प्रेम राधा – कृष्णा का
आज कृष्णा जन्माष्टमी है.
सालों पहले एक कृष्णा का जन्म और हुआ था. मेरे मन में. तब, जब मैंने तुम्हे देखा था तुमसे बाते की थी. फिर कोई मुझमे मुझे देखता ही नहीं, सिर्फ तुम नजर आती हो. आज तो कृष्णा का जन्म हुआ था फिर यहाँ तेरी मेरी बातें क्यों। वो इसलिए की मुझे दुःख होता है. तब, जब कोई मेरा प्रेम या किसी भी अन्य व्यक्ति के प्रेम का कोई मजाक उड़ाए। और वही इंसान फिर जन्मास्टमी में कृष्णा के लिए उपवास रखे और मंदिर में जाकर राधा कृष्णा की पूजा करे.
जब भी किसी का प्रेम एक दूसरे के पूरक न बने, या कोई अपने प्रेमिका को पा न सके तो लोग यही दुहाई देते हैं – मिले तो राधा कृष्णा भी नहीं थे लेकिन उनका प्रेम आज भी याद किया जाता है. उनका प्रेम अमर है. क्यों? ऐसा क्या कर दिया था उन्होंने। प्रेम ही तो किया था. सभी करते हैं अपने अपने तरीके से. फिर उनके प्रेम की लोग पूजा करे और हम जैसे लोग जो प्रेम करें उनसे भेद-भाव. ऐसा क्यों? क्या इसलिए की वो भगवन विष्णु के अवतार थे.
इन्ही सारे सवालों के जवाब के लिए मैंने internet पर पढ़ना शुरू किया। अलग अलग लोग अलग अलग विचार।
मैं पहले ही बता दूँ की मेरा यही मानना है की वो इंसान हो या किसी भगवान का रूप प्रेम को सदा एक ही तराजू में तौलिये। और अगर नहीं तो अगली बार जब आप राधा कृष्णा के मंदिर में पूजा के लिए कदम बढ़ाएं तो एक बार आप जरूर सोचिये की क्या आप ये सही कर रहे हैं? या क्या आप इसके लायक हैं?
internet से प्राप्त कुछ fact बता दूँ आपको राधा-कृष्णा के बारे में. तो आपको प्रेम के बारे में समझना और आसान हो जायेगा।
एक तध्य के अनुसार राधा और कृष्णा का पहला मिलन बरसाना और नंदगांव के बीच हुई थी और वही से दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए थे. दूसरे तथ्य के अनुसार कृष्णा ओखली से बंधे थे और राधा ने इन्हें छुड़ाया, दोनों की नजरें मिली और तब से राधा कृष्णा को चाहने लगी थी. राधा, कृष्णा से 5 साल बड़ी थी, फिर भी ये प्रेम अमर है? कुछ लोग कहते हैं की राधा का विवाह अभिमन्यु से योगमाया ने करवाया था और उन्ही के प्रभाव से अभिमन्यु राधा को छू भी नहीं पाया था. और कुछ लोग कहते हैं की राधा का विवाह पहले ही तय हो गया था रायान से. और रायान से ही उनकी शादी हुई थी. राधा और कृष्णा का प्रेम कृष्णा के 10 साल के उम्र तक ही है. उसके बाद राधा सिर्फ उन्हें देखने और मिलने के लिए कुरुछेत्र गयी थी. न उसके पहले और न उसके बाद उनके मिलने की कोई भी कहानी मिलती है. कुछ लोगो का ये भी मानना है की कवि और लेखक ने इनके मिलन की दास्ताँ को इतना अपने अपने तरीके से बढ़ा चढ़ा कर लिखा है की अब इनकी कहानी काल्पनिक सी लगने लगी है.
राधा और रुक्मणी, देवी लक्ष्मी के अवतार थे. और कृष्णा भगवान् विष्णु के. नारद मुनि के श्राप के कारण ही राधा कृष्णा से मिल नहीं पाए. लोगों का मानना है की राधा का ही आध्यात्मिक अवतार रुक्मणी के रूप में हुआ था इसीलिए जहाँ राधा का जिक्र आता है वहां रुक्मणी का नहीं और जहाँ रुक्मणी का जिक्र आता है वहां राधा का नहीं।
कुछ लोग ये भी मानते हैं की मीरा की तरह राधा का प्रेम भी भक्ति ही थी जिसे लोगो ने प्रेम का नाम दे दिया। राधा उम्र में कृष्णा से बड़ी थीं लेकिन उम्र कब प्रेम के आरे आया है. राधा और कृष्णा का विवाह भी हुआ था. नन्द बाबा अपने पुत्र कृष्णा को गोद में बिठाकर भण्डार ग्राम ले जाया करते थे वहीँ पर राधा रानी प्रकट हुईं और कृष्णा ने अपने बाल रूप त्यागकर किशोर रूप अपना लिया और स्वंय ब्रह्मा जी ने ललित और विशाखा के समक्ष राधा और कृष्णा का गन्धर्व विवाह करवाया। और फिर कृष्णा वापस अपने बाल रूप में आ गए.
जब कृष्णा ने माता यशोदा से कहा की वो राधा से विवाह करना चाहते हैं तो यशोदा माता उन्हें समझाने लगी की वो तुमसे उम्र में बड़ी है, उसका विवाह पहले ही तय हो चूका है और उसका मंगेतर कंश की सेना में है वो युद्ध से लौटते ही राधा से विवाह कर लेगा और वैसे भी राधा एक साधारण ग्वालन की बेटी है और तुम मुखिया के बेटे। तुम दोनों का मिलन नहीं हो सकता। वो जगह जगह जगह नाचते फिरती है, वो तुम्हारे लिए सही नहीं है. तब कृष्णा ने बहुत अच्छी बात बोली थी “वह मेरे लिए सही है या नहीं ये मैं नहीं जानता। मैं तो बस इतना जानता हूँ की जबसे उसने मुझे देखा है, उसने सिर्फ मुझसे प्रेम किया है और वो मुझमे वास करती है. मैं उसी से शादी करना चाहता हूँ”
यशोदा के लाख समझाने पर जब कृष्णा नहीं माने तो नन्द को बोली समझाने, नन्द भी कृष्णा को समझा नहीं पाए फिर नन्द कृष्णा को गुरु गर्गाचार्य के पास ले गए. वहां भी अपने कर्तव्यों को न मानने पर गुरु गर्गाचार्य ने उनके जन्म के उद्देश्यों से उन्हें परिचित करवाया और तब वो राधा से अंतिम बार मिले और रास का आयोजन कराया। वहीँ पर कृष्णा ने अपनी बंसी राधा को दी और कहा ये बांसुरी सिर्फ तुम्हारे लिए बजी है इसे तुम अपने पास ही रखो. और फिर उन्होंने कभी बंसी नहीं बजायी और उसके बाद राधा कृष्णा की तरह बंसी बजाने लगी.
एक तध्य के अनुसार कृष्णा ने इसलिए राधा से विवाह नहीं किया ताकि साबित कर सकें की प्रेम और विवाह दो अलग अलग बातें हैं…प्यार एक नि:स्वार्थ भावना है …जबकि विवाह एक समझौते या व्यवस्था है. वो दिखाना चाहते थे की प्रेम आत्माओं का मिलन है. यह प्रेम का उच्चतम रूप है.
राधा का सुदामा के श्राप के कारन उसके बाद सामान्य मानव जाती में जन्म हुआ.
अब बताईये मैं क्या गलत करता हूँ अगर मेरे प्रेम निश्वार्थ है. किसी का मिलना, बाते करना मुझे भी भाया था. सामाजिक दायित्व के कारन या किसी अन्य कारन से हम दोनों अलग हुए. सबके कारन एक जैसे तो नहीं हो सकते। यहाँ कोई बड़ा या छोटा नहीं है. मैंने बराबर का दर्जा दिया उसे. पहले सोचता था कैसे कोई किसी एक ही के साथ सारी उम्र गुजार सकता है. जब उससे मिला तो पता चला ये उम्र तो सिर्फ उसके ख्याल से ही गुजर जाएगी। उसे पाने के लिए शायद मुझे एक और जनम लेना पड़ेगा. क्या फर्क पड़ता है अगर हम दोनों साथ नहीं। पास नहीं। मोहब्बत एक तरफ से भी निभाई जा सकती है. जैसा राधा ने निभाया, जैसे मीरा ने निभाया। दोनों का उम्र भर साथ चलना मुमकिन हो जरुरी तो नहीं। क्या हर मोहब्बत सिर्फ यही सोचकर की जाएगी। मिले तो ठीक नहीं मिले तो मोहब्बत दिल से मिट जाएगी।
आपके नजर में कृष्णा का प्रेम उच्चतर
मेरी नजर में मेरा प्रेम उच्चतर
ऐसे कई प्रेमी हैं, जो कभी किसी एक एहसास के लिए, कभी सिर्फ एक बार नजर के मिलने मात्र के लिए न जाने क्या क्या करते हैं. न जाने क्या क्या सहते हैं.
कृष्णा जन्माष्टमी पर अगर आपने कृष्णा से जुडी बातें पढ़ी है, उन्हें माना है, उन्हें पूजा है तो आपको हर प्रेमी को salute करना चाहिए। अगली बार आप जब भी कृष्णा के मंदिर जाएँ तो ये सोच कर जाएँ की दुनिया की हर love story अलग होती है खाश होती है. उसकी क़द्र करें
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एक प्रेमी – अक्स