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Prabandhak

Published by Mahesh Rautela in category Friends | Hindi | Hindi Story with tag college | fight | professor | student

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Hindi Story – Prabandhak
Photo credit: chamomile from morguefile.com

आदमी अशान्ति के बीच शान्ति चाहता है। अशान्ति के लिये भी वह अनेक संदर्भ सृजित कर लेता है।उसका निजी स्वार्थ इसमें प्रमुख भूमिका निभाता है।

मैं रिसर्च स्कालर मैस का महाप्रबन्धक था। एक साथी रमन जो शोध छात्र था उसका एक दिन कालेज के प्रवक्ता से वालीवाल को लेकर कहासुनी हो रही थी। मैं छात्रावास की पहली मंजिल पर खड़ा था। और पूरे घटना क्रम को देख रहा था। दोनों वालीवाल को अपने कब्जे में करने के लिए लगभग २००मीटर तक संघर्ष करते रहे।

थोड़ी देर में २-३ छात्र प्रवक्ता के पक्ष में आ गये। धीरे -धीरे खबर फैल गयी कि प्रवक्ता को एक शोध छात्र ने पीट दिया है। इस पर इंजीनियरिंग कालेज के छात्र काफी उत्तेजित हो गये। और झगड़ा आन्दोलन की शक्ल में बदल गया। माँग उठने लगी कि शोध छात्र रमन को शीघ्र कालेज से निकाल दिया जाय। छात्र बहुत आक्रामक हो उठे थे।रमन ने गेस्ट हाउस में शरण ले रखी थी।तभी छात्रों के आनदोलन को देख कालेज के निदेशक ने मौखिक आदेश दे दिया कि रमन को बर्खास्त किया जाता है और वह अगली ट्रेन से घर चला जाय।मैं रमन से मिलने गेस्ट हाउस गया तो देखा कि वह रो रहा था।

अपनी बर्खास्तगी पर वह मुझे बोला “घर किस मुँह से जाऊँ? घर वाले मेरे बारे में क्या सोचेंगे?”

मैंने उसे ढाढस बधाया कि कुछ नहीं होगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैंने सब अपनी आँखों से देखा है। कल घटना की जाँच की माँग रखते हैं। मैंने अपने सभी साथियों और परिचित प्रोफेसरों को घटना की सही जानकारी दी।उन्हें बताया कि कोई मारपीट या अभद्रता नहीं हुई थी। साधारण सी बात हुई थी। प्रवक्ता ने व्यर्थ में अपनी इज्जत से इस घटना को जोड़ लिया था। वे मेरी बातों से सन्तुष्ट थे और निदेशक से उन्होंने बात की।

निदेशक ने एक सदस्यीय जाँच बैठा दी।भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर थे जिन्होंने जाँच की। मैंने आँखों देखी सभी बातें उन्हें बतायीं। रमन इस जाँच के बाद निर्दोष पाया गया।और सब कुछ सामान्य हो गया।कुछ समय बाद, शोध कार्य के दौरान ही रमन को प्रवक्ता पद पर नियुक्ति मिल गयी थी। उसका भूतपूर्व साथी भी शोध के लिए इसी कालेज में आ गया था। और उन दोनों का निदेशक के यहाँ आना-जाना होने लगा था।

उन दिनों छात्रावास के मैसों में प्रोफेसर व स्टाफ के कुछ लोग जो अकेले या बैचुलर थे, खाना खाते थे। मैं भी अब कालेज का स्टाफ बन चुका था। रमन और उसके साथी को मेरा मैस का महाप्रबन्धक बनना रास नहीं आ रहा था। अत: रमन ने निदेशक से लिखित शिकायत कर दी कि स्टाफ के लोग मैस चलाने में दखल देते हैं। इस शिकायत की सभी जगह चर्चा होने लगी। और हमारे मेस के सदस्य उसे सबक सिखाना चाहते थे।यह विडम्बना ही थी कि मेरे प्रयत्नों के कारण रमन कालेज में था और वही अब मेरे विरोध सें खड़ा हो गया था।

हमारी मैस के दो छात्र एम.टेक. करते थे। दोनों समाजवादी विचारधारा के थे और राजनैतिक समूह से जुड़े थे।एक का नाम सिंह था और दूसरे का हुसैन। मेरा उनसे परिचय बहुत अधिक नहीं था। उन्होंने स्वयं योजना बनायी और शाम को रमन के यहाँ पहुँच गये। उसे धमकाया और बोल कर आये कि नीचता के काम करोगे तो यहीं काट कर रख देंगे।अत: सुधर जाओ।

दूसरे दिन हम २५-३० लोग रामदीन की दुकान पर शाम ६बजे के लगभग चाय पी रहे थे । तभी रमन भी वहाँ चाय पीने पहुँचा।तभी सबने रमन से कहा” माफी माँगो।” सबने उसको घेर लिया। वह घबरा गया और बोला “माफ कर दो मुझे।” तो सभी बोले “पैर छू कर माफी माँगो।” तो वह मेरी ओर मुड़ा और पैर छू कर बोला ” माफ कर दीजिए।”

मैं चुप रहा। वह वहाँ से अपने आवास पर गया और शिकायत पत्र बना कर निदेशक के आफिस में दे गया और स्वयं रात की ट्रेन से घर निकल गया। इस घटना की जाँच भू -भौतिक के प्रोफेसर साहब ने की थी।वे हार्वड से पढ़े थे।रमन जाँच के दिन नहीं आया। सभी लोग मेरे मैस के थे। प्रोफेसर साहब को सभी लोगों ने पूरी कहानी बतायी।प्रोफेसर साहब ने कहा “जाँच के जो बिन्दु हैं उनका ही उत्तर देना है।” फिर प्रश्न-उत्तर शुरू हुए। पैर छूने की बात आयी तो सभी बोले “सर, आदर देने के लिए किया होगा।”

जाँच का परिणाम हमारे पक्ष में आया।मैं बाद में कहीं और चला गया। मुझे सिंह और हुसैन का स्मरण होता है कि कुछ लोग थोड़े परिचय में किसी के लिए इतना सब कर सकते हैं। बाद में रमन ने कालेज की नौकरी छोड़ दी। सुना है आजकल वह किसी विश्वविद्यालय का कुलपति है। सुधरा या नहीं पता नहीं। पद पाना या लेना अलग बात है और अच्छा नागरिक बन कर पद पाना अलग बात।

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