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Aaj 15 August Hai

Published by ashwinisingh in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag freedom

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Hindi Social Story – Aaj 15 August Hai

“आज 15 अगस्त है”

 

आज १५ अगस्त है, स्वतंत्रता दिवस !

शुभंकर सुबह ही उठ गया है, ८ बजे तक स्कूल पहुंचना है, वैसे भी स्कूल का यही समय है, पर पता नहीं क्यों उसे लग रहा है की आज उसे देर हो रही है. बाहर नल पर ही उसने हाथ मुंह धोया और स्नान भी कर लिया था. मास्टर जी ने आज साफ़ सुथरी ड्रेस पहन कर आने को कहा था – आसमानी रंग की हाफ शर्ट और खाकी रंग की हाफ पेंट, और आज तो थैला भी नहीं ले जाना था.

“ बेटा नाश्ता कर के जाना, पता नहीं कितनी देर रुकना पड़े.” माँ ने कहा.

“ माँ! उसमे तो अभी देर लगेगी, मैं लेट हो जाऊँगा, आ कर भोजन कर लूँगा न.”

शुभंकर के पिताजी सुबह ही खेतों के लिए निकल गए थे, धान के रोपे का समय था न, आज उसके खेतों में रोपा था. ‘ पिताजी शायद वापस आ कर आजादी का जश्न मनाएंगे.’ शुभंकर ने सोचा.

माँ लकड़ी के चूल्हे पर नाश्ता बना रही थी, बार बार लकड़ी के टुकड़े को आगे पीछे खिसकाती, ताकि आँच सही जगह पर पड़े. पिछले दो तीन दिनों से बारिश हो रही थी, इसलिए लकड़ी भी गीली थी, अनमने ढंग से जल रही थी. ‘नाश्ता शायद वक्त पर नहीं बन पायेगा’ माँ ने सोचा, लेकिन बेटे को बिना कुछ खाए घर से कैसे जाने दे.

“ बेटा, रात के कुछ चावल बचे हैं, कहो तो तुम्हे खिला दूं?” माँ ने पूछा.

“ हाँ माँ” शुभंकर बोला.

शुभंकर रात के चावल खा कर ही स्कूल के लिए निकल गया, स्कूल भी आज कुछ बदला बदला सा लग रहा था, कई जगह रंगाई पुताई हुई थी. जहां झंडोतोलन होना था वहाँ लाल मोरम बिछी हुई थी, फूलों की सजावट थी, एक ओर कनात की घेराबंदी थी वहाँ मेज़ लगी हुई थी, शायद कुछ जलपान की व्यवस्था थी.

“ क्या मेरा स्कूल रोज ऐसा नहीं दिख सकता ?” शुभंकर सोच रहा था. जिस स्कूल में पीने का पानी भी दुर्लभ था वहाँ खाने का इतना इंतज़ाम देख शुभंकर चकित था.

शिक्षक ने बताया की मुख्य अतिथि ९:०० बजे आयेंगे और झंडोतोलन करेंगे. ८:३० बजे से ही सभी बच्चे झंडोतोलन की जगह कतारबद्ध हो कर खड़े हो गए.

मुख्य अतिथि जो की जिलाध्यक्ष थे, समय से आधा घंटा देर से पधारे. पीली बत्ती वाली उनकी गाडी सीधे ध्वजस्तंभ के पास रुकी. प्राचार्य ने उनका स्वागत किया, और ध्वजारोहण के लिए आग्रह किया.

स्कूल के दो कर्मचारी सहयोग के लिए खड़े थे, जिलाध्यक्ष साहब को सिर्फ एक रस्सी को खींचना भर था, बाकी का सारा काम इन दोनों के जिम्मे था.

साहब ने रस्सी खींची पर उसमे लिपटा ध्वज नहीं खुला, दोनों सहायक अब रस्सी को जोर जोर से आगे पीछे इधर उधर करने लगे, आखिर जैसे तैसे ध्वज आधा खुला और उसमे लिपटे पुष्प नीचे की ओर आने लगे, सभी विद्यार्थियों ने तालियाँ बजाई.

जिलाध्यक्ष साहब ने बच्चों को कुछ बातें बतायी, फिर प्राचार्य उन्हें उस ओर ले कर गए जहां खाने की मेज़ लगी हुई थी, दूर से ही पर शुभंकर साफ़ साफ़ देख पा रहा था की सबकी प्लेटों में तरह तरह के व्यंजन थे – मिठाइयां और नमकीन साथ साथ चाय कॉफी की भी व्यवस्था थी.

इधर विद्यालय के दो कर्मचारी छात्र छात्राओं में टॉफी बाँट रहे थे, हरेक के हिस्से दो टॉफी आ रही थी.

लेकिन शुभंकर आधे खुले रस्सी में उलझे हुए ध्वज को ही देखे जा रहा था, शायद राष्ट्रध्वज का आधा ही खुलना, प्रतीकात्मक था.

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