Had already made a mistake and to correct the mistake that was going to make another mistake. But a voice stopped me from making that mistake again.Read Hindi story about inner voice,
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Hindi Moral Story – Antaratma ki Aawaj
Photo credit: rajeshkrishnan from morguefile.com
जिंदगी में हम सभी अक्सर जल्द सफ़लता हासिल करने या बिन मेहनत सबकुछ जल्द पाने के चक्कर में शोर्ट कट रास्ता अपनाने के फ़िराक में रहते हैं लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि सफ़लता कभी शोर्ट कट से नही बल्कि कड़ी मेहनत और ईमानदारी से मिलती हैं. वैसे तो मैं पढ़ाई में अच्छी थी लेकिन मुझे रिसर्च एंड स्टैटिक्स के पेपर से बेहद डर लगता था इसलिए पेपर काफी नजदीक होने पर मैं काफी डरी हुई थी. नीरज भैया यूँ तो हमारे पारिवारिक मित्र थे पर साथ ही वो मेरी यूनिवर्सिटी में भी कार्यरत थे इसलिए मेरी हरसंभव मदद करने हेतु हमेशा तत्पर रहते. उसी दौरान नीरज भैया का फ़ोन आया.
“हेलो नीरा ! कल गोविन्द भैया आ रहे हैं. इस बार रिसर्च का पेपर उन्होंने ही बनाया हैं और कल तुम्हारे घर भी आयेंगे. पेपर कॉपी कर लेना बस तुम्हारा काम हो जायेगा. ”
(खुश होते हुए) ” अरे वाह भैया ! इस बार मुझे तो 100 परसेंट मार्क्स मिलने वाले हैं तब तो ! थैंक यू सो मच भैया ! बाय ”
“बाय ”
मेरी ख़ुशी उस वक़्त चरम सीमा पर थी और जो डर था वो काफी हद तक जा चुका था और इसी चक्कर में जो किताब पढ़ भी रही थी उसे उसी समय बंद कर टेबल पर पटक कर बेपरवाह सी टीवी देखने में मस्त हो गई. उस वक़्त लालच ने मन में घर कर लिया था कि ” अगर मुफ्त में कोई चीज मिल रही हो तो एक्स्ट्रा मेहनत कौन करना चाहेगा और जब पेपर हाथ में आएगा तब पढ़ लेंगे ‘ वाले ख्याल में मैं भूल गई कि परसों मेरा पेपर हैं और मुझे अभी केवल अपनी पढ़ाई पे ध्यान देना चाहिए. पूरा दिन यूँ ही बेफिक्री में निकल गया और दूसरे दिन गोविन्द भैया पेपर ले कर आये. मैंने फटाफट पेपर कॉपी किया और भैया को बहुत सारा धन्यवाद बोला. उनके जाने के बाद मैंने सिर्फ उन्ही प्रश्नों की तैयारी की और अगले दिन परीक्षा देने गई. परीक्षा हॉल के बाहर बार बार किताब झांकते हुए बच्चे किसी बेवकूफ़ से कम नही लग रहे थे उन्हें देख कर मैं मंद मंद मुश्कुरा रही थी. उस वक़्त इतनी ज्यादा अतिउत्साहित थी जैसे इस बार मैं ही टॉप करने वाली हूँ.
परीक्षा शुरु होने की पहली घंटी लग चुकी थी और हम सब अपने अपने रोल नंबर के हिसाब से अपनी सीट ढूंढकर बैठ गए. बैठते ही सर पेपर और कॉपी वितरित करने लगे. जब पेपर मेरे पास आया तो उसे देखते ही मेरे तो होश ही उड़ गये. ‘अरे ये क्या ! ये वो पेपर नही था जिसकी मैं तैयारी कर के आयी थी. ‘ मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई और आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया. कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ और क्या लिखूं. परीक्षा विभाग ने पूरा प्रश्न पत्र ही बदल दिया था. आधे घंटे तक सुन्न रहने के बाद खुद को सँभालने की कोशिश की और प्रश्नों पर गौर किया तो उसमे एक दो वही प्रश्न थे जिन्हें बीच में ही पढ़ना बंद कर दिया था. किसी तरह पेपर करने के बाद बाहर आयी. उस वक्त मैं बहुत ज्यादा सदमे में थी क्योंकि मेरे साथ धोखा हुआ था और मेरा पूरा पेपर बिगड़ चुका था.
” हेय नीरा ! सुनो तो तुम्हारा पेपर कैसा हुआ ? ”
कंचन ने पीछे से आवाज दी और रुक कर मैंने बोझिल स्वर में बोला ,
” यारर…मत पूँछों पेपर बहुत कठिन आया था इसलिए बिगड़ गया और तुम्हारा कैसा हुआ ? ”
“हा ! थोड़ा कठिन था लेकिन ठीक गया. पास तो हो ही जायेंगे और वैसे भी मुझे कौन सा टॉप करना हैं. “(हँसते हुए)
मैंने भी उसकी बात पर बेमन सा मुश्कुरा दिया और अकेले रहना चाहती थी इसलिए उसे जल्दी बाय बोल कर घर की ओर निकल गई. घर आते ही सब ने पूंछा पेपर के बारे में क्योंकि सबको यकीन था कि पेपर बहुत ज्यादा अच्छा जायेगा लेकिन सब उसके विपरीत हो गया था. मेरा उतरा मुंह देख कर माँ तो समझ गई और पूंछने लगी,
” पेपर अच्छा नही हुआ क्या? क्या हुआ ? कुछ तो बोलो. ”
” हा माँ ! पूरा पेपर ही खराब हो गया क्योंकि वो प्रश्न ही नही आये जो भैया बना कर लाये थे.”
और इतना बोलते ही मैं फूट फूट कर रोने लग गई. मेरी हालत देख कर माँ को कुछ और पूंछना ठीक नही लगा और मुझे गले लगा कर समझाने लगी.
” कोई बात नही बेटा ! पेपर कभी कभी बिगड़ जाता हैं और इसमें इतना रोने वाली क्या बात हैं अगली बार खूब सारी मेहनत करके देना बढ़िया पेपर जायेगा. ठीक हैं अब रोना बंद करो जल्दी से. ”
ऐसा पहली बार हुआ था कि मेरा पेपर ख़राब हुआ था इसलिए उदास और दुखी रहने लगी. परीक्षा ख़त्म होने के बाद इस बार कही भी घूमने नही गई.
परीक्षा ख़त्म होने के बाद सारे विभाग कॉपियां जांचने दूसरे विश्वविद्यालय भेजा करते थे. एक दिन नीरज भैया जल्दी में भागते हुए मेरे घर आये.
” नीरा ! नीरा ! जल्दी बोलो तुम्हे रिसर्च का पेपर दुबारा से लिखना हैं या नही ”
” भैया ! मेरी कुछ समझ में नही आ रहा हैं आप क्या बोल रहे हैं ? ”
” देखो नीरा ! तुम्हारे घर के बाहर जो वैन खड़ी हैं उसमें तुम्हारे उसी विषय की कॉपियां रखी हुई हैं जो बिगड़ गया था. तुम्हारे पास एक मौका हैं पेपर सुधारने का और वक़्त बहुत कम हैं जो भी करना हैं जल्दी करो. बोलो तो तुम्हारी कॉपी अंदर ले कर आऊ या तुम खुद ले आओगी? तुम बस लिख लो जल्दी से ! ”
यह एक सुनहरा मौका था जो मेरे पास खुद चल कर आया था और उत्साह में आकर मैं जल्दी से उठ कर गेट के पास आ भी गई लेकिन अचानक मेरे कदम वही पर ठिठक गये. मेरे और उस कॉपी के बीच महज दो कदम के फ़ासले के बीच कोई दीवार बनकर आ खड़ा हुआ था जो मुझे ऐसा करने से रोक रहा था. मेरी अंतरात्मा ! जो चीख चीख कर मुझे बार बार समझा रही थी और जो मेरे गलत पड़ते कदमों को रोक रही थी. मेरे अंदर एक अंतर्द्वंद सा चल रहा था. मन कुछ कह रहा था और आत्मा कुछ और. अचानक पीछे मुड़ी और तेज क़दमों से वापिस अंदर आ गई. सब मुझे आश्चर्य से देखने लगे.
” क्या हुआ नीरा ? वापिस क्यों आ गई? तुम्हे पास होना हैं न ! तो जाओ ले कर आओ. ज्यादा समय नही हैं अपने पास.”
“नही भैया ! मुझसे ये नही होगा. मुझे पास होना तो हैं किन्तु इस तरह चीटिंग कर के नही. मैं दुबारा दुगनी मेहनत कर बैक पेपर दे सकती हूँ लेकिन ऐसे गलत काम कर के मैं अपनी नज़रों में नही गिरना चाहती. ठीक हैं ऐसे करने से मैं पास हो तो जाउंगी पर मन का सुकून और आत्मविस्वास दोनों कहाँ से लाऊंगी जो मुझे मेरी मेहनत से मिलेंगे…आई ऍम सॉरी भैया !”
अचानक सब गुस्से में मुझपर बरस पड़े और मुझे बार बार प्रेरित करते रहे कि मैं दुबारा अपनी ग़लती सुधारुं. लेकिन एक गलती सुधारने के लिए दूसरी ग़लती ! वो मैं कैसे कर सकती थी भला ! इसलिए अंत तक अपनी बात पर अडिग रही. सब मुझसे नाराज़ जरुर हो गए पर मेरे अंदर जो एक शोर एक अंतर्द्वंद था वो अब ख़त्म हो चुका था. इस में जीत अंतरात्मा की हुई थी और मुझे मेरे अंदर एक असीम शान्ति का एहसास हो रहा था.
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