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Ehsaas.

Published by Dharam Singh Rathore in category Hindi Story | Love and Romance with tag feelings | friendship | Love

कहीं ट्रेन ना छूट जाए मेरी, मैं यहीं बड़बड़ाता हुआ प्लेटफार्म पर भाग रहा था, अगर बॉस ने आज ऑफिस से जल्दी जाने दिया होता तो शायद यह नहीं होता। ऑफिस में भी जरूरी काम आपके पास तभी आते हैं जब आपको ऑफिस से जल्दी जाना हो। मैं यही सोचता हुआ प्लेटफार्म पर दौड़ रहा था कि कहीं ट्रेन छूट ना जाए वैसे भी बहुत समय बाद मैं घर जा रहा था, वैसे मेरा घर जाने का मन हमेशा ही करता है पर कभी ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलती या कभी कुछ और काम निकल आते है और शायद सच तो यह है, कि अब वहां वो पहले वाली बात नहीं क्योंकि अब वहाँ वो नहीं है!आखिरकार में प्लेटफार्म नंबर 7 पर पहुंचा देखा कि ट्रेन लेट थी शायद ट्रेन को भी यह अंदाजा हो गया था कि मेरा घर जाना कितना जरूरी है।
मैं फिर अपने ख्यालों में खो गया क्या करूंगा मैं वहां ? क्या वो भी इस होली पर घर आयेगी कितने महीने बीत गए है उसे देखें हुए, उससे बात किए हुए, आखिरी बार हमने तब बात की थी जब मैं नोएडा शिफ्ट हो रहा था मेरी जॉब लगी थी यहाँ, वो मेरे कॉलोनी में रहती थी मेरे घर से कुछ कदमों की दूरी पर ही उसका घर था।

यह बात कॉलेज के दिनों की है। जब हमारी कॉलोनी में नए पड़ोसी आए थे उनका परिवार शिमला से शिफ्ट हुआ था, उसके पिताजी एक सरकारी बैंक में मैनेजर थे। ’महक’ नाम था उसका, नाम की तरह वो भी हमेशा महकती रहती थी मेरी और उसकी पहली मुलाकात या ये कहना ज्यादा सही होगा कि मैंने उसे पहली बार अपनी छत से देखा था। मेरे और उसके घर के बीच फासला जरूर था पर हम दोनों एक दूसरे को आसानी से पहचान लेते थे। वैसे हमारी अभी तक एक दूसरे से कोई बात नहीं हुई थी पर लगता था आंखें हमारी बहुत कुछ कहना चाहाती हों। मैंने अपना ऐडमिशन यूनिवर्सिटी में करा लिया था जो मेरे घर से 10 किलोमीटर की दूरी पर था और इत्तेफाक से उसने भी अपना ऐडमिशन उसी यूनिवर्सिटी में करा लिया था।
अक्सर हम दोनों का सामना कई बार हो जाया करता था, फिर धीरे-धीरे वो मुझे देख मुस्कुराने लगी में भी उसे देख मुस्कुरा दिया करता था, बहुत सरल स्वभाव था उसका हमेशा खुश रहने वाली लड़की थी चाहे कुछ भी हो हमेशा एक मुस्कान उसके चेहरे पर रहती थी धीरे-धीरे बातें और मुलाकातें होनें लगी मैं भी कुछ उसी की तरह ही तो था, शायद इसलिए हम दोनों किसी भी बात पर एक राय बना ही लेते थे। बहुत कुछ मेरे जैसी ही तो थी वो कॉलेज खत्म होते होते ना जाने कब हम एक दूसरे को पंसद करनें लगें।

वो लड़की जो मुझसे हर छोटी-छोटी बातों पर लड़ती रहती थी, अचानक ना जाने कब मैं उसे बहुत पंसद करनें लगा मुझे पता भी ना चला ये सब कैसे होनें लगा, मैं मुस्कुराने लगा चलों जो भी है अच्छा है, खुबसूरत है, अब मानों लगनें लगा था कि हम दोनों के दरमियां यह नजदिकियां और बढ़ती ही जा रहीं थी, जैसे मानों कोई फूल अपनी पूरी खुशबु के साथ खिल रहा हो, सब कुछ मानों बहुत खूबसूरत सा लग रहा हो, मेरे इन ख्यालों को भी मानो अब एक उसको का ही ख्याल पंसद हो, हां जब भी वो इन ख्यालों में आ जाती है मानों सबकुछ जैसे ठहर सा जाता है। ख्याल भी मेरे बस उसे अपने ही करीब रखना चाहते हो, ये सब एहसास मानों ऐसे लग रहे थे जिन्हें कह पाना बुहत मुश्किल था बस इन्हें मैं एक ही शब्द में कहे सकता हूं “खूबसूरत” या “अनकहा” या प्यार……….हम्म शायद यहीं।

हमारा साथ उस शांत बहती हुई नदी सा ही तो था जो मानों ना जाने कब उस किनारे पर पहुंच चुकी थी जहां वो दोनों एक हो जाया करतें थे।
मैं अपने ख्यालों में डूबा था कि अचानक ट्रेन की आवाज ने वापस मुझे प्लेटफार्म पर ला पटका, जैसे ही आप अपने शहर में आते हैं पुरानी यादें आपका रास्ता रोक लेती है वो रेस्टोरेंट वो यूनिवर्सिटी वो गार्डन जहां हम घंटों बैठे रहते थे घंटो बातें किया करते थे वो सब वापस आपके जेहन में लौट आता है, यही अपने शहर की बात होती है सब कुछ आपके चेहरे के सामने आ जाता है मानो आप फिर से वही पल जी रहे हो।
अखिरकार मैं घर पहुंच गया। घर काफी कुछ बदल सा गया था मैंने घर वालों का आशीर्वाद लिया, फ्रेश होकर चाय पीने लगा। माँओं की भी एक खासियत होती है वह अपने बच्चों को परेशानी में देखकर पहचान ही लेती है। मां मेरे पास आई कहा क्या हुआ तुम कुछ परेशान लग रहे हो ? मैंने हंसकर कहा नहीं तो, ऐसा कुछ नहीं है आप यूंही सोच रहे हो, कुछ नहीं बस ऐसे ही। माँ ने धीरे से मेरे सर पर हाथ रखा और और कहाँ इस धुलंड मैं होली की आग में तुम्हारी भी सारी परेशानी जलकर खत्म हो जाए। यह कहकर माँ कमरे से चली गई मै, मां को देखता रहा और मन ही मन कहने लगा काश ऐसा ही हो।
शाम होते-होते मोहल्ले के सभी लोग इकट्ठे होने लगे थें शर्मा अंकल, विक्रम, भूपेंद्र लगता है इस होली पर सब को अपने घर की याद आ गई मैंने अपने मन में कहा और हँसने लगा मैं भी तो इसी होली पर घर आया हूं। क्या वो भी आई होगी? क्या उसे भी याद आई होगी अपने घर की? “क्या उसे मेरी याद आई होगी”? उस समय मेरें जेहन में बस यही सब सवाल चल रहें थे। मां ने मुझे बताया कि मेरे नोएडा शिफ्ट होने के 4 महीने बाद ही महक की भी जॉब मुंबई में लग गई थी, महक से बात करे हुए मुझे तकरीबन 8 महीने बीत चुके थे। इन 8 महीनों में मैंने बहुत बार सोचा कि महक से एक बार तो बात कर लू बहुत बार मैंने कोशिश भी करी उसका नंबर डायल करने की पर दिमाग और दिल की जंग में अक्सर जीत दिमाग की ही होती है यह चीज अब मैं समझ चुका था। और कहीं ना कहीं सच तो यह है कि मैं महक से बात करता भी तो किस हक से और शायद वह हक मैंने कब का गवा दिया था। एक छोटी सी गलतफहमी के कारण मैं अपना 2 साल पुराना रिश्ता छोड़ कर मैं नोएडा भाग आया था।
यह प्यार भी कितनी अजीब चींज होती है बड़ी से बड़ी बातों को, झगड़ों को कुछ समय में ही गायब कर देता है और छोटी सी गलतफहमी को सही करने में सालों लग जाते हैं।
हमारी कहानी भी उस पुरानी किताब की तरह ही तो थी जो बरसों से अलमारी में बंद है उसे भी उस समय का इंतजार है जब कोई उसे आकर पढ़े, कहते हैं समय हर दर्द की दवा होता है पर समय ही कभी-कभी उस दर्द को खरांच भी देता है।

ऐसा नहीं मैंने कभी कोशिश नहीं की पर शायद समय गुजर चुका था ऐसा नहीं कि गलती महक की थी गलती मेरी ही थी पर मुझे मेरी गलती का एहसास कुछ समय बाद हुआ और जब तक समय निकल चुका था, जब आप अकेले होते हो उस समय आप अपने आपको अच्छी तरह समझ सकते हो मुझे भी मेरी गलती का एहसास तब हुआ जब मैं नोएडा शिफ्ट हुआ और जब तक बहुत देर हो चुकी थी। कभी कभी एक छोटी सी बात भी बहुत गहरा असर करती है यह बात मैं अब समझ चुका था।
बच्चों के शोर की आवाजों से मैं अपने ख्यालों से बाहर आया लगभग मोहल्ले के सभी लोग इकट्ठे हो चुके थे पर मेरी आंखें जिसकी तलाश में थी वो इस भीड़ में नहीं थी मुझे तो यह भी नहीं पता था कि मेरी नजर जिसको तलाश रही है वो यहाँ है या नहीं। खैर कुछ ही देर में धुलंडी का समय हो गया था होलीका को जलाने के लिए मोहल्ले के सब लोग इकट्ठे हो चुके थे मोहल्ले के सबसे बुजुर्ग आदमी जिनको हम दा-सा कहते हैं वह मेरे पास आए मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोले बहुत समय लगा दिया तूने आने में यह कहकर वह होलिका को जलाने के लिए चल दिये। सही तो कहा था उन्होंने मैंने समय तो बहुत लगा दिया था घर आने में। होली के लपटें बहुत तेज थी उसकी तपन चेहरे पर महसूस हो रही थी पर वह आग की तपन और उसकी लपटें मैंने अपने चेहरे के साथ साथ अपने दिल पर भी महसूस की थी।

तभी उस आग की लपटों के बीच में से मुझे वह आंखें दिखाई थी जिन्हें मैं जानता था वह आँखें जिन्हें में देखकर अपनी सारी तकलीफें भूल जाया करता था उस समय वों आँखें ऐसी लग रही थी जैसे बैठा हूं मैं किसी शाम सुकून से और देख रहा हूं उस ढलते सूरज के सुनेहरे आसमां को जिसमें मैं पूरी तरह खो जाया करता था हां बिल्कुल ऐसा ही तो था वो समां। हां वो महक ही थी उसकी आंखें उस लपटों के बीच इस तरह लग रही थी जैसे काले बादलों के बीच भी चाँद अपनी झलक दिखाई ही देता है, उसकी आंखें इन लपटों के बीच चमक रही थी, ठीक वैसे ही जैसे पानी पर सूरज की रोशनी पढ़ते ही पानी की सतह सैकड़ों मोतियों की तरह चमक जाती है पर आखिरी बार जब मैंने उन आंखों को देखा था तो उनमें वह चमक नहीं थी वह आंसुओं के बोझ से भारी थी वह आंसू जो मेरी वजह से उसकी आंखों में थे। खैर महक ने भी मुझे देख लिया था मैं उसके पास जाकर उससे बात करना चाहता था पर मेरे पैर अपनी जगह से हिलने को तैयार ही नहीं थे। हम दोनों की आंखें आपस में मिली औैर कुछ समय के लिए हम दोनों एक दूसरे को यूंही देखते रहे और महक ने अपनी नजरों को नीचे कर लिया और वहां से चली गई मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं बूत की तरह वहीं पर खड़ा उसे बस जाते हुवे देखता रहा।
मैं पूरी रात सो नहीं पाया ऐसा लग रहा था की आंखों से नींद गायब सी हो गई है। मैं पूरी रात अपने ही विचारों के दलदल में फंसता ही जा रहा था तरह-तरह के ख्याल मेरे सामने आ रहे थे अक्सर जब आप बहुत परेशान होते हो तब आप अपने ही ख्यालो की एक कठपुतली मात्र बन के रह जाते हो। खैर सुबह के अलार्म से मैं अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आया लेकिन मैंने अब तक यह तय कर लिया था कि मुझे क्या करना है। मुझे महक से बात करनी ही होगी मुझे अपनी गलती स्वीकार करनी ही होगी। मैं फटाफट बिस्तर से उठा जल्दी से नहा धोकर मैंने सफेद कुर्ता पजामा पहन लिया था। हाथ में गुलाल का पैकेट लिए मैं अपनी मंजिल की तरफ चल दिया पर जितने जोश के साथ में अपने घर से चला था वो जोश उसके घर के सामने पहुंचते ही ठंडा हो चुका था। जिस रफ्तार से मेरे कदम घर से निकले थे मंजिल के लिए वह कदम अब वहीं थम गए थे।

उसके घर के सामने पहुंचते ही एक मन तो करा वापस चला जाऊँ पर जब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी अंकल आंटी ने मुझे देख लिया था आओ बेटा बहुत दिनों के बाद आए हो अंदर आओ मैंने दोनों के पाव छुए और वो मुझे अंदर ले गए। और कैसे हो तुम, घर में सब कैसे हैं। आंटी ने कहाँ, मैंने कहा सब ठीक है मुझे तो यहाँ आपके गुजिया की याद खींच लाई मैंने हंसते हुए कहाँ। जरूर बेटा तुम बैठो मैं लेकर आती हूं आंटी ने कहा, और जब तक तुम महक से बात कर लो वो ऊपर छत पर बैठी है, पता नहीं कल रात से ही बहुत उदास लग रही है, पता नहीं क्या हुआ बेटा जब आई थी तो बहुत खुश थी पता नहीं अब क्या हुआ उसे, यह कहते हुए आंटी किचन में चली गई पर मुझे तो पता ही था महक की उदासी का कारण आंटी ने मुझे गुजिया की प्लेट देते हुए कहाँ बेटा तुम महक से बातें करो मैं तुम्हारे अंकल के साथ गार्डन में बैठी हूं उनके दोस्त आए हुए है ये कहकर आंटी बाहर चली गई।

मैं छत की ओर बडने लगा कदम जैसे बहुत भारी हो गये हो, महक छत पर बैठी थी मुझे छत पर देखते ही सकपका सी गई हम एक दूसरे को कुछ देर एकटक यूं ही देखते रहे आखिरकार मैंने आगें बड़कर महक से बात करना चाही पर उसने मुझे रोक दिया क्या लेने आए हो अब तुम यहां वापस महक ने कहा। मेरे होठ कपकपा रहे थे शरीर जिसे लकड़ी के सामान ठोस हो गया था मैंने आखिर हिम्मत करके कहा महक मैं यहां तुमसे माफी मांगने आया हूं क्या तुम मेरी बात एक बार भी सुनना नहीं चाहोंगी। मुझे पता है मेरी गलती माफी के लायक नहीं पर फिर भी मैं तुमसे माफी मांगना चाहता हूं। मैं यह कहकर चुप हो गया छत पर मानो सन्नाटा सा छा गया हो उस समय वो खामोंशी ऐसी थी जैसे सैकडों बिजलियाँ की आवाज भी उस खामोंशी में दब सी गई हो। महक ही खामोंशी मुझे अंदर ही अंदर परेशान कर रही थी। आखिर कुछ देर बाद महक ने अपनी खामोशी तोड़ते हुऐ कहा तुम्हें नहीं लगता तुमने बहुत देर कर दी यह बोलने में।

मुझे पता है शायद बहुत देर हो चुकी है पर क्या इतनी देर हो चुकी है कि हम अब बात भी नहीं कर सकते, मैंने कहा गलती मेरी ही थी और मुझे इस गलती को बहुत पहले ही सुधार लेना चाहिए था। पर सच तो यह है कि मेरी कभी हिम्मत ही नहीं हुई, फिर अब यहाँ क्यों आए हो वापस महक ने कहा। मैं नहीं जानता की मैं यहां क्यों आया हूं पर कल जब मैंने तुम्हें देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाया तुमसे बात करने से। मेरे अंदर बार-बार यही ख्याल चल रहा था कि क्या हम यही चाहते हैं, क्या हम दोनों सच में यही चाहते हैं क्या तुम भी यही चाहती हो कि हम इस रिश्ते को यहीं खत्म कर दे। तुम्हें नहीं लगता कि हमें एक दूसरे को दोबारा एक और मौका देना चाहिए। मौके की बात वो करते हैं जो सच सुनना चाहते हैं जो सच को देखना चाहते हैं क्या है तुममें हिम्मत सच को देखने की सच को कहने की महक ने गुस्से में कहा, हां महक तुम्हारा गुस्सा जायज है। मुझपें पर तुम एक बार अपने दिल से पूछो क्या तुम सच में यही चाहती हो। मुझे हर बार यही ख्याल आता है कि मैं एक ऐसी नदी में हूं जिसका कोई किनारा नहीं जिसका कोई छोर नहीं पर कहीं ना कहीं मुझे यह लगता था कि तुम वह छोर हो तुम वो किनारा हो जहां में रुकना चाहता हूं जहां मैं ठहरना चाहता हूं जहां में बसना चाहता हूं।

मेरी आंखों से आंसू बहते ही जा रहे थे पर महक कुछ नहीं बोली मैंने आगे कहा मैं मानता हूं मुझे एक बार तुमसे बात जरूर करनी चाहिए थी मुझे अपनी गलती का एहसास भी है और आज मैं यहां अपनी उस गलती को सुधारने भी आया हूं। मैंने महक के हाथों को अपने हाथों में लिया और कहा क्या तुम मुझे माफ नहीं कर सकती? क्या तुम मुझे फिर से एक मौका नहीं दे सकती? महक मैं नहीं जानता कि मैं जिंदगी भर उस नदी में तैरता रहूं या तुम मेरा वो किनारा बनोगी, महक कुछ नहीं बोली बस उसके आँखों में आंसू थे और मेरे आंखों में भी हम कुछ देर यूं ही खड़े रहे उसकी आँखे आंसुओं की बोझ के कारण झुक गई थी। मैंने महक से कहा क्या तुम मुझे एक मौका दे सकती हो?
मुझे एहसास था कि मेरी गलती इतनी बड़ी थी, इसलिए मैं इतना कहकर मैं वहां से वापस जाने के लिए मुड़ा ही था इतने में मेरा हाथ महक ने पकड़ कर मुझे रोका और मुझसे कहा आज होली है क्या तुम मुझे गुलाल नहीं लगाओगे, मानों मैं कुछ पल वहीं ठहर सा गया, लगा मानों जो ख्वाब में लम्बें से देख रहा था आज वो अचानक से पूरा हो गया, मैंने मुस्कुराकर कहा हां क्यों नहीं मैं महक की ओर बढ़ा मैंने महक के गालों पर गुलाल लगाया उस गुलाल की महक चारों तरफ फैल चुकी थी। उस खबसूरत पल में उस गुलाल की खुशबू का हवाओं में मिलना मुझे हम दोनो के मिलने सा ही लग रहा था। उस पल सुकून को भी मानो सूकुन मिल गया हो जैसे हम दोंनों को वो पल मिल गया हो। नीले आसमां को शाम के खबुसूरत रंग मिल गये हो और इन सबसे खुबसूरत किसी का अगर मिलना था तो वो था महक का मुझे मिलना।

उस समय माँ की कही वो बात याद आ गई, माँ ने सच कहा था इस होली तेरी सारी परेशानियां भी जल कर खत्म हो जायेगी। मैंने महक के कानों में धीरे से कहा हैप्पी होली महक। उस समय हम दोनों के आँखों में आंसू थे पर ये आसूं खुशी के थे।

–END–

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