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GuruParv-2014

Published by praveen gola in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag student | Teacher

This Hindi story highlights the importance of Teachers on Teacher’s Day in which a student described that How a teacher changed His life by imparting Him behaviour knowledge instead of the bookish one.

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Hindi Story – GuruParv-2014
Photo credit: cohdra from morguefile.com

गुरुओं का हमारे जीवन में विशेष महत्व होता है । बिना गुरु के ज्ञान पाना असंभव होता है । जिस प्रकार पशु ज्ञानहीन जीवन जीकर ही इस पृथ्वी से चला जाता है उसी प्रकार अगर हम भी बिना ज्ञान के ही इस मनुष्य योनि को जिएँगे तो एक पशु की भाँति ही इस संसार से चले जाएँगे । इसलिए हम ज्ञानार्जन हेतु विद्यालय में प्रवेश लेते हैं ताकि वहाँ से उत्तम शिक्षा ग्रहण करके हम एक सभ्य मनुष्य का जीवन व्यतीत कर सकें । अपने विद्यार्थी काल में हमें बहुत से शिक्षक मिलते हैं परन्तु सभी शिक्षक हमें शिक्षा से सम्बंधित जानकारियाँ देकर आगे बढ़ा देते हैं । मगर कुछ शिक्षक ऐसे भी होते हैं जो शिक्षा से ज्यादा हमारे व्यवहारिक स्तर को समझते हैं और उसी तरह से हमें जीवन जीने की प्रेरणा भी देते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि अच्छा व्यवहार ही मनुष्य को सभ्य बनाता है ।

मैं एक नटखट बालक होने की वजह से हमेशा कक्षा में डाँट खाता रहता था । आठवीं कक्षा तक आते-आते मेरी आदतें इतनी परिपक्व हो चुकी थीं कि अब मुझे उस डाँट का भी कोई फर्क नहीं पड़ता था । कुल मिलाकर आप कह सकते हैं कि मैं अब एक ढ़ीठ विद्यार्थी की श्रेणी में गिना जाने लगा था जिसकी वजह से धीरे-धीरे मेरा मन पढ़ाई से अब दूर होने लगा था । मैं अपन ध्यान को केंद्रित कर पाने में असमर्थ सा हो रहा था । उसी दौरान मेरी नवीं कक्षा की कक्षा अध्यापिका ,जो हमें सामाजिक ज्ञान पढ़ाती हैं ,मेरे व्यवहार को कक्षा में धीरे-धीरे समझने लगीं । पहले तो मुझे उनके इस व्यवहार पर बहुत क्रोध आया क्योंकि वो बात-बात में मुझे डाँट देती थीं और अक्सर मेरी शिकायत घर पर भेजने लगी थी । फिर एक दिन उन्होंने कक्षा में मुझे दो चाँटे लगाए । मैं फ़ौरन उनके इस व्यवहार की शिकायत अपनी माता से की । मेरी माता ने उन्हें स्कूली छात्रों पर हाथ उठाने पर होने वाली कार्यवाही से उन्हें अवगत कराया और साथ ही भविष्य में ना मारने की हिदायत भी दी । मैं अपनी सफलता पर बहुत खुश हुआ । मगर फिर कुछ दिनों बाद मेरी अध्यापिका ने मेरी माता को स्कूल खत्म होने के बाद मिलने के लिए बुलाया । इस बार फिर से मेरी एक शिकायत के साथ अध्यापिका मेरी माता के सामने खड़ी थी । उन्हें मेरी शिक्षा से परेशानी ना होकर मेरे व्यवहार से परेशानी थी । मैं कक्षा में ना तो खुद ही पढता था और ना ही किसी और को पढ़ने देता था । मेरा मैं तो बस जैसे कहीं और ही गोते लगाता था । अध्यापिका ने मेरी माता को बताया कि वो मुझे विद्यालय के अंतराल में कक्षा में ही बिठाए रखती हैं और मुझे कक्षा से बाहर नहीं जाने देतीं । ऐसा सुनकर मेरी माता जी को बहुत दुःख पहुँचा क्योंकि कोई भी माता ये नहीं चाहेगी कि उसका बच्चा विद्यालय  में एक क़ैदी का सा जीवन व्यतीत करे । खैर मेरी माता के पास अब और कोई चारा था भी नहीं जिसके दम पर वो एक बार फिर से मेरा पक्ष लेतीं इसलिए उन्होंने अपना सर झुकाकर मेरी अध्यापिका के सामने मेरी की हुई गलतियों की माफ़ी माँगी और उन्हें मेरे सुपुर्द करके घर लौट आईं ।

दूसरे ही दिन से मेरी अध्यापिका का मेरे प्रति व्यवहार बदल सा गया । अब उन्होंने अपने ढंग से मुझे बदलने का फैसला किया । वह रोज़ सुबह ज़ीरो पीरियड में मुझे अपने पास वाले बेंच पर बिठाने लगीं और मेरे किताबी ज्ञान पर बल ना देकर मेरे अंदर एक व्यवहारिक ज्ञान का संचार करने लगीं । मुझे भी पता नहीं क्यों अब उनकी बात पर क्रोध सा आना बंद हो गया था और मैं धीरे-धीरे उनकी कही गई बातों को अपने जीवन में उतारने लगा था । अपने अंदर होने वाले इस बदलाव को मैंने तब महसूस किया जब दो महीने बाद एक दिन प्रधानचार्य महोदया ने आकर पूरी कक्षा में मेरे व्यवहार की तारीफ़ की और साथ ही मेरा पढ़ाई के प्रति एक आकर्षण और लगाव का भी सबके सामने उदाहरण दिया । जी हाँ , ये सच है …… मगर पता नहीं कैसे अब मेरा पढ़ाई की ओर ध्यान केंद्रित होने लगा है और मैं अपने व्यवहार में भी एक अजीब सा बदलाव महसूस करने लगा हूँ ।

आज इस गुरुउत्सव के पर्व पर मैं अपनी अध्यापिका को शत-शत नमन करता हूँ और उन सभी अधायापकों से ये गुज़ारिश करता हूँ कि किताबी ज्ञान के साथ-साथ बच्चों के व्यवहारिक ज्ञान को भी समझने की कोशश करें क्योंकि एक गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान को ही विधार्थी सर्वोतम मानता है और उसी पर अमल करने की कोशिश भी करता है ॥

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