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अंतराल – The Interlude: Hindi Short Story with Moral
Photo credit: hotblack from morguefile.com
मेरा नाम वीर सिंह है . आज मैं आपको उस वाकये के बारे में बताता हूँ जिसने मेरे जीवन को थाम सा लिया था और शायद नई दिशा भी दी.एक ऐसा किस्सा जो मेरे मन के दरवाज़े में बंद होकर भी दस्तक देता रहता है. ज़िन्दगी कैसे एक पल में बदलती है ये मैंने उस दिन जान लिया था
उस दिन……….
वीर सिंह नाम से ऐसे लगता है कि कोई बड़ा काम मेरे द्वारा होने को ही है मगर हकीकत इसके एकदम उलट है. मैं एक साधारण नौकरी पेशा व्यक्ति हूँ.7 सितम्बर सन्न 1995 , सर्दी शुरू हुई थी , मैं इटावा मैं रहता था. प्रातः 8 बजे मैं स्टेशन पंहुचा , मुझे दिल्ली जाना था. आज मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन था, मुझे दिल्ली के हेड ऑफिस से प्रमोत्न का पत्र और साथ ही दिवाली का बोनस लेने के लिए जाना था. आज एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास था मुझे , मानो चेहरा ख़ुशी से दमक रहा हो, आज एक जीते हुआ व्यक्ति जैसे लग रहा था मुझे. ट्रेन शायद कुछ लेट थी, जब पूछ ताश में पता किया तो मालूम चला कि गाडी २ घंटे देरी से आएगी. ख़ुशी के बीच में ये कैसा अंतराल ? खैर मैंने भी इंतज़ार करना शुरू कर दिया. वैसे तो मैं बीते हुए कल और आगे आने वाले कल के झूले में ही झूलता रहता हूँ मगर आज मन अत्यंत प्रस्सन था.
इसी सोच विचार में स्टेशन पर मैं इंतज़ार कर ही रहा था कि अचानक एक हाथ ने मेरे कंधे पे दस्तक दी . मैं पलता एक बूढा आदमी खड़ा था. उसने कहा ” बाबूजी, कुछ पैसे दे.दो, दो दिन से कुछ नहीं खाया, बहुत भूख लगी है”.
मैंने देखा उसकी हालत अंत्यत दयनीय थी. सफ़ेद बिखरे बाल, पुराना मैला कुरता जो ना जाने सालो से न धोया हो, चेहरे पे झुर्रियां जो बीते हुए हर वर्ष कि लकीर समेटे हुए हो, भीगी आँखे जिन्होंने मुझे यकायक बाँध लिया हो. सच में उसकी हालत अत्यंत दयनीय थी. मैंने ऐसे व्यक्ति कभी न देखा था शायद आज तक मुझे किसी भी आभाव का सामना करने को न मिला था. मैंने कुछ साहस जुटाते हुए पुछा
” बाबा, कितने दे दू ? ”
उसने कहा ” बाबूजी जो तुम्हारी इच्छा, मैं कुछ खा लूँगा.”
मैंने मन ही मन सोचा कि १-२ रुपे से क्या होगा ? आज मैं इतना खुश हूँ और इसकी हालत इतनी दयनीय, मैंने उसको २० रुपे दिए और साथ ही सामने खड़े चाय वाले को इशारा किया कि वो उस बूढ़े व्यक्ति को कुछ खाने को दे.
वृद्ध व्यक्ति ने २ बिस्कुट और १ चाय ली और बाकी बचे पैसे उसने सहेज के रख लिए मानो अगले वक़्त का इंतज़ाम पक्का करना चाहता हो.परन्तु अचानक वह नीचे गिर पड़ा. मैं भाग के गया उसको उठाया, और पास की एक बेंच पे उसको लिटा दिया. दूकान से पानी लेकर उसको पानी पिलाया. होश में आने के बाद उसने मुझे धन्यवाद् किया. मुझे पता नहीं क्यूँ वो अचानक बेहोश हो गया था, शायद सच में उसने २-३ दिन से कुछ नहीं खाया था. ना जाने क्यूँ मैंने उससे एक सवाल पुछा और फिर वहां से मेरी जिंदगी बदल गयी.
मैंने पुछा ” बाबा, तुन्हारी ये हालत कैसे हुई ? ”
उसकी नम आखें इसका जवाब देना चाहती रही थी, पर उसने कहा ‘ बाबूजी ,अब कोई है नहीं मेरा इस दुनिया मैं ‘ ये शब्द उसने कमजोरी में कहे थे.
मैंने तापाक से पुछा ‘ क्यूँ ?’ और फिर उसने
अपनी कहानी बताने कि कोशिश की. वह बोला :-
” बाबूजी मैं एक किसान था, खेती करके आपने परिवार का पेट पालता था, मेरा भी एक परिवार था, ३ बेटे और मेरी पत्नी.”
मैंने तुरंत पूछ लिए ‘फिर ऐसे क्या हुआ की तुम्हारी ऐसी हालत हो गयी ? ‘
वोह सकपकाते हुए बोला ” मेरी पत्नी गुज़र गयी बाबु, और मैं अकेला रह गया. उसके बाद बच्चो ने मुझे घर से निकल दिया. मैं आज भी अपनी पत्नी को याद करता हूँ वोही मेरा एक सहारा भी थी. बच्चो से कोई गिला नहीं है मुझे. जो उन्होंने किया वोह हर घर में अलग अलग नाम और वजह से होता है. यह तो हमारी संस्कृति का कटु परन्तु अभिन्न अंग है. अब मैं सारा दिन स्टेशन पे मजदूरी कर के अपना पेट भरता हूँ और बस नाम के लिए जिंदा हूँ.मजदूरी करने, भीख मांगकर कुछ रूखा सूखा खा के गुज़ारा करता हूँ और जिए जा रहा हूँ.”
उसकी बातें सुन कर मैं अवाक रह गया. ऐसा लगा मानो की मैं अपने आने वाले कल के साथ आज ही बैठा हूँ. उसकी कहानी और वेदना से मेरी आँखें नम हो गयी थी. आज पता चला की मैं मन से कितना कोमल हूँ. मैंने अपनी जेब से २०० रुपे निकाले और उसको दिए , ये मैंने अपनी संतुष्टि के लिए किया था.शायद वोह समझ गया था की मैं दुखी हूँ.
उसने मुझसे कहा ” यह तो नियति है बाबु, हम इस से मूह नहीं फेर सकते. इंसान साड़ी जिंदगी दौड़ धुप करता है, पैसा जुटाता है मगर इन सबके बाद भी अकेला ही रह जाते है. मुझे अफ़सोस सिर्फ ये है की जब मेरी पत्नी ने दम तोडा तब मैं उसके पास ना था. उसने मुझे आवाज़ तो दी होगी…..मुझे याद तो किया ही होगा……”
गाडी आने का वक़्त हो गया था. पर ऐसा लगा की आज यहाँ से कहीं ना जाऊ. कितनी अजीब बात है जब मैं स्टेशन आया था तब चेहरा ख़ुशी से दमकता था और अब जब जाने का वक़्त आया तो कदम आगे ही ना बढ़ रहे थे. सिर्फ २ घंटे के अन्तराल ने मेरे जीवन को एक नयी दिशा दे दी थी. मन फ़िलहाल रोने को कर रहा था. मैंने उस वृद्ध से कहा
“अच्छा बाबा चलता हूँ….”
और भावनाओ के आवेग में मैंने उस अनजान को गले से लगा लिया.ऐसा करके शायद मैंने सोच लिया था की अब उसको कोई और दुःख ना होगा. मुझे रोता देख उसने कहा
” रो मत बेटा , बस इतना याद रखना की इस दुनिया मैं हम सब अकेले है और सिर्फ दर्द के रिश्ते से जुड़े है.”
अब मैं वहां से चला और गाडी मैं जाकर बैठ गया. मगर मन में ना जाने कैसे कैसे सवाल उठ रहे थे . शायद आज वाकई मेरी जिंदगी का बड़ा दिन था.
मैं गाडी मैं बैठा सारे रास्ते अपने से पूछता रहा ‘ क्या गाडी का देर से आना और उस वृद्ध से मिलने मात्र एक संयोग था’ ? , ‘ अगर सभी का भविष्य वैसे होगा तोह क्यूँ लोग इतने व्याकुल रहते है ?’ , ‘ क्या आज का मेरा बोनस और प्रमोत्न मुझे वैसे भविष्य से बचा पायेगा.?’ और ना जाने क्या क्या सवाल उठ रहे थे मेरे मनस मैं. हो सकता है की उस वृद्ध ने मुझसे झूठ बोला हो. मगर मैंने उसकी बात को सच मानने का फैसला किया. और अगर उसकी बातें वाकई सच थी तोह जिंदगी अपने आप में एक धोखा है.
मैं नहीं जानता की आज भी वह व्यक्ति जीवित है या नहीं मगर इतना जरूर मान गया हूँ की मेरी गाडी में देरी उस दिन उसको मिलने के लिए ही हुई थी जहाँ मैंने जीवन के एक ऐसे सत्य को देखा दिस से मैं एक दम अनजान था. मैंने उसका नाम नहीं पुछा था क्यूंकि वैसे लोग हमको हर जहाँ मिल जायेगे. मगर उनकी कहानी कितने लोग समझ पाते है आज तक. उस २ घंटे के अन्तराल ने मेरी जिंदगी को ना सिर्फ एक नयी दिशा प्रदान की बल्कि मुझे एक नए पहलु को भी समझाया.
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