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Funny Hindi Story – Lizard
Photo credit: xenia from morguefile.com
हमारी परायी चम्पाकली
मैं यह तो नहीं पूछूँगा की तुम कैसी हो क्यूँकी मुझे पता है की मेरे घर की दीवारों और फर्श पर रेंग रेंग कर और मच्छर और कॉकरोच का सेवन कर कर के तुम काफी हृष्ट पुष्ट हो चली हो और अब तो तुम्हारे छोटे छोटे चम्पकलाल भी हमारे घर में नज़र आ जाते हैं। लेकिन तुम्हे और तुम्हारे परिवार के सदस्यों को हमारे घर में इस तरह डेरा डाल देख मुझपर और मेरे परिवार जनों पर क्या बीतती है वो व्यथा मैं इस पत्र के द्वारा तुम तक पहुँचाना चाहता हूँ ताकि तुम हमारी हालत समझ सको। अगर यह पत्र पड़कर तुम्हे ऐसा लगे की मैं एक दुखियारे मकान मालिक की तरह (जिसके घर में अनचाहे किरायेदारों ने कब्ज़ा जमा रखा है) तुम्हे अपने से निकलने के लिए कह रहा हूँ तो तुम समझ लेना की तुम्हे बिलकुल ठीक लग रहा है।और हाँ एक बात और बता देता हूँ तुम्हे की मुझे किराये का भी कोई लालच नहीं है।
“तू क्या जाने वफ़ा ओ बेवफा ” ना जाने किस घड़ी में तुमने मेरे कमलमुख से यह गाना सुन लिया और अपने आप को वफादार साबित करने के लिए तुमने मेरे घर में अपना संसार बसा लिया। तुम तो इस हद तक वफादारी निभा रही हो की अब तो घर के कोने कोने में ,हर अलमारी में और हर फर्नीचर के पीछे बस तुम या तुम्हारे छोटे चम्पकलाल ही दिखते हैं। माना की जब तुमने हमारे घर में पहली बार प्रवेश किया था तब मेरी श्रीमती जी गुनगुना रहीं थी की,”तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे।” किन्तु तुमने तो उनको गाने को दिल से ही लगा लिया और ज़बरदस्ती हमारे परिवार का हिस्सा बन बैठी। किन्तु आजकल तो वे यही गातीं है की,”जाएगा जाएगा जाएगा जाएगा जाने वाला जाएगा” पर यह सुनकर तो तुम्हारे कान पर जूं तक नहीं रेंगती।
आलम यह हो गया है की सुबह बाथरूम में नहाने का वक़्त हो या फिर रात को सोने का तुम अचानक ही दीवार पर से गिरकर हमला करके देती हो। संभलने का मौका भी नहीं देती। तुम्हारे इस बिन बताए किए गए हमले से हमारे तेज धड़कते हुए दिल से बस यही आवाज़ निकलती है की –
“गाता रहे मेरा दिल
मेरा घर नहीं तेरी मंजिल
कब जाओगी यहाँ से
ताकि चैन से बीते हमारे दिन ”
अरे कुछ तो दया करो हमपर। कम से कम रसोईघर को तो बख्श दो। हमारी कामवाली भी तुम्हे देखकर सकपका जाती है और बस यही कहती रहती है की –
“जा रे जा ओ हरजाई
देखी तेरी दिलदारी
कॉकरोच खिलाकर मैंने कर ली
कॉकरोच के दुश्मन से यारी
तुझको बालकनी में रखकर
तुझे रोज़ मच्छर खिलाकर
हारी मैं हारी
जा रे जा ”
मेरा चौदह वर्षीय बेटा भी तुम्हारे कारण चुप चुप सा रहने लगा है क्यूँकी तुम बिना बताए अक्सर उसके स्कूल बैग में घुस जाती हो और फिर जब अपनी क्लास में वो किताब निकालने के लिए बैग खोलता है तो तुम अचानक से ही अपने अजीबोगरीब करतब करते हुए बाहर निकल आती हो और क्लास में मौजूद टीचर और बाकि के बच्चों के बीच हलचल मचा देती हो। मेरा बेटा देवदास बन गया है (आजकल स्कूल से वापस आने के बाद खुद को कमरे में इस डर से बंद रखता है कि कहीं कोई उसके ऊपर देवदास की सीक्वल ना बना दे) और ना जाने तुमसे कितनी बार बता चुका है की –
“क्या से क्या हो गया
चंपा आ आ आ तेरे राज में
आदिवासी मैं बन गया
तेरे राज में ”
तो हे चम्पाकली अगर तुम्हारे ना दिखने वाले कानों तक मेरी और मेरे परिवार की व्यथा कथा पहुँच रही हो तो कृपया करके अपने परिवार सहित हमारे घर से पलायन करें ताकि हम अपने घर को जंगल ना समझ कर अपना घर समझ कर रह सकें। और तब तक ऊपर वाले से यही प्राथर्ना है की-
“चम्पाकली से हर दिन
इक नयी जंग है
जीत जाएँगे हम
तू अगर संग है “
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