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Amma ki Potali

Published by Anuraj12 in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag bag | fair | grandma | photo

अम्मा की पोटली

old-woman-mother

Hindi Love Story – Amma ki Potali
Photo credit: chilombiano from morguefile.com
(Note: Image does not illustrate or has any resemblance with characters depicted in the story)

“काहे बिटुआ, आज सकूल नहीं जाएगा तू ?”, आँगन में नीम के पेड़ के नीचे, गोबर से लिपे (हुए) फ़र्श पर चारपाई डाले अम्मा ने पूछा। अम्मा हमारे गाँव की सबसे बूढ़े लोगों में शुमार होतीं थीं। सभी बढ़े लोग-लुगाई अम्मा की राय ज़रूर लिया करते थे।

“नहीं आज छुट्टी है”, मैने कहा, और पूछा “अम्मा, आज कौन-सी जादुई चीज़ निकालोगी पोटली से?”

अम्मा चारपाई नीम के पेड़ से सटाते हुए बोलीं “आ लल्ला, तोके मैं एक कहानी, एक अफ़साना सुनाती हूँ। ”

अम्मा की पोटली कोई साधारण कपड़े का थैला न था, वो एक जादुई पोटली थी जिसमें से कभी फल तो कभी अफ़साना और न जाने ना-ना प्रकार की चीज़ें निकला करती थीं। अम्मा की ओर ज़िन्दगी ने हमेशा से ही एक क्रूर रुख रखा था। बाबुजी का दिहांत जब हुआ, तब अम्मा सिर्फ़ २३ वर्ष की थीं।  कन्धों पर दो बेटियों की शादी का बोझ और मेरे पिता कि परवरिश का जिम्मा था। मगर अम्मा बुरे वक़्त से टूटी नहीं बल्कि और मज़बूत हो गईं। रात-दिन मज़दूरी करके उन्होंने सबसे पहले झोपड़ी को मकान की सूरत किया। फिर धीरे-धीरे मेरी बुआओं की शादी कर उन्हें रुख़सत किया और चुकीं, मेरे पिता सबसे छोटे थे तो उनकी देखभाल दिन के वक़्त एक बुआ को सौंप दी और शाम के काम से लौटते वक़्त अम्मा उन्हें बुआ के घर से लेतीं आतीं।

“अम्मा, तनिक ठहर जाओ। मैं ज़रा नहाके आ जाऊँ नहीं तो मम्मी डांटेंगी।” मैने अम्मा से  कहते हुए अपने क़दम अन्दर की ओर चला दिए।

वापस जब आया, तो अम्मा वहीं पेड़ के नीचे बैठे सुपारी काट रहीं थीं। वैसे तो अम्मा अनपढ़ थीं, मग़र उन्हें अफ़साने सुनने का इतना शौक़ था के उनके पिता जी अपनी इकलौती लाड़ली के लिए अफसनानिगारों को ढूंढ-ढूंढ कर लाते थे। ऐसे ही अम्मा को यह सारे अफ़साने याद थे। उनके पास बैठते हुए मैं बोल,”आज किसका किस्सा सुनाओगी अम्मा ?”

अम्मा हसँते हुए बोलीं,”लल्ला, आज तो के मै एक फ़ारसी किस्सा (मौलाना रूमी द्वारा रचित) सुनाती हूँ।”

और उन्होंने एक राजकुमारी और उसके प्यार में पागल एक लड़के का किस्सा सुनाया। किस्सा काफ़ी अच्छा था, न जाने अम्मा को इतने सारे किस्से कैसे याद थे। अन्दर से माँ ने आवाज़ लगाई और अम्मा को खाना परोसने को कहा। हमारे घर में सबसे पहली थाली अम्मा की ही लगती थी। अम्मा ने माँ से पूछते हुए कहा,”काहे बहु, आज क्या खबाये रही है?”

माँ ने जवाब दिया,”अम्मा, आज दही के आलू और रोटी बनाई है। और साथ में घीया का हल्वा है।”

हल्वे का नाम सुनते ही मैने अम्मा की ओर देखा, वो भी मेरी ओर देख रहीं थीं। उनकी आँखों में भी वैसी ही चमक थी, जैसी मेरी आँखों में थी। माँ जानती थीं, अम्मा को घीया का हल्वा बड़ा पसन्द है। अम्मा ने हाल सुपारी अलग रखते हुए कहा,”बिटुआ, खाना ले आ जल्दी से।”

माँ जानती थीं कि जब-जब मैं घर में होता हूँ तो अम्मा संग ही खाना खाता हूँ, तो थाली में दो कटोरी हल्वा लगा के दिया। मैने माँ की ओर मुस्करा कर देखा, वो भी मुस्करा रहीं थीं। अम्मा और मैने मिलकर ख़ूब हल्वा खाया और फिर मैंं खेलने निकल गया। अम्मा भी सो गईं थीं शायद से। अम्मा अपनी पोटली हमेशा अपने साथ रखती थीं। न जाने ऐसा क्या था उसमें। मुझे तो उसमें बस कुछ फल, थोड़े-बहुत पैसे, सुपारी और एक तम्बाकू की डिब्बी ही दिखती थी। उसमें एक बिना फ्रेम वाली  तस्वीर भी थी। वो तस्वीर मेरे बाबुजी की थी। अम्मा के पास बस यही एक तस्वीर थी बाबुजी की, जिसे वो खाली वक़्त और अकेलेपन में निहारा करती थीं।

एक दिन पास के गाँव में मेला लगा था। मेरे काफ़ी हठ करने पर अम्मा चलने को राज़ी हो गईं। मेला काफ़ी बड़ा और सुन्दर सजा था। अम्मा ने वहाँ पर मुझे खिलौने दिलवाए और बहुत-सी मिठाइयाँ खिलवाईं। अम्मा को मिठाई खाने का बहुत शौक़ था। शायद मुझे यह आदत या शौक़ अम्मा से विरासत में मिला था। उस पूरी दोपहर मैं और अम्मा मेले में घूमते रहे। अम्मा थक जातीं तो थोड़ा बैठ जाया करती थीं। सूर्यास्त पर घर लौटे, हाथों में मिठाईयों और खिलौनों की थैली पकड़े तो अचानक से माँ की नज़र अम्मा के कन्धे पर गई, तो उन्होने पुछा, “अम्मा, थैला कहाँ गया तुम्हारा ?”

अम्मा ने हड़बड़ी में देखा तो उनका थैला गायब था। शायद वो मेले में रह गया होगा।  पिताजी उसी वक़्त खेत से लौटे ही थे की अपनी अम्मा को चिंतित देख हाल ही साईकिल घुमाई और मेले की ओर निकल पड़े। देर शाम जब वो खाली हाथ लौटे तो अम्मा की बँधी उम्मीद भी टूट गई। अम्मा बहुत उदास हो गईं। उस रात उन्होंने खाना भी नहीं खाया। रात में जब मैंं पानी के लाने उठा तो अम्मा की सिसकियों की आवाज़ सुनी। लेकिन सोचा अम्मा थोड़े देर में शांत हो जाएँगी।

सुबह उठतेे ही मैं अम्मा के पास गया; वो अभी तक सो रहीं थीं।  माँ ने कहा की उन्हें परेशान न करूँ। अम्मा को छू के देखा तो ऐसा लगा की उन्हें काफ़ी सर्दी लग रही थी। शायद उन्हें एक कम्बल उड़ा दूँ, सोचा मैने। फिर जब माँ से कम्बल माँगा तो उन्होंने वजह पूछी।  वजह जान ने पर वो दौड़ी अम्मा के पास गयीं और वहाँ माँ रोने लगीं। मैं कुछ समझ नहीं पाया। बाद में मालूम पड़ा अम्मा अब नहीं रहीं। शायद उनकी जादूई पोटली में उनकी जान बसती थी। वाक़ई उसमें उनकी जान थी, बाबुजी की तस्वीर उनकी जान ही तो थी। शायद यही प्रेम होता है।

“ज़िन्दगी तूने मुझे आज फिर हरा दिया।
एक तारा मेरा, तूने फिर मुझसे चुरा लिया।।”

–END–

लेख़क – अनुराज श्रीवास्तव ‘अज़ाद’

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