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Jindgi ko jine ki koshish

Published by RASHMIRANI in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag courage | family | widow

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Hindi Story – Jindgi ko jine ki koshish
Photo credit: imelenchon from morguefile.com

मेरे घर के सामने वाली घर में एक विधवा महिला तुलसी के पौधे में पानी डाल रही थी. उसका नाम अणु है.

जाड़े की सुबह मै बालकनी में चाय की चुश्कियों का आनंद ले रही थी. की मेरी नजरअणु पर पड़ी , यों तो रोजाना  अणु मुझे दिख जाती। जब भी मै उसे देखती मेरे दिल में उसके लिए दया , करुणा, और स्नेह के भाव प्रस्फुटित होते। मेरे घर के सामने वाले घर अणु रहती है.  उस घर की मंझली बहू है. उसके परिवार में सास , देवर , देवरानी और अणु रहती है.

अणु की शादी मनोज से आज से १५ साल पहले हुई थी. अणु संस्कारी और सुशील महिला है. वह अपने घर- परिवार को बड़े सूझ-बुझ से चला रहीं थी. उसके पति की ज़ायदा नहीं कमाते थे। वह प्राइवेट कार्य करता था. दोनों बड़े प्यार से रहते थे. अणु उन दिनों बहुत सुन्दर लगती थी. करीने से पहनी हुई साड़ी क्या जचती थी अणु उसमे. शादी के दो साल बाद नन्ही परी शालिनी की किल्कारिओं से उनका घर- आँगन गूंज उठा. मनोज और अणु को तो लगा जीवन की सबसे अनमोल रत्न उनकी झोली में आ गिरा। शालिनी अपनी माँ जैसी बड़ी-बड़ी आँखो वाली,चेहरे से खेलते घुंघराले बाल ,गोरा चेहरा बहुत प्यारी लगती थी.

वह लगभग ५ साल की रही होगी। एक दिन खेलने के दौरान सीढ़िओ से नीचे गिर गयी. सर पे काफी चोट आई थी. उसके सर से ज्यादा खून गिर जाने कारण ,डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। उस दिन अणु की आँखों से आशुओं की अविरल धार बह रही थी. उसकी गोद सुनी हो गयी थी. उसे लग रहा था , उसकी बेटी को कहीं से लाकर उसे दे दे ,पर ऐसा नामुमकिन था. उदास अणु जिंदगी जी रही थी,कि एक दिन सड़क दुर्घटना में उसके पति की मौत हो गयी. अब तो उस दिन अणु का उस दिन सब -कुछ ख़त्म।

अणु चीख रही थी ,उह उस दिन अपने पति की लाश को अपने से दूर होने नहीं होने देना चाह रही थी. पति को बार- बार उठाने की गुहार लगा रही थी. अणु बोल रही थी. आप मुझसे नाराज हो नहीं बोलोगे ?आस -पास जमी लोगों की भीड़ इस दर्दनाक दृश्य को देख कर सब रो रहे थे कि नियति ने कितना क्रूर मजाक इस महिला के साथ किया है । उस दिन से अणु चेहरे हँसी गायब हो गयी थी ,न खाने होश , न तन पर पड़े कपडे सँभालने की सुध। मानो अणु की पहाड़ जैसी  जिंदगी कैसे कटेगी? अभी तो जिंदगी अणु का और इम्तिहान लेने वाली थी.

समय अपनी गति से चल रहा था. ससुराल वाले लोगो का व्यवहार उसके प्रति कठोर हो गया था ,अब वह घर की नौकरानी रह गयी थी. उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. अलमारी में रखे कपड़ो से उसने साल भर काम चलाया उसके शरीर पर एक ही साड़ी होती ,उसे ही धोती ,उसे ही पहनती.जाड़े के दिनों में तन पर केवल एक ही साड़ी होती.स्वेटर नदारत, किस तरह वह दिन काट रही थी. क्या जाड़े की बर्फीली हवाएं उसके तन पर सुई जैसी नहीं चुभती होगी. पर वो अपना दर्द किस्से कहे?

एक दिन अणु ने देवर- देवरानी से अपने लिए कपड़े लाने  को कहा। तो जबाब में कहा गया की पैसे क्या पेड़ पर उगते है। जब चाहो तोड़ लू और दे दूँ। हमारी खुद की जरूरतें तो पूरी होती नहीं आपकी फरमाइशें कहाँ से पूरी करेंगे ?पैसे चाहिए तो बहार जाओ दो पैसे कमाकर लाओ

वह बहुत पढ़ी तो थी नहीं ,तो उसने बगल के ब्यूटी पार्लर काम करना प्रारम्भ कर दिया. वह सुबह घर के सारे काम खत्म कर अपने कार्य को चली जाती उहाँ से लौटने के बाद घर के सारे  काम करती। लगभग महीने भर की काम के बदले उसे छोटी सी धनराशि मिली। उससे उसने अपने लिए दो सस्ते सलवार- कमीज लाये . उसे ही वह पहनती.

इस तरह वह आज भी जिंदगी की जंग खुद ही लड़ रही है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की उह अपनी जिंदगी की जंग में जरूर जीतेंगी. अक्सर हमलोग जिंदगी में आनेवाली छोटी समस्याओं से घबरा जाते है. , हौशला खो देते है। अणु समाज के सामने एक  मिशाल है. इनसे हमे भी सीख लेनी चाहिए.

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