अबे ! घनचक्कर ! सुबह – सुबह नींद लगी थी कि बेल बजाकर उठा दिए | तीन बजे सोया हूँ |
इतनी रात तक जागने की ऐसी क्या जरूरत पड़ गई ?
एक धांसू नोवेल हाथ गया था कुशवाहा कान्त का | क्या लव स्टोरी कि मत पूछो | खतम किया तब जाकर चैन की साँस ली और घुलट गया चौकी पर निढाल |
एक लव लेटर किसी ने भेजा , ज़रा पढ़ो तो | मेरे लिए अंगरेजी काला अक्षर भैंस बराकर | टी टी एम पी | टान – टूनकर मैट्रिक पास |
ज़रा मुँह धोकर आता हूँ तो लव लेटर की सील तोडता हूँ |
तुमने खोलकर पढ़ा क्यों नहीं ?
कल ही शाम को मदना साईन करके ले लिया था | आज सुबह कैसे याद आ गई कि चाचू के लिए किसी चाची ने लव लेटर लिखा होगा , तड़पा – तड़पाकर देंगे | बारह – तेरह का हो गया है , शरीर का विकाश तो हुआ लेकिन दिमाग का नहीं |
चाचू ! चाची का लव लेटर आया है | कहाँ – कहाँ मुँह मारते रहते हैं , भगवान के सिवाय कोई नहीं जानता | दस टक्की निकालिए , तभी दूंगा |
मरता क्या न करता !
दस टक्की दी और सीधे जान छुडाकर भागा – भागा तुम्हारे पास चला आया |
अबे ! कथा – कहानी बाद में , पहले खत का मजमून तो पढ़कर सुनाने के लिए
आहिस्ते – आहिस्ते लिफाफा खोला तो एकबारगी चोंधिया गया | एपोएंमेंट लेटर था |
अबे ! तकदीर के साड , तेरी तो लोटरी लग गई |
वो कैसे ?
हिन्दी टायपिस्ट के पद पर और यहीं कोर्ट में |
अब तो तुम्हारी मनोकामना भी पूरी हो जायेगी |
साफ़ – साफ़ बताव , बुझौवल मत बुझाओ |
पहले खालसा होटल में पार्टी फिर इसी शीतकाल में सगाई और फिर …
और फिर ?
गधे की दूम ! नहीं समझे ? मैं उसी स्वप्नपरी से तेरी शादी मकर संक्रांति के पहले ही २५ दिसंबर एक्समस को |
फिर ?
फिर क्या ?
फिर मैं कहाँ और तू कहाँ |
दोस्तों ! इंसान की जिंदगी में कब क्या हो जाय , कोई नहीं जानता , सिर्फ उपर वाले ही जानते हैं |
सबसे पहले संगीता को खुशी का समाचार दिया | रविवार की शाम को एक ऑटो लिया और तीनों मिलकर पार्टी का लुत्फ़ जमकर उठाया |
मैं ही पंडित बनकर संगीता के माँ – बाप से शादी की बात चलाई | वो भी बिना दहेज का |
लड़का हैंडसम है | कमासुत है | इसी शहर में | अच्छी पगार , मान सम्मान ऊपर से अतिरिक्त |
बात पक्की हो गई |
एक रात को बारह बजे चला आया , बेल बजाया | किवाड़ खुलते ही अंदर घुसकर बैठ गया |
इतनी रात को ?
डर लगता है |
किस बात से ?
रात में सप्नाते हैं कि मुझको चप्लिया रही है |
बेटा ! गुर सीखा देंगे कि पहली रात बिल्ली कैसे मारी जाती है |
गुरु ! तेरा सपोर्ट रहेगा तो नैया पार लग जायेगी |
इसमें भी कोई शक है क्या ?
राम – राम करके २५ दिसंबर को रविया की शादी हो गई |
दस दिनों तक बेल नहीं बजा , इन्तजार करते रहा |
सुबह – सुबह हीरापुर हटिया में मिला | मैंने आवाज दी | लजा रहा था |
अबे ! बिल्ली कैसी है ?
धांसूं !
–END–
लेखक : दुर्गा प्रसाद |