Pehle Pyaar Ki Aas-
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Hindi Love Story – Pehle Pyaar Ki Aas
Photo credit: clarita from morguefile.com
किसी भी काम में उसका मन नहीं लग रहा था। ये अचानक एक नया सा उल्लास, एक नई सी कैसी भावना जाग उठी थी मन में। न खाने का मन होता था और न किसी से बात करने का। यूँ लगता था कि हर समय उसी मनमोहक छवि की स्मृति में खोई रहे । प्रीती की आजकल ऐसी ही स्थिति थी। १२वीं की छुट्टियों में वो अपनी बुआ के घर रहने आई थी।
प्रीती एक दिन सुबह जब किसी काम से घर के बाहर जा रही थी तभी तेजी से कोई लड़का उसके चचेरे भाई, रवि को पुकारता हुआ भीतर आ रहा था। दोनो आपस में टकराकर गिर गए। प्रीती के अधगीले रेशम से बाल खुल गए और उसके माथे पर बिखर गए। उसने धीरे से अपने भीगे बालों को पीछे किया किन्तु हठी बाल भी कहाँ मानने वाले थे। वे बार-बार उसके चाँद जैसे मस्तक पर लहरा जाते थे। उसका चाँद सा मुख देखकर, प्रियम चकित रह गया। काले-काले बालों के बीच में उसका गोरा मुखमंडल ऐसे प्रतीत हो रहा था कि मानो बादलों के पीछे से चाँद झाँक रहा हो। और उस पर नारंगी सलवार कमीज में वो एक अप्सरा सी लग रही थी। कानों में सुनहरे रंग की बालियां बार-बार उसके गालों को चूम जाती थीं।और हिरणी जैसी उसको आँखे प्रियम पर ही टिक कर रह गईं। इतनी प्यारी लड़की तो उसने आज तक नहीं देखी थी। प्रियम मंत्रमुग्ध सा उसे देखता ही रह गया। पहली बार कोई लड़की उसके अंतर्मन तक को छू गई थी।
तभी रवि की आवाज से दोनों हड़बड़ाकर उठ गए। प्रियम ,” माफ़ कीजिये मेरी गलती से आप गिर गईं। मै शर्मिंदा हूँ, क्षमा करना। ” प्रीती को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। ये उसका ह्रदय आज पहली बार इतनी तेजी से क्यों धड़क रहा था। उसकी साँसे मानो उसके बस में नहीं थी।
जब रवि ने उसे हिलाया तो उसकी तन्द्रा टूटी, ” प्रीती !!!!! प्रीती !!! कहाँ खो गईं तुम ?”
प्रीती घबराकर अपना दुपट्टा सँभालते हुए शरमाकर भाग गई। फिर तो कई बार वो आया पर कोई बात नहीं हो पाई। दोनों ही एक दूसरे को निहार कर ही प्रसन्न हो जाते थे।
कुछ दिनों के बाद प्रीती अपने घर वापस आ गई। किन्तु वो प्रियम को अपने ह्रदय से कभी न निकाल सकी। पता नहीं वो क्या सोचता है, इसका भी उसे पता ना था।क्या ये मेरा पहला पहला प्यार है ?
अगले वर्ष प्रीती की बुआ छुट्टियों में उसके ही घर आ गईं। प्रीती मन मसोस कर रह गई। पर वो किसी से भी अपने मन की बात ना कह पाई। बुआ ने कई बार उसके अनमने से रहने का कारण भी पूछा पर प्रीती शर्म के कारण उन्हें कुछ नहीं बता पाई।
बुआ ,”प्रीती ! क्या तू हमारे आने से प्रसन्न नहीं है ?”
प्रीती उदासी से बोली, “नहीं, नहीं बुआ ऐसी कोई भी बात नहीं है। मै बहुत प्रसन्न हूँ। ” ऐसे ही २ वर्ष और बीत गए पर प्रीती, प्रियम से नहीं मिल पाई।
प्रीती आज तक प्रियम को, उस पहले प्रेम के आभास को भुला नहीं पाई थी। जब भी वो प्रियम के बारे में सोचती तो एक मीठी सी अनुभूति से सिहर उठती थी। अपने मन से कई बार ओ प्रश्न करती कि क्या इसे ही प्यार कहते हैं। क्या यही वो पहला पहला प्यार है जिसके लिए लोग अपने प्राण तक न्यौछावर कर देते हैं ? एक दिन कॉलेज का परीक्षाफल लेकर वो घर को लौट रही थी। अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण होने के उपरान्त भी वो अधिक प्रसन्न नहीं थी। सहेलियों के लाख बार पूछने पर भी वो किसी से कुछ नहीं बताती थी।
घर के भीतर से बहुत ही शोरगुल की आवाजें आ रही थीं। प्रीती ने सोचा कि संभवतः कोई अतिथि आया होगा। पर ये तो बुआ थीं। बुआ लपककर उससे गले मिलीं।
बुआ ,”अरे कहाँ रह गईं थीं मेरी राजकुमारी? कब से हम तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
प्रीती ,” बुआ! आज परीक्षाफल आया था तो इसलिए ही देर हो गई। ”
बुआ ,”चल जल्दी से अच्छे से तैयार हो जा, तुझे देखने कोई आने वाला है। हो सकता है कि तेरे सपनों का राजकुमार ही हो ?”
प्रीती हंसकर बोली,”सपनों का राजकुमार ? मै कुछ समझी नहीं। ”
बुआ ,” चल हाथ मुंह धो ले और अच्छे से कपडे पहनकर थोड़ा सा सज संवर भी लेना। तभी तो वो तुझे पसंद करेगा और फिर डोली मे ……….”
प्रीती अनमने मन से तैयार होने चली गई।
शाम को लड़के वालों के आने पर जब बुआ उसे लेने आईं तो प्रीती ने अपनी बुआ का हाथ पकड़ लिया और रोते हुए बोली ,” बुआ मै तुम्हे कुछ बताना चाहती हूँ। ये बात मै कभी नहीं बताती पर अब जब शादी की बात चली है तो मै चुप नहीं रह सकती। बुआ कृपा कर ये शादी की बात यहीं रोक दो। मै किसी और को पसंद करती हूँ। ” प्रीती अपने ह्रदय की बात कहते-कहते कमरे की खिड़की की ओर चली गई।
वहां से हवा का झोंका आकर उसके रेशमी बालों को बिखरा देता था। वो बार-बार अपने बाल ठीक करती थी। रोने के कारण उसकी आँखें एवं मुख लाल हो गए थे। खिड़की से बाहर देखते हुए वो अपने ह्रदय के अनुराग को अपनी बुआ से बता देना चाहती थीं।
बुआ चुपचाप अपने स्थान पर खड़ी रहीँ और प्रीती कहती गई।
प्रीती आगे बोली ,” ये तब की बात है जब मै १२ वीं की छुट्टियों में तुम्हारे घर गई थी। बुआ पता नहीं प्रियम से कैसे इतना स्नेह, इतना अनुराग हो गया कि आज तक मै उसे भूल नहीं पाई हूँ। ये मेरा पहला प्यार है बुआ और मै पहले प्यार की आस, के सहारे पूरा जीवन बिता लूंगी किन्तु किसी और से …… प्रीती अपनी ही धुन में बोले जा रही थी।
“और यदि वो ही लड़का तुम्हारा हाथ मांगने आए तो ?” तभी किसी चिरपरिचित स्वर ने उसे चौंका दिया। प्रीती को ऐसा लगा जैसे कि अत्यधिक उत्सुकता एवं हर्ष से उसका हृदय मानो बाहर ही जाएगा।
‘ये क्या ? ये तो प्रियम की ……… तो ये लड़का क्या प्रियम ……… ? तो क्या उपरवाले ने मेरे, पहले प्यार की आस को सफल कर दिया? तो क्या अब मुझे उसके लिए और तड़पना नहीं पड़ेगा? क्या मुझे जीवन भर उसकी बाहों का सहारा मिल जाएगा?’ ऐसे ही कई प्रश्न क्षण भर में ही प्रीती के मन में घूम गए।
उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसकी आँखें छलक आईं। वो स्तब्ध सी वहीँ पर खड़ी रह गई।
प्रियम , दरवाजे की टेक के सहारे खड़ा हुआ मंद -मंद मुस्कुरा रहा था।
प्रियम धीरे से चलकर उसके पास आ गया और उसके कानों में फुसफुसाकर बोला , ” ये मेरा पहला पहला प्यार है। इतना प्यार तुम भी मुझसे करती हो, पता ना था।”
प्रीती घबराहट के कारण कुछ बोल नहीं पाई। शर्म और घबराहट के कारण उसकी आँखे बोझिल हो गईं । उसके गाल ,गुलाब की तरह लाल हो गए। जब प्रियम को उसकी घबराहट का आभास हुआ तो उसने स्वयं ही उसका मुख अपने हाथों से ऊपर कर दिया।
प्रियम बोला, “प्रीती बहुत तड़पा हूँ, पहले प्यार की आस में । वो तो भला हो तुम्हारी बुआ का, जो मेरा तुम्हारे प्रति लगाव समझ गई, और हमें सदा के लिए मिलाने का विचार किया।
प्रीती , “प्रियम, मै भी बहुत रोइ तेरी याद में पर किसी से कुछ ना कह सकी। ये पहला प्यार है इसका का दर्द सच में बड़ा ही मीठा होता है प्रियम। ” उसके झील सी आँखों में प्यार का अपार सागर लहरा रहा था।
अत्यधिक प्रसन्नता के कारण उसकी आँखों से आंसूं निकलने लगे। प्रियम ने प्यार से उसके आंसूं पोछे और उसके मस्तक पर अपने प्यार का चिह्न लगा दिया। प्रीती उसके आलिंगन में खो गई। आज उसे अपना पहला प्यार मिल गया जो उसका जीवनसाथी बनने वाला था।
प्रियम ने अपनी जेब से एक प्यारी सी अंगूठी निकाली और प्रीती की ऊँगली में पहना दी। प्रीती चौक गई।
प्रीती , “प्रियम , अपने माँ -पिता के सामने ये रस्म करते तो उन्हें भी अच्छा लगता। ”
“प्रीती! पिछले साल ही आतंकवादियों ने उनकी निर्दयता से जान ले ली। अब तुम्हारे अतिरिक्त इस पूरे संसार में मेरा कोई नहीं है। उन आतंकवादियों ने मुझे अनाथ कर दिया प्रीती, मुझे अनाथ कर दिया। ” कहकर प्रियम बच्चों की तरह फूटफूटकर रोने लगा।
प्रीती स्तब्ध रह गई, ‘ इतना सब कुछ घट गया प्रियम के जीवन में तब भी उसे मेरी स्मृति रही ? ओह ! प्रियम इतना दुःख तुमने अकेले ही सहा। ‘ प्रीती ने अपना हाथ प्रियम के कंधे पर रखा तो वो और तेजी से बिलख-बिलख कर रोने लगा।
प्रीती ,” मत रो प्रियम ,शांत हो जाओ प्रियम।माता -पिता का स्थान तो कोई नहीं ले सकता किन्तु आज से और अभी से मै सदा तुम्हारे साथ हूँ प्रियम। कभी भी स्वयं को अकेला मत समझना। ”
तभी कमरे की खिड़की से कुछ गेंद जैसी वस्तु आई। प्रीती तुरंत उसे उठाने चली गई। उसने सोचा कि बाहर बच्चे खेल रहे होंगे, उन्ही की गेंद है।
उसने गेंद अपने हाथ में ले ली और प्रियम से बोली ,” प्रियम देखो तो कैसा अकार है इस गेंद का। लगता है क्रिकेट की नहीं किसी और खेल की है ये गेंद।
प्रियम चौकन्ना हो गया।
वो चिल्लाने लगा ,”प्रीती उसे दूर फेंक दो !!!!! प्रीती गेंद को दूर फेंक दो। ”
प्रीती मुस्कुराते हुए बोली,”हाँ हाँ ,फेंक रही हूँ। तुम इतना क्यों ………
प्रियम ने आव देखा ना ताव और एक झटके में उस गेंद के साथ खिड़की से बाहर कूद गया। क्षण भर में ही गेंद में विस्फोट हो गया।
प्रीती की साँसे मानो थम सी गईं। वो भी चीखती हुई खिड़की से बाहर कूद गई।
चारों और हाहाकार मच गया। प्रीती ,”प्रियम !!!!!! प्रियम !!!!! कहाँ हो तुम ? हे भगवान ये कैसी परीक्षा की घडी है ? क्या बिगाड़ा है हमने किसी का ?प्रियम कुछ तो बोलो ?”
तभी प्रियम उसके सामने खड़ा था अपनी चिरपरिचित प्यारी सी मुस्कान लिए।
वो बोला ,” प्रीती !!! ठीक हूँ मै। पगली इतना क्यों डर गई थी ? तेरा प्यार मुझे हर मुसीबत से बच सकता है। ”
प्रीती ने रोते हुए अपने दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना की ,” तेरा लाख-लाख धन्यवाद प्रभु जो तूने मेरे प्यार की रक्षा की नहीं तो मै तो जीते जी ही मर जाती। मै अपने प्रियम, अपने प्यार के बिना नहीं जी सकती थी।”
प्रियम ने अपना हाथ प्रीती की ओर बढ़ाया तो लाख प्रयासों के बाद भी प्रीती उसे थाम नहीं पाई।
अस्पताल में प्रीती अपनी अंतिम साँसे ले रही थी।
प्रियम दरवाजे पर ही खडा मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। कुछ देर बाद प्रीती ने उसका हाथ थामा और कहा ,”चलो प्रियम ! मै आ गईं। तुमसे किया वादा मैं कैसे तोड़ सकती थीं।?
प्रियम् और प्रीती इस संसार से दूर चले गए जहाँ केवल प्यार के लिए स्थान है, घृणा और द्वेष का वहां कोई स्थान नहीं है।
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