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Ek Susanskaari Ladka -Vipin

Published by Ritu Asthana in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag bomb blast | doctor | duty | hospital | SPIXer

This short story became SPIXer (Most popular story) on 06 Dec 2014 and won INR 500

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Hindi Story – Ek Susanskaari Ladka -Vipin
Photo credit: mconnors from morguefile.com

विपिन को छोड़ने के लिए स्टेशन पर उसका पूरा परिवार ,माता -पिता ,छोटी बहन विशू और मित्र भी आये थे। सभी के नेत्र सजल थे। माँ का तो रो -रो कर बुरा हाल था। उनके हृदय का टुकड़ा पहली बार उनसे दूर ,परदेस जा रहा था। विपिन के पास बैठे एक सज्जन ने पूछा ,”भैया क्या विदेश जा रहे हो ? बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हैं तुम्हें छोड़ने के लिए। ” विपिन मुस्कुराकर रह गया।

विपिन का डॉक्टरी में चयन हो गया था। वो बनारस अपने दादा-दादी के पास रहकर ही पढ़ने वाला था। ट्रेन समय पर चल दी। सभी लोग हाथ हिलाते रह गए। विपिन को भी अपने भीतर कुछ रिक्तता का अनुभव हुआ। किन्तु उसने स्वयं को दिलासा दी कि केवल चार साल की ही तो बात है। दादा-दादी भी तो उसे बहुत प्यार करते हैं।

विपिन  का १२ वीं  के पश्चात  ही डॉक्टरी में चयन हो गया था।  उसकी आयु भी अभी १८-१९ साल के बीच ही थी।  माता-पिता के प्यार-दुलार से वो थोड़ा हठी भी हो गया था।  किन्तु मन का वो बड़ा ही दयालु एवं भावुक  था। विपिन एक सुसंस्कारी लड़का था।

दादाजी स्टेशन पर लेने आए। उसने दादाजी के चरण स्पर्श किये,दादाजी ने उसे ह्रदय से लगा लिया। कहा भी गया है कि मूल से अधिक सूद प्यारा होता है। विपिन के पिताजी की नौकरी कानपूर में थी। दादाजी ने सेवानिवृत्ति के बाद भी बनारस नहीं छोड़ा था। यहाँ उनका पैतृक घर था।

घर पहुँचने पर दादाजी ने भी गड़े ही स्नेह से उसका स्वागत किया बोलीं ,”बेटा ! तुम्हारा कमरा साफ़ करा दिया है. उसी में अपना सारा सामान रखो।  हाथ मुँह धोकर आ जाओ फिर कुछ खा लो।  ”

विपिन डॉक्टरी पढ़ने के लिए अत्यंत ही लालायित था। वो अपना सामान लेकर अपने कमरे में गया। नहा धोकर जैसे ही कमरे से बाहर निकला ,किसी चीज से टकराकर ,गिरते-गिरते बचा। चीख निकल गई उसके मुख से। दादाजी तुरंत दौड़कर आए ,बोले “क्या हुआ बेटा ?”

“कुछ नहीं दादाजी, मेरा पॉव इस बैग से टकरा गया था “,विपिन ने उत्तर दिया।

दादी थोड़ा तेजी से बोलीं ,”पहले ही पहले  कहा था कि अपना सारा सामान में जाओ,किन्तु तुम बैग वहीँ छोड़ आए थे। मैंने यहाँ रख दिया। इसलिए तुम गिरते-गिरते बचे।

विपिन उनकी बातों से थोड़ा  डर गया।  दादाजी ने  बात को बदलते हुए कहा ,”चलो-चलो ,थका है बच्चा इसको कुछ खिलाओ-पिलाओ।  विपिन ने सोचा कि ‘संभवतः दादी   किसी बात से चिंतित होंगी ,इसिलए इतनी सख्ती से बात कर रही हैं।  ‘

अलार्म बजने पर भी जब विपिन आँख नहीं खुली तो दादी तेजी से लगभग चीखते हुए आईं ,”अरे विपिन ! उठ जा अब। दादाजी तैयार भी हो गए हैं। आज तुझे बी एच यू. जाना है। इतना बड़ा हो है अभी तक अक्ल नहीं आई है।  और जाने क्या -क्या ?”

विपिन को प्रातःकाल ही इतना कटु स्वर सुनने का अभ्यास नहीं था। माँ तो आज भी बड़े दुलार से उठाती है। उनके मीठे स्वर से ऐसा प्रतीत होता है कि पूरा दिन शुभ हो जाएगा।सारी थकान दूर हो जाती है।  उनके ममता भरे शब्द कानो में रस घोल देते हैं।  तन -मन में जैसे एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता है।मॉ के मधुर शब्दोँ को ध्यान कर विपिन स्नानगृह में चला गया। किन्तु दादी के स्वर की कटुता उसके मन से नहीं जा रही थी। जैसे-तैसे विपिन तैयार होकर दादाजी के साथ बी एच यू गया। उसका मन उचाट था। माँ -पिताजी से बात कर उसका जी हल्का हो गया।

एक दिन सायंकाल को विपिन लैपटॉप पर अपने मित्रों से बात कर रहा था।  तभी दादाजी का तीखा स्वर सुनाई पड़ा ,”विपिन ! तुम्हे दिखाई नहीं दे रहा है? मै इतनी देर से इतना भारी थैला लेकर खड़ा हूँ। तुम  इसे पकड़ कर मेरी  सहायता नहीं  सकते ?”

विपिन हड़बड़ा कर उठा और बोला ,”दादाजी मैंने देखा नहीं था। जब मै अपने मित्रों से बात करता हूँ तो मुझे कुछ दिखाई नहीं पड़ता। लाइए मै  ले लेता हूँ।  ”

तभी दादी का कर्कश स्वर गूंजा ,”कोई आवश्यकता नहीं है।  हम बूढ़ा-बूढी अपना काम  स्वयं  कर सकते हैं।  ”

विपिन को यहाँ का वातावरण बड़ा ही भयावह लगने लगा। जीवन में उसने ऐसा व्यवहार कभी नहीं देखा था। कहीं ये समस्या बड़ी ना हो जाए। क्या करूँ ?माँ -पापा से बात करी  तो वे भी आ जाएंगे। विपिन की कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। कोई सामान्य लड़का होता तो उसी समय अपने पिता को फ़ोन कर हॉस्टल में रहने का आग्रह करता। किन्तु विपिन ने ऐसा नहीं किया। उसका मानना था कि समस्या का समाधान उससे भागने से नहीं अपितु उसकी जड़ तक जाकर उसे सुलझाने से है। कुछ सप्ताह यूँ ही निकल गए। दादा-दादी का व्यवहार पहले  जैसा था। क्षमा करना उनके शब्दकोष में  जैसे था ही नहीं।  छोटी -छोटी गलतियों को अक्सर लोग अनदेखा कर देते हैं पर उन्हें इसका अभ्यास नहीं था।  कोई तो ऐसा कारण था जिसने उन्हें इतना कठोर,कर्कश एवं निर्दयी  बना दिया था।विपिन का कोई मित्र उसके घर नहीं आना चाहता था।  उसने प्रयास किया कि यदि वो वो दादा, दादी की उनके कामों में सहायता करे तो संभवतः वे उससे प्रसन्न हो जाएं।   किन्तु विपिन के सारे प्रयास असफल रहे।  किन्तु उसने साहस न त्यागा।  कभी दादी की रसोईघर में तो कभी दादाजी की सब्जी इत्यादि लाने में।  संभवतः दादा,दादी नरम पड़ना ही नहीं चाहते थे।  उन लोगों ने अपने कठोर नियमों को ही अपना जीवन बना लिया था।विपिन का सदा यही प्रयास रहता कि दादा, दादी उस पर  क्रोधित न हों। वो लगन से अपनी डॉक्टरी की पढाई में लग गया।

एक दिन दादा,दादी ,सांयकालीन समाचार देख रहे थे।  अचानक दादाजी  का भयभीत स्वर गूंजा ,”हाय ये क्या क्या हो गया ?” समाचार में बी.एच  यू  के पास कई बम विस्फोटों की खबर थी।  समाचार में बताया गया  कि  काफी संख्या में लोग घायल हुए हैं।  उस दुर्घटना में कई डॉक्टर भी घायल हो गए हैं।।

दादी ने डर से कांपते हुए कहा ,” सुनिए जी ! विपिन को तत्काल वापस बुला लीजिए ,फ़ोन करिए उसे। उससे कहिए  कि वो घर वापस आ जाए। मै लल्ला (बेटे) को क्या उत्तर दूँगी?शीघ्र करिए। ”

तभी ट्रिन -ट्रिन की ध्वनि से दादाजी फ़ोन उठाने के लिए लपके। उधर विपिन के पिताजी का फ़ोन था। वो उसका हाल जानना चाहते थे,समभवतः उन्होंने भी समाचार देख लिए था। किन्तु दादा -दादी क्या हाल बताएं जब वे स्वयं ही विपिन के हाल से अनभिज्ञ थे। पूरे शहर में गहमागहमी मची हुई थी। ३-४ लगातार बम विस्फोटों से सभी सकते में आ गए थे। दादाजी ,बाहर जाने को तैय्यार हो गए ,किन्तु दादी ने उन्हें जाने नहीं दिया।

“आप फ़ोन करिए,विपिन को वापस बुला लीजिए। किन्तु आप कहीं मत जाइये। यदि आपको कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा?”दादी रोते-रोते दोहरा रही थीं।

रात्रि बढ़ती ही जा रही थी। दादा-दादी ने न तो खाने का एक निवाला ही खाया और न पानी ही उनके गले के नीचे उतर रहा था। कैसे अपने पौत्र ,विपिन को सुरक्षित घर वापस ले आएं ,यही चिंता उन्हें खाए जा रही थी।

तभी विपिन के एक मित्र सुधीर का फ़ोन आया ,”नमस्ते दादाजी ! मै सुधीर बोल रहा हूँ। आपने समाचार तो सुन ही लिया होगा। विपिन ने कहा था कि दादा-दादी को बता देना कि वो सुरक्षित है। ”

दादाजी हकलाते हुए बोले, “बेटा , विपिन। …. विपिन कैसा है? कहाँ है वो? घर क्यों नहीं आया ?”

सुधीर ने उत्तर दिया ,”दादाजी ,मै तो अपने घर आ गया। मैंने उससे भी कहा था कि चल घर चले ,सब चिंतित होंगे उस पर तो मानो परोपकार का भूत सवार है।वो कह रहा था कि इन खून से लथपथ लोगों की जब तक मरहम-पट्टी नहीं हो जाती तब तक मैं घर नहीं जाऊँगा। आप ही उसे समझाइये दादाजी। नमस्कार। ” कहकर उसने फ़ोन काट दिया।

सभी डॉक्टरों की अकस्मात् ड्यूटी लगाई गई थी। कुछ आए , कुछ ने बहाना बना दिया, सोचा बाद में लिखा-पढ़ी में देखा जाएगा। कौन मुसीबत मोल ले। विपिन इतना समझदार,इतना दयालु और इतना कर्तव्यनिष्ठ होगा, दादाजी और दादीजी को ज्ञात ही न था। वे उसे नासमझ,नियमों को न मानने वाला ,नई पीढ़ी का लड़का ही समझते थे। इस पीढ़ी अंतराल के कारण वे कभी उससे सीधे मुंह बात भी नहीं करते थे। किन्तु वो अत्यंत महान निकला। जिस मनुष्य के मन में दया एवं करुणा का अपार सागर समाया हो वो निश्चित ही सम्मान योग्य है। दादा-दादी को स्वयं को कोसने के अतिरिक्त और कोई उपाय न मिला। टिक-टिक ,टिक-टिक ,घड़ी की ध्वनि उनके कानों को रात भर भेदित करती रही।

धीरे-घीरे, रात्रि की कालिमा सूर्य की आभा से छटने लगी। सूर्य तीव्रता से उदित हो रहा था। सारे जगत को एक नए दिन की प्रतीक्षा रहती है। सूर्य अपने प्रकाश ,अपनी आभा से संपूर्ण जगत को नया जीवन दे रहा था। सूर्य मानो मुस्कुराते हुए कह रहा था की मेरी स्वर्णिम आभा किसी एक के लिए नहीं अपितु सारे जगत के कल्याण के लिए है।  दादा-दादी को आज सूर्य के तेज के सामान ही अपने पौत्र विपिन के तेज का भी आभास हो रहा था। दादा-दादी ,विपिन को लेने जाने के लिए तैयार हो गए।

दादाजी बोले, “तुम वृथा ही जा रही हो। मै उसे घर लेकर जल्दी ही आ जाऊंगा। ”

दादी कहाँ मानने वाली थीं बोलीं ,”आज मै केवल अपने पौत्र को ही नहीं बल्कि एक अत्यंत महान व्यक्तित्व के स्वामी को लिवाने जा रही हूँ। कृपा कर मुझे भी जाने दीजिये। ”

दादा-दादी कॉलेज पहुँच गए। वे विपिन के विषय में पूछताछ करने लगे। पुलिस वालों ने पुछा की आप लोग विपिन के कौन हैं ?”बताने पर कि वे उसके दादा-दादी हैं वो उन्हे एक कक्ष में ले गया। पर ये क्या, ये एक बड़ा सा कक्ष था ,जिसमे कई बेड पड़े हुए थे। दादी घबराई ,”यहाँ क्यों ले आए ? मेरे विपिन को चोट तो नहीं लगी ?”

दादाजी बुदबुदाए ,”ये… ये तो अपना विपिन जैसा लग रहा है।” दादाजी के मुख से चीख निकल गई ,”विपि……न !!!!!! विपि……न !!!!!!! ये क्या हो गया तुझे ? तू ठीक तो है?”

“हाँ … । हाँ.…।! दादाजी ! आप लोगों के आशीर्वाद से मुझे कुछ नहीं हुआ है। मैं बिलकुल स्वस्थ हूँ। देखिये। ” विपिन बोला दादी की आँखों से झर-झर आंसू निकने लगे। तभी एक वरिष्ठ डॉक्टर आए और बोले ,”नमस्कार ! ये आपका पौत्र है? मेरे पास शब्द नहीं है, आपके पौत्र की प्रशंसा के लिए। इसके भीतर जो अमूल्य मानव प्रेम मैंने देखा है ,मै उसे शत-शत नमन करता हूँ। रात भर ये लड़का  घायलों की सेवा करता  रहा,जबकि इसके कुछ मित्र घर भी चले गए थे। प्रातःकाल से आवश्यकतानुसार रक्तदान भी कर रहा है। इस अनमोल हीरे को ,इतने सुसंस्कारी बालक को हमें संभाल कर रखना है। इस बच्चे का भविष्य अत्यंत ही उज्ज्वलं होगा। मेरा आशीर्वाद सदा इसके साथ है। अब आप इसे घर ले जाइये।”

दादा-दादी टैक्सी लेकर विपिन को घर ले आए। विपिन तनिक शिथिल सा अनुभव कर रहा था। रात भर जागकर लोगों की सेवा करना और कई बोतल रक्तदान करना काम नहीं है। उसकी देखभाल में ,दादा दादी ऐसे जुटे मानों आज ही कोई नवजात शिशु जन्मा हो।  रात-दिन वे विपिन की दवाई, खाना-पीना इत्यादि में ही संलग्न रहते थे।  विपिन के माता -पिता को सूचित कर दिया गया था की वो ठीक है. विपिन ने उनसे फ़ोन पर बात भी कर ली थी। ऐसे ही चंद दिनों में विपिन सेहतमंद हो गया। घर का बदला हुआ वातावरण देखकर उससे रहा नहीं गया।

एक दिन प्रातः जब सभी लोग चाय पी रहे थे तो विपिन ने पुछा ,” दादी आप लोगों में यकायक इतना  बदलाव कैसे आ गया ?”

दादी मुस्कुराकर बोलीं ,”हाँ ,बेटे ,कभी-कभी हम बड़े अपने अभिमान में नई पीढ़ी को समझ ही नहीं पाते हैं।हमने अपने कठोर नियमों में इस तरह स्वयं को जकड लिया था कि हमें और किसी की कोई अच्छाई भी दिखाई नहीं देती थी।आज तुम्हारे अदम्य साहस और नम्रता ने हमारी आँखें खोल दी हैं। जब अनजान और पराए लोगों के लिए तुम स्वयं का कष्ट भूलकर सेवा कर सकते  हो तो तुम तो हमारे बच्चे ही हो। हम तुम्हे अत्यधिक लाड-प्यार से रखेंगे जिससे कि तुम्हारा आत्मविश्वास और आत्मबल सौ गुना बढे और जीवन मे तुम यशस्वी बनो।” दादी का स्नेह भरा स्वर पुनः गूंजा ,” बेटा कभी अपने मित्रों को घर बुलाना, मै अपने हाथों से खाना बनाकर उन्हेँ खिलाऊँगी। ”

विपिन ने सकपकाकर कहा “दादी ! किन्तु वे सब आपके नियमों से अनजान हैं। कहीं सब अव्यवस्थित न कर दें?”

“कोई बात नहीं। मै बाद में सब व्यवस्थित कर दूँगी। “दादी का कोमल स्वर उभरा।

विपिन तो जैसे निहाल हो गया। आज उसे माँ की कमी नहीं लग रही थी। अगले दिन दादा – दादी आपस में बाते कर रहे थे। दादाजी ,”इस घटना ने हमारे झूठे दम्भ को हिला कर रख दिया है। ”

दादी “सच कह रहे हैं आप। यदि सभी माता-पिता और दादा-दादी  अपने बच्चों को प्यार से सही मार्ग दिखाएँ और उनके कामों में उनका उत्साहवर्धन करें तो जो पीढ़ी अंतराल की कोई समस्या नहीं रह जाएगी। ”

विपिन के अधरों पर एक प्यारी सी मुस्कान थी।

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