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Delay In Court – Kuchery Is No Less Than Pollution

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Article | Social and Moral with tag court | pollution

Delay In Court Is No Less Than Pollution: People talk about pollution i.e. Air Pollution, Water Pollution,Sound Pollution etc but the writer views abnormal delay in court as Pollution also

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Hindi Article – Delay In Court – Kuchery Is No Less Than Pollution
Photo credit: blary54 from morguefile.com

प्रदुषण से आज का समाज कितना ग्रस्त एवं त्रस्त है यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है. कल कारखाने खुले – सोचा देश का आर्थिक विकास होगा , लेकिन कभी यह नहीं सोचा गया कि इनसे जो धुएं निकलेंगे , इनसे जो मल – मूत्र ( garbage and chemical liquid ) जो निकलेंगे – वे कहाँ जायेंगे ? वायु एवं जल प्रदुषण होगा – इसके बारे में क्या हमने कभी सोचा ? प्रदुषण वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक बड़ी समस्या का रूप ले लिया है. हम कहीं भी , कभी भी , किसी सदर्भ में प्रदुषण शब्द का प्रयोग करने से नहीं हिचकते.

बड़े – बुजुर्गों का कहना है कि दुश्मन को भी दो चक्कर न दे भगवान ! एक : कोर्ट – कचहरी का चक्कर दो : हॉस्पिटल का चक्कर ये दोनों चक्कर सहोदर भाई हैं , एक ही चट्टे – बट्टे के बने हैं , कोई किसी से कम नहीं ! वो कहते हैं न : जिनके पाँव न हो बवाई , वो क्या जाने पीर पराई. यदि यह कहे कि आप को कभी इन चक्करों का पाला नहीं पड़ा है तो आप , सच मानिए , दुनिया के सबसे खुशनशीब आदमी हैं . तो मैं कह रहा था कोर्ट – कचहरी में विलम्ब प्रदुषण. विलम्ब के पीछे खून – चुसुवा का हाथ रहता है. उसी की भूमिका रहती है. इसे शुद्ध हिन्दी भाषा में शोषक कहते है, क्योंकि ये आपका हर तरह से शोषण करने के लिए जाल बिछाए रहते हैं

पहले आप को दलाल मिलता है, जो आप के काम को करने का दावा करता है. फिर मुंशी – मुख़्तार जो आप की बातों को बड़े ध्यान से सुनता है और आप के काम को कम से कम खर्च और कम से कम दिनों में करने का आश्वासन देता है. फिर किसी वकील से मिलवाता है. वकील साहेब आप के केस ( फरियाद ) को ऐसे सुनता है जैसे ‘अल्लिबाबा चालिस चोर’ की कहानी सुन रहा हो. पूरे ध्यान से सुनता है और कहता है थोड़ी मुस्किल है , लेकिन पैसा खर्च करने से सबकुछ आपके फेवर में होगा . एक हज़ार अभी , फिर जैसा होगा बता दिया जाएगा. चिंता की कोई बात नहीं है. हम हैं न !

दूसरी बार गये तो टेबुल – टेबुल का चक्कर मुंशी लगाते जाता है और हर काम के लिए आपकी जेब खाली करता जाता है . एक निश्चित जगह पर आप को बैठाकर दूसरे काम में लग जाता है. . तीन – चार घंटे इन्तजार करने के बाद आप से उस दिन की फीस – मुंशी की और वकील की – वसूल ली जाती है – बड़े ही प्यार से जैसे आप के साथ उनका खून का रिश्ता हो – आप को बहुत दिनों से पहचानता हो और आप के ऊपर रहम कर रहा हो. एक चुटका पकड़ा दिया जाता है आप को और कह दिया जाता है कि अगली बार फलना महीना , फलना तारीख , फलना दिन को आपको फलना वक़्त आपको आना है, अगली तारीख पडी है , जरूर से हाजिर होना है नहीं तो एक तरफ़ा … समझे ?

तारीख पर तारीख पड़ते जाना है , आप की नयी चप्पल घीस जानी है फिर भी फैसला नहीं होना है. आज यह वजह तो कल वह वजह. एक तो फेमली कोर्ट में गोद का बच्चा जवान हो जाता है , लेकिन फैसला नहीं होता है . इसके बीच प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कितने तरह के खर्च करने पड़ते हैं , यह हर भुक्त भोगी बता सकता है. किसी भी केस या मुकदमे के फैसले की समय सीमा निश्चित नहीं है. खर्च और वक़्त क्या लगेगा – निश्चित नहीं है , आप पीसते रहिये कोई देखनेवाला नहीं – आप के कष्ट को कोई सुननेवाला नहीं . पार्टीशन सूट का केस है तो कहना ही क्या ? कई पुस्त लग जायेंगे लड़ते – लड़ते फिर भी फैसला आएगा कि नहीं कोई बता नहीं सकता. कोर्ट – कचहरी का मामला , कोई साधारण बात नहीं, जरा सी चूक या भूल हवालात की हवा खिला सकता है आपको – ऐसे डरानेवाले दलाल, मुंशी , मुख्तार , वकील आप को कदम – कदम पर मिलते रहेंगे .

डर गये , समझो मर गये. खून – चुसवा और ज्यादा खून चूसेगा सो अलग ! आप वन के गीदड़ हैं , भागकर कहाँ जा सकते , फिर तो लौट के यहीं आना है आपको . वन के गीदड़ जहियें किधर – आपने यह कहावत अवश्य सुनी होगी. अब सभी कोर्ट – कचहरी में कमोवेस एक ही हालत है और दिनानूदिन हालत बद से बदतर होता जा रही है. यही है कोर्ट – कचहरी का विलम्ब प्रदुषण . इसे हम सब को मिल कर सोचना चाहिए कि इससे कैसे छुटकारा पाया जाय. सरकार एवं सम्बंधित न्यायालय का भी दायित्व बन जाता है कि जनता की शिकायत को सुने और वक़्त पर यथोचित न्याय दिलायें.

हमारा यह कहने का अभिप्राय यह नहीं है कि सभी मामलों में विलम्ब होता है , कुच्छेक में फैसला शीघ्र भी हो जाता है , लेकिन इनकी संख्या नगण्य है. वाद , विवाद , जुर्म की प्रकृति एवं स्वभाव के अनुसार फैसले के लिए समय – सीमा निर्धारित होनी चाहिए. इस दिशा में फास्ट – ट्रेक कोर्ट की व्यवथा एक प्रशंसनीय कदम है. सरकार के सभी सम्बंधित अंग एवं विभाग और समाज के सभी वर्गों एवं श्रेणी को इस समस्या का कोई स्थाई हल निकालना चाहिए ताकि वादी, प्रतिवादी और आरोपी को एक समय – सीमा के अंतर्गत न्याय मिल सके. अनुचित बिलम्ब एक ऐसी कोढ़ है जिसे सब को मिलकर मिटाना होगा.

प्रिय पाठकगण,
इस दिशा में आप का भी सहयोग अपेक्षित है |
नोट : शब्द कचहरी का अंग्रजी में ‘Kuchery ’ के रूप में किया गया है |

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दुर्गा प्रसाद ,  धनबाद , एक सेप्टेम्बर २०१३ दिन : सोमबार |
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