सूरज ढलने के साथ ही सारी मशालें जला दी गई थी, और पेहरा दुगुना कर दिया गया । अंधेराा बढते ही महल के आस पास की चहल पहल कम होने लगी , रोज की तरह ‘शत्रुघ्न’ अपने भाले के साथ प्रवेश द्वार पर आ गया था । रात भर मे महल मे कोन आएगा और कोन जाएगा ये निर्णय वो ही लेता था ।
अभी कुछ देर ही हुई थी कि कम्बल ओढे एक व्यक्ति प्रवेश द्वार पर आया
“मुझे शीघ्र राजा से मिलना है” उसने कहा
“राजा से मिलने का ये समय काफी अच्छा है… चुपचाप घर लौट जाओ” शत्रुघ्न ने कहा
“में पडोसी राज्य का व्पापारी “सेठ धरम चंद” हुँ , राजा मुझे अच्छी तरह जानते हैं.. …मुझे राजा से जरुरी काम है”
शत्रुघ्न अपनी जिम्मेदारी जानता था , हालांकि वो सेना मे कुछ महीनों पेहले ही भर्ती हुआ था , पर उसे झुठे और सच्चे की पहचान हो गई थी। लेकिन सेठ के काफी जिद्द करने पर उसने अपने बडे भाई प्रमुख सेनापति “वार्भट” को बुलाना उचित समझा ।
“भाई जी ! ये स्वयं को सेठ धरम चंद बता रहा है और राजा से मिलने की जिद्द कर रहा है”
“में देखता हूँ ” सेनापति ने भारी आवाज़ मे कहा।
सेठ काफी घबराया हुआ था , सेनापति की बलवान छवि को देखकर ओर घबरा गया ।
“क्या तुम सच मे सेठ हो ..???”
“जी सरकार ! राजा मुझे अच्छी तरह जानते हैं ”
सेनापति उस पर विश्वास कर अपने साथ राजा के कक्ष तक ले गया ।
सेनापति राजा के कक्ष मे गया , राजा अपने मखमल के बिस्तर पर बेठा मदिरा पी रहा था ।
“राजन पडोसी राज्य के “धरम चंद सेठ” आपसे मिलने आए है”
“इतनी रात को…?? भेजो उसे अंदर भेजो”
राजा के सामने आते ही सेठ ने कम्बल हटा दी… “प्रणाम महाराज” उसने कहा
“सेठ ! इस तरह रात को छिप कर आने का कोई खास कारण ??”
“जी महाराज ! आज्ञा हो तो क्या हम अकेले मे वार्तालाप कर सकते हैं??”
राजा ने वार्भट को बाहर जाने का इशारा किया । वार्भट राजा का सबसे भरोसेमंद योद्धा था , इसीलिए उसके पिता के बाद उसी को सेनापति बनाया गया , हालाकि एसे मोके बहोत कम ही आते थे जब वार्भट के सामने राजा कोई बात ना करे। लेकिन वार्भटको इसका दुख नहीं था ।
अगले दिन सूरज की पहली किरण के साथ ही राजा ने सेनापति वार्भट को अपने कक्ष मे बुलवाया
“वार्भट तुम्हें एक खास कार्य सोप रहा हूँ, ये बहोत मुश्किल और बहोत जरुरी भी है”
“आपके लिए तो जान भी हाजिर है महाराज” वार्भट ने कहा
राजा मुस्कुराया और वार्भट के कंधे पर हाथ रखा ।
“तुम अपने खास सिपाहियों के साथ दक्षिण की ओर निकल जाओ” राजा ने एक नक्शा वार्भट को थमाते हुए कहा ।
वार्भट ने नक्शे को खोलकर देखा …
“क्षमा करे महाराज, क्या में जान सकता हूँ यहा क्या है..?”
“अपार सोना.. इतना की सारा महल सोने का बना दिया जाए तो भी खत्म ना हो….वार्भट! वहा सोने के पहाड़ है”
“क्या सचमुच महाराज” वार्भट ने आश्चर्य से पुछा
“तम्हे शिघ्र ही सोने की चट्टानों तक पहुचना होगा , इससे पेहले की वो लालची जयचंद वहा पहुंचे …. याद रहे सोने का एक टुकड़ा भी किसी ओर को ना मिले”
वार्भट राजा की मंशा समझ गया था, चाहे ये गलत था या सही पर उसे राजा का आदेश पुरा करना था।
वार्भट ने अपने भरोसेमंद 10 सिपाहियों को तैयार किया, सभी घोडो पर संवार हो कर निकल पडे , महल के प्रवेश द्वार तक आकर वार्भट रुका ,अपने भाई शत्रुघ्न से कहा “अपना खयाल रखना भाई ”
“आप भी भाई जी ” शत्रुघ्न ने कहा
वार्भट मुस्कुराया और घोडे की लगाम खीचि ।
वार्भट अपने छोटे भाई से बहोत प्यार करता था , माता पिता की मृत्यु के बाद उसी ने उसे बडा किया ।
वार्भट कभी नही चाहता था की उसका भाई सेना मे भर्ती हो, क्यो की वो सिर्फ 18 साल का था , लेकिन अपने भाई की जिद्द के आगे उसकी एक ना चली।
वार्भट पुरानी यादो मे खोया 10 सिपाहीयो के साथ लगातार दक्षिण की ओर बढता जा रहा था ।
उन्हे चलते चलते पुरा दिन हो चुका था और आखिर वे अपने राज्य की सीमा पार कर चुके थे ।
अंधेरा बढ़ने के साथ , वार्भट ने एक साफ सुथरी जगह देख रात रुकने का फैसला किया । घोडो को बांधकर , जो खाना वे साथ लाए उसे खाया और वे सो गये ।
सुबह उठते ही वार्भट ने देखा दुर पुर्व से कई सारे सैनिक उनकी तरफ बढ रहे थे। वार्भट ने सभी सिपाहियों को चौकन्ना किया और वे पेडो की आड मे छिप गए ।
“कम से कम 5000 सैनिक होंगे” एक सैनिक ने कहा
” ये जयचंद के सैनिक नहीं लगते” दुसरे ने कहा
“ये भीमसेन की सैना है” वार्भट ने कहा
वार्भट को संदेह हो गया था की सोने के पहाड़ों की खबर सब तरफ फैल रही है, उसे अब जल्द ही वहा पहुंचना था ।
“तुम वापस राज्य लोट जाओ और राजा को इसकी खबर दो” वार्भट ने एक सैनिक से कहा ।
वार्भट और 9 सैनिक आगे बढ़ते गये।
लगातार दो दिन वे नक्शे मे बताए रास्ते पर चलते रहे , आखिर दुर दक्षिण मे सुरज की आखिरी किरणों से जगमगाते सुनहरे पहाड़ दिखाई दिए ,
उनसे निकलती रोशनी ने आस पास के जंगलो, पहाडो को भी सुनहरा बना दिया था । उन मे से हर कोई इसे आखो का भ्रम समझ रहा था , खुद वार्भट भी…
ये नजारा देख उनकी सारी थकान दुर हो गई , वो सभी उस रोशनी की तरफ बढते गए , कुछ आगे बढने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि उस रोशनी की ओर एक ओर सैना बढ रही थीं … दक्षिण का राजा इंद्रसेन 10000 सैनिकों के साथ वहा पेहले ही वहा डेरा जमा चुका था ।
वार्भट काफ़ी निराश हुआ, उसे सोने का एक टुकड़ा भी प्यारा नही था लेकिन उसे डर था की वो पेहली बार शायद राजा का आदेश पुरा ना कर पाए।
इससे पेहले की वो अपना आत्मविश्वास पुन: हासिल कर पाता , उसकी नजर दाई ओर पडी , भीमसैन अपनी सैना के साथ वहा पहुच चुका था , लेकिन उसकी सैना जादा बड़ी हो चुकी थी ।
उनके पास आने पर पता चला की “जयचंद” ने अपनी सैना भीमसेन के साथ शामिल कर दी थी ।
वार्भट की उम्मीद कम होती जा रही थीं, आखिर वहा चार सैनाओ ने डेरा डाल दिया था ।
लेकिन कुछ वार्भट और उसके सैनिक वही छिपे रहे और इंतजार करते रहे
आखिर मध्य राज्य की सैना भी वहा पहुच गई थी , राजा राज 20000 की सैना के साथ वहा आ गया था , इसके साथ वार्भट की चिंता भी दुर हो गई।
सैनापति वार्भट और बाकी के नौ सैनिक स्वयं को झाड़ियों मे छिपते अपने राजा के पास पहुचे…
“महाराज हमे वापस लोट जाना चाहिए” वार्भट ने कहा
“क्यो वार्भट ??”
“बिना खुन खराबे सोना हासिल नही होगा और सिर्फ़ सोने के लिए इतनी जानो को खतरे मे डालना….”
“सिर्फ सोना…?? वार्भट ! ये मेरे सैनिक हैं , में चाहे जो करु” राजा जल्ला उठा
आखिर एक आज्ञाकारी सेनापति अब क्या कह सकता था , वार्भट समझ चुका था कि उसे जल्द ही सेना का नेतृत्व करना है और इसीलिए बिना कुछ कहे वो अपने सैनिकों के पास चला गया ।
20000 की सेना के सामने वो खडा था , वो कुछ कहता उससे पेहले ही उसकी नजर उसके छोटे भाई पर पड़ी ,
“तुम यहा क्या कर रहे हो ??”
“भाई जी मे लडाई लडने आया हूँ, राजा खुद मुझे लेकर आए है”
वार्भट को ये सुन कर बहोत दुख हुआ , अभी शत्रुघ्न एक योद्धा नहीं बना था , छोटी उम्र मे युद्ध लडना राजकीय नियमो के विरुध था । लेकिन ये नियम सिर्फ राजा ही बना सकता था और वो ही तोड सकता था ,ये बात वार्भट अच्छी तरह समझ चुका था।
वार्भट, शत्रुघ्न से कुछ कह पाता उससे पहले ही तिनो राजा “इंद्रसेन, भीमसेन और जयचंद उनकी तरफ आते नजर आए अपने अपने कुछ खास सैनिकों के साथ ।
वार्भट और राजा राज भी उनके पास गए ।
” मध्य राज्य के महान राजा ‘राज हम आपके सामने एक प्रस्ताव लेकर आए हैं” पश्चिमी राजा संग्राम ने कहा
“कैसा प्रस्ताव ?” राजा ने अकडते हुए पूछा
“जिस लिए आप आए हो , जिस लिए हम आए हैं … हमारे सामने पडा ये सोना” भीमसेन ने कहा
“हम जानते हैं की लड़ाई लड कर भी कोई एक ये सोना नहीं ले जा पाएगा ” दक्षिणी राजा इंद्रसेन ने कहा
“तो हमे इसे बराबर हिस्सों मे बाटने का सौदा करना चाहिए” जयचंद ने कहा
“हा हा हा हा हा ! तुम जैसा लालची इस सौदे के लिए कैसे मान गया ” राजा राज ने हसते हुए कहा
“जबान संभाल के बात करे राजा राज” भीमसेन ने कहा “क्या ये सौदा आपको मंजुर है ??”
“बटवारा या युद्ध??” इंद्रसेन ने कहा
“नही !! जब ये सारा सोना में ले जा सकता हू तो ये बटवारा क्यो करु ??” राजा चिल्लाया
“हाहा मुझे नहीं लगता की एक शराबी इतने सोने का वजन उठा कर ठीक से चल पाएगा ” जयचंद ने हसते हुए कहा
राजा राज से पहली बार कोई इस तरह बातकर रहा था , राजा राज के अभिमान को ये स्वीकार नही था , वो अपने स्थान सो खडे हो गए और अपनी तलवार म्यान से निकाल ली
“मे युद्ध करुगा” राजा ने कहा ।
वार्भट वहा खडा यही उम्मीद कर रहा था की राजा सोदा स्वीकार कर ले ये युद्ध टल जाए , लेकिन अब उसे अपनी जान से प्यारे भाई को लडते देखना था ।
वहा बैठे राजाओं मे बहस छिड गई , आखिर रात भर चलती रही , सौदा पुरी तरह समाप्त हो गया । अब उस चमकदार पिली वस्तु के लिए घमासान होगा ।
अगली सुबह युद्ध की घोषणा हो गई , हर युद्ध की तरह राजा राज की सैना का नेतृत्व वार्भट ने संभाल लिया, लेकिन हर बार उसका भाई सेना मे नहीं होता था और इसी बात ने वार्भट को कमजोर बना दिया था ।
उनके सामने एक दुसरे के खुन की प्यासी चार सैनाए खडी थी ।
राजाओ के एक इशारे पर हजारो सैनिक तलवारे लिए दोड पड़े , वार्भट ने अपनी सेना का नेतृत्व किया और इस तरह एक महासंग्राम शुरू हो गया।
सेनापति वार्भट अपनी धारदार तलवार के साथ युद्ध के मैदान मे कुद पडा , उसकी तलवार नरसंहार कर रही थी।
एक एक करके जयचंद और भीमसेन के सैनिक मरने लगे , मध्य राज्य के 20000 सैनिको के पराक्रम के सामने कोई टिक नहीं पा रहा था ।
लेकिन चार सैनाओ से लडना उनके लिए बहोत बड़ी चुनौती थी , मध्य राज्य के भी सैनिक मरने लगे थे …
लेकिन राजा राज को सिर्फ जित से मतलब था , वो सिर्फ और सिर्फ जितना चाहता था ।
लडते समय भी वार्भट की नजर उसके भाई “शत्रुघ्न” पर ही थी क्योंकि ये उसके जिवन का पहला युद्ध था , फिर भी वो एक बहादुर योद्धा की तरह लड रहा था।
राजा राज की बहादुर सैना और वार्भट की ताकत के सामने जयचंद काप उठा था। इससे पहले की भी मारा जाता उसने अपनी सेना को पिछे हटने का आदेश दे दिया, अब उसका साथी भीमसेन भी कहा टिकने वाला था ।
दोनो अपनी अपनी सेना को लेकर भाग खड़े हुए लेकिन दक्षिण की विशाल सैना पर जीत हासिल किए बिना सोने का एक टुकड़ा भी नसीब नहीं होगा।
“इंद्रसेन” कोई कायर राजा नहीं था , वो एक एक कर मध्य राज्य के सैनिकों को काट रहा था।
दक्षिण के सामने मध्य राज्य कमजोर पडने लगा था, कुछ ही ही देर मे दक्षिण के सिपाहियों ने “शत्रुघ्न” को घेर लिया
वार्भट की नजर बेबस शत्रुघ्न पर पड़ी, इससे पहले की वो अपने भाई तक पहुँच पाता दक्षिण के सिपाही के मजबूत वार से “शत्रुघ्न” की गर्दन धड से अलग हो गई ।
वार्भट की तलवार उसके हाथ से फिसल कर गिर पड़ी , उसे अपने भाई के कटे हुए सिर के सिवा कुछ दिखाई नही दे रहा था , मानो उसके लिए युद्ध थम गया हो ।
ना तो उसकी कलाइयों मे फिर से तलवार उठाने की ताकत थी और ना ही उसके घुटनों मे एक भी कदम उठाने की, उसकी आखो के अंगारे आँसु बन कर गिरने लगे थे ।
समय फिर पलट गया अब मध्य राज्य की सैना और पश्चिम के राजा संग्राम ने हाथ मिला लिया अब वे दक्षिण पर भारी पडने लगे थे।
दक्षिण के महाराज “इंद्रसेन” के भी छक्के छुट गए इससे पहले की वो खुद बलि चढ जाता सोने का लालच छोड, वो अब भाग निकला ।
मध्य राज्य के 20000 सैनिको मे से अब कुछ 200 सैनिक ही बचे थे , बाकी सब की कटि हुई लाशे वार्भट के सामने पडी थी । यु तो उसने कई लडाईया लडी लेकिन आज की लडाई मे उसके भाई मरा था ।
शत्रुघ्न का कटा हुआ सिर उसे एहसास दिला रहा था की जित का उत्सव सिर्फ राजा के महल मे होता है , सैनिकों के घर तो सिर्फ मातम ही होता है ।
सारा सोना राजा राज और पश्चिम के राजा संग्राम का था ।
राजा राज हसते हुए राजा संग्राम से गले मिला जैसे उसका मन उत्सव मना रहा हो और मनाएगा ही आखिर उसे अपार सोना और अपना अभिमान वापस मिला था , एक राजा को इससे जादा क्या चाहिए चाहे कितने ही सेनिक क्यो ना मर जाए ।
वार्भट की नजर से राजा पुरी तरह गिर चुका था ।
राजा संग्राम अपने साथ कुछ बेहतरीन पश्चिमी सोने के व्यापारी लाया था , अब उनकी बारी थी सोने मे शुद्धता की मात्रा जाचने की ।
एक व्यापारी राजा संग्राम के पास आया , राजा राज भी वही खडे थे
“महाराज ये तो सोना है ही नहीं”
“क्या बकवास कर रहे हो” राजा राज ने कहा
“राजा मे सच कह रहा हुँ”
“क्या ये चमचमाता सोना तुम्हे नकली लग रहा है” राजा संग्राम ने कहा
“राजन् ये चमचमाता स्वर्ण नही बल्कि स्वर्णमक्ष और ये पहाड स्वर्णमक्ष-गिरी है, ये सोने से भी जादा चमकता है” व्यापारी ने कहा
“स्वर्ण मक्ष , वो क्या होता है ??” राजा राज ने कहा
“क्षमा करे राजन् पर इसका मतलब ‘बेवकुफो का सोना’ होता है”
राजा राज और राजा संग्राम कुछ देर उसकी तरफ देखते रहे और फिर जोर जोर से हसने लगे
उनके हसने की आवाज वार्भट को और चुभ रही थीं , जहा उसका मन अपने भाई की मौत का मातम मना रहा था वही उसका राजा अपनी बेवकुफियो पर हस रहा था ।
वार्भट समझ चुका था की एक राजा कितना मतलबी हो सकता है , ये एक राजा का ही लालच था जो बेवजह युद्ध की आँधी लाया और जो उसके भाई को हमेशा हमेशा के लिए उससे जुदा कर गई ।
वार्भट वहा एक पल भी नहीं रुका और वहा से चला गया , राजाओ और उनकी लडाईयो से बहोत दुर …..
उस दिन के बाद वो कभी मध्य राज्य मे दिखाई नही दिया ।
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