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Khoya Khoya Chand

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag Moon | Rain | romance | song | terrace

खोया – खोया चाँद , खुला आसमान … !(Khoya Khoya Chand): A romantic meeting with her when everyone else in her family went to a marriage leaving both of us alone.

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Hindi Romantic Story – Khoya Khoya Chand…!
Photo credit: xololounge from morguefile.com

उस दिन तुम्हारे किसी सगे – सम्बन्धियों के यहाँ शादी थी. तुमने बताया था कि सभी लोग दो दिनों के लिए रांची चले जाएंगे , लेकिन यह बात मेरी मेमोरी में नहीं थी . रोज की भांति मैं बाज़ार निकला . मन में तुम्हारी स्मृति कौंध गयी . फिर क्या था एबाउट टर्न हो गया. सोचा हो सकता है कोई बहाना बनाकर तुम घर पर रूक गयी हो. मेरा अंदाज सही निकला. मैं जब तुम्हारे घर में प्रवेश किया तो तुम बाल संवारते दर्पण के सामने खडी मिल गयी. मैं चितचोर की तरह आहिस्ते – आहिस्ते पग बढाता हुआ तुम्हारे करीब पहुँच गया . मैं तुम्हें पकड़ने ही वाला था कि तुमने यू टर्न ले लिया. शायद तुमने मुझे दर्पण में देख लिया था. हम एक दूसरे के बिलकुल करीब थे – आमने – सामने . मैंने तुम्हारे उलझे बालों को छेड़ते हुए कहा था , “ आज तुम …

आप का भ्रम है , और कुछ नहीं . मैं रोज एक ही तरह की लगती हूँ. मेरे में कोई बदलाव नहीं है. मैं जैसी हूँ , वैसी हूँ .

तुमने तो विषय की धारा को ही मोड़ दिया .

मतलब ?

मतलब मैं प्यार व मोहब्बत की बात करना चाहता था और तुमने …

आज मैं अकेली हूँ . मैं बिलकुल इस विषय में बात नहीं करना चाहती. कोई दूसरा टोपिक हो तो चलेगा .

तुम गयी क्यों नहीं ?

जाती तो आप से अकेले में मुलाक़ात कैसे होती ?

आदतन मैंने तुम्हारे हाथ पकड़ लिए थे और पास ही सोफे में बैठा लिया था . तुम झट उठ खडी हो गयी थी.

चाय बनाकर लाती हूँ . साथ – साथ पीयेंगे और ढेर सारी बातें करेंगे.

तुम निर्मोहिनी की तरह चली गयी थी. चाय बनाकर ले आयी और पास ही बैठकर हम पीने लगे .

मेरा मूड ऑफ़ था . तुम्हें इस बात का भान था. तुम सोच रही थी कि अकेले पाकर मैं तुम्हें बाहों में भींच लूँगा या कोई अशोभनीय हरकत कर बैठूँगा . लेकिन मेरे मन में ऐसी कोई बात नहीं थी . तुम मेरे पास थी , लेकिन न जाने क्यूँ मैं अकेलापन महसूस कर रहा था. एक दार्शनिक की तरह गंभीर चिंतन में निमग्न था . तुमने मेरे बालों को सहलाते हुए कहा था , “ क्यों इतना ज्यादा सोचते हैं , सेहत पर इसका बूरा प्रभाव पड़ता है. ’’

मेरे दिल व दिमाग पर बोझ बढ़ता जा रहा है जैसे – जैसे दिन बीतते जा रहे हैं .

तुम मुझे उस अजनवी दुनिया में मत ले चलो जहाँ से मेरा लौटना नामुमकिन हो जाय. तुम आज हो या कल छोड़ कर दूर , बहुत दूर चली जाओगी और छोड़ जाओगी आंसुओं का शैलाब जिसमें मैं ताजिंदगी डूबता – उतराता रहूँगा – न खुलकर हंस पाऊंगा न ही रो पाउँगा . जब जिन्दगी के कडुए सच से रूबरू होगी तब मेरी बातें तुझे समझ में आयेगी.

तुम फफक – फफक कर रो पडी थी और मेरे हाथों को पकड़कर बोली थी , “ ऐसी बातों को याद दिलाकर आप मुझे कबतक रुलाते रहेंगे ? मैं कोई बच्ची नहीं हूँ , बड़ी हो गयी हूँ और सबकुछ समझती हूँ . लेकिन मैं मजबूर हो जाती हूँ कि …

मैंने तुम्हारे मुँह पर हाथ रख दिया था . मुझसे रहा नहीं गया . मैंने कहा :

आँसुओं को बहने मत दो , संजो कर रखो , वक़्त बेवक्त काम आयेंगे.

वह मेरा कहने का तात्पर्य समझ गयी .

मुँह – हाथ धोकर आओ . हम छत पर चलते हैं .

वह गयी और शीघ्र लौट आयी . चेहरा फूल सा खिला हुआ था .

हम छत पर जब गये तो आसमान में चाँद निकला हुआ था . कहीं – कहीं बादलों का झुण्ड बेताब था – बरसने के लिए . वेदर में शीतलता थी. हवाएं इतनी मादक थी कि हम अपने आप को नियंत्रित नहीं कर सके . एक दूसरे में इतने खो गये कि हमें अपने अस्तित्व का भी ज्ञान न रहा . मैंने ही चुप्पी तोड़ी उसकी मखमली मुखारविंद को सहलाकर और मोहम्मद रफ़ी का लोकप्रिय गीत गाकर :

खोया – खोया चाँद , खुला आसमान ,
आँखों में सारी रात जायेगी ,
तुमको भी कैसे नींद आयेगी ?

उसका यह पसंदीदा गाना है. वह उठकर बैठ गयी और बोली :

आप सुसुप्त चेतना को भी झकझोर देते हैं .
आज जाना प्यार की , जादूगरी क्या चीज है,
इश्क कीजिये फिर समझिये ,
जिन्दगी क्या चीज है.
आप से मोहब्बत करके मैंने क्या नहीं पाया !

और आपसे मोहब्बत करके मैंने क्या – क्या न खोया . इतना सुनना था की वह खिलखिलाकर हंस पडी . मैं भी अपने को रोक नहीं सका . मैंने भी हंसी – खुशी में उसका साथ दिया . वह आज काफी प्रसन्न दीख रही थी. मैं उसके नाजुक कपोलों को अपनी हथेलियों में समेट लेना चाहता था , पर वो सतर्क थी . वह हट गयी. बोली :

आप की दिलकश जादूगरी मेरे रोम – रोम में समाई हुयी है. आप की एक याद – क्षणिक याद ही मेरे लिए प्रयाप्त है . मैं कहीं भी रहती हूँ – दौड़ी चली आती हूँ .

हम प्रकृति के हाथों – परिस्थितियों के हाथों बीके हुए हैं . देखो , मौसम का मिजाज बदला हुआ है. वो भी नहीं चाहता कि …

तभी बिजली चमकी और हवाएं तेज चलने लगी .

और ?

और बेरहम वर्षा की बूंदों ने हमें आगाह कर दिया – वक़्त रहते हौश में आ जाओ , इतना सराबोर होना ठीक नहीं . हम अमूल्य गीत की पंक्तियाँ गुनगुनाते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर गये :

खोया – खोया चाँद , खुला आसमान ,
आँखों में सारी रात जायेगी ,
तुमको भी कैसे नींद आयेगी …|

 

लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : १४ मई २०१३ , दिन : मंगलवार |
***

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