जाकर बोली ,” सबीना …चिंता मत करो । वो लाल रंग के फूल न हम उत्सव के बीच में लगायेंगे क्योंकि अगर अभी हमने उन फूलों को लगा दिया तो यहाँ सब बसंत का नहीं बल्कि तुम्हारे जन्मदिवस का उत्सव समझ लेंगे और फिर हमें उन्हें केक खिलाना पड़ेगा ।” यह सुनकर सबीना खिलखिलाकर हँस पड़ी और फिर बड़ी ही बेचैनी से एक दूसरा प्रश्न करने लगी की ,”अच्छा आपा फिर ये बताओ कि हम बसंतोत्सव के उत्सव में कौन सा गीत गायेंगे और कब ?” सबीना की आवाज़ बहुत ही सुरीली थी और वो इसीलिए इस उत्सव में एक बसंत का गीत गाने वाली थी । वैसे तो उसकी उम्र के हिसाब से उसे गायन प्रतियोगिता में नहीं रखा गया था परन्तु फिर भी उसका हौसला बढाने के लिए उसको गीत की सिर्फ दो पंक्तियाँ ही सुनानी थी ताकि उसे भी इस उत्सव में एक पुरस्कार मिल सके ।

उसके प्रश्न का उत्तर  देते हुए मैंने कहा कि ,” जब धूप खिली होगी चारों ओर इस घाटी में , बर्फ चोटियों पर से हलकी-हलकी पिघल रही होगी , ढम -ढम की आवाज़ से घाटी भी उत्सव में गूँज रही होगी , इन पीले फूलों के बीच तुम्हारे लाल रंग के फूल भी सजे होंगे , सब लोग आपस में मिलकर बसंत ऋतु के आगमन का स्वागत कर रहे होंगे ,मैं और मेरी सखियाँ नृत्य करते-करते मदहोशी में झूम रही होंगी तब तुम अपनी सुरीली आवाज़ में मधुर सा गीत घाटी में गाना ………”बसंत आयो रे …….हमारी घाटी में भी देखो ….बसंत आयो रे “।”  सबीना ने मरी बात को समझते हुए बड़ी तेज़ी से सर हिलाया और खुश होकर मेरे साथ घर में नाश्ता करने चली गयी ।

दोपहर होते ही हम सब नहा-धोकर पीले रंग के वस्त्रों में सजे अपने-अपने घरों से निकल कर आँगन में जमा होने लगे । करीब साड़े 12 बजे हमारी घाटी के मुख्याअतिथि भी पधार गए । सबने हार और फूलों से उनका स्वागत किया और फिर बसंतोत्सव आरंभ किया गया । हम दोनों भी उत्सव को देखने के लिए अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठ गए । अभी सिर्फ पहला नृत्य ही खत्म हो पाया था की अचानक से मानो घाटी में तूफ़ान आ गया । देखते ही देखते चारों तरफ पुलिसकर्मी तैनात हो गए । सभी लोग कानाफूसी करने लगे और चारों तरफ ये खबर बड़ी तेज़ी से फ़ैल गयी कि “मृतक का शरीर” हमें सौंप दिया गया है । ये शरीर उसी आतंकवादी का था जिसे अभी 15 दिन पहले ही शहर के किसी जेल में फाँसी दी गयी थी । इस खबर से एक तो पहले ही सभी संगठन आग-बबूला हो रहे थे और अब शरीर के आने पर तो मानो उनका गुस्सा बेकाबू हो चला था ।

अचानक से न जाने उत्सव में कितनी ही अँधा-धुंध गोलियां एक साथ चल पड़ी । सब लोग तितर-बितर हो बेतहाशा से भागने लगे । मैं भी घायलावस्था में सबीना के साथ एक टूटी हुई झोपड़ी के पीछे दुबक गयी । करीब आधे घंटे के बाद गोलियों की आवाजें आना बंद हुई ।

दोपहर का समय था ….चारों ओर घाटी में धूप खिली हुई थी , बर्फ चोटियों पर से हलकी-हलकी पिघल रही थी , ठांय -ठांय की आवाज़ से घाटी अभी थोड़ी देर पहले ही शांत हुई थी , पीले फूलों के बीच अब लाल खून से रँगे लाल रंग के फूल भी सजे हुए थे  , सब लोग आपस में मिलकर बसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करने अपने-अपने घरों में जाकर दुबक गए थे ,मैं और मेरी सखियाँ घायलवस्था में लड़खड़ाकर अपने घर की तरफ बेहोशी में कदम रख रही थीं , कि तभी सबीना की सुरीली आवाज़ में मधुर सा गीत घाटी में गूँजता हुआ सुनाई पड़ा ………”बसंत आयो रे …….हमारी घाटी में भी देखो ….बसंत आयो रे “।”

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