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Hindi Story – Wo nav varsh kab aaega?
Photo credit: clarita from morguefile.com
निम्मी ने अपनी तोतली बोली से पूछा ,”नानाजी नानाजी, माँ कब आएगी? नव वर्ष तो आने वाला है? आपने तो कहा था कि नव वर्ष पर माँ आएगी। बताओ ना नानाजी। हमें उनके स्वागत की तैयारी भी तो करनी है। मै माँ के लिए घर को साफ़ कर देती हूँ , आप उनकी मनपसंद मिठाई ले आना। फिर जब वो आएंगी तो मै उन्हें अपना गाना सुनाऊँगी, नाच दिखाउंगी। माँ को इतना प्रसन्न कर दूंगी कि वो मुझे छोड़ कर फिर कभी नहीं जाएंगी। बोलो ना नानाजी , सब लोग कह रहे हैं कि नव वर्ष आने वाला है, नव वर्ष आने वाला है। ”
तीन वर्ष की नन्ही सी निम्मी की तोतली बोली ने नाना के ह्रदय को अपार दुःख से भर दिया। कैसे बताए इस फूल सी बच्ची को कि इसकी माँ जहाँ गई है वहां से लौटकर कभी कोई नहीं आया है। कैसे दुखाऊँ इस मासूम का ह्रदय, कैसे…. आखिर कैसे…?
निम्मी की माँ की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। तभी से वो अपने नानाजी के पास रहती थी। पिता सदा के अमेरिका चले गए थे। एक प्यारी और फूल सी बच्ची माँ -बाप के प्यार, उनके अपनेपन को तरस रही थी। जब-जब निम्मी अपने साथ के बच्चों को अपनी माँ के साथ खेलते देखती तो उसके मन में एक हूक सी उठती थी। उसका बचपन भी माँ के आँचल तले ममता बटोरना चाहता था, उनके मुख से मीठी सी लोरी सुनना चाहता था।
आज निम्मी भी और बच्चों की भांति अपनी माँ के साथ होती यदि उस तीव्र रफ्तार वाली गाड़ी ने उसकी माँ को टक्कर नहीं मारी होती। संध्या, निम्मी की माँ ऑफिस के पश्चात, निम्मी के लिए खिलौने और मिठाई लेकर अपने घर की ओर बढ़ रही थी। उसके पति कुछ समय के लिए विदेश गए थे तो वो अपने पिता के पास ही रह रही थी। सड़क के किनारे चलने पर भी जाने कहाँ से से एक तीव्र गति से आती एक गाड़ी ने संध्या से उसका जीयन और निम्मी से उसकी प्यारी माँ उम्रभर के लिए छीन ली।
तब से अब तक निम्मी अपनी माँ के प्यार एवं दुलार के लिए तरस रही है। और नानाजी, अक्सर सड़क पर आने जाने वाले वाहनो को देखते हैं और तेज वाहन चालकों को ध्यान से देखकर यही बड़बड़ाते है कि आज किसकी माँ, किसका पिता छीनोगे ? आज किस मासूम का घर उजाड़ोगे ?किसका?
बार बार निम्मी के पूछने पर कि माँ कब आएगी उन्होंने ये कहकर टाल दिया कि नव वर्ष पर तेरी माँ आएंगी।
निम्मी बोली , “नानाजी, ये नव वर्ष क्या होता है? क्या इसमें सब कुछ नया हो जाता है? ”
नानाजी ने हर्ष से उत्तर दिया ,” हाँ हाँ बेटा, नव वर्ष सभी के लिए नए समाचार, नई प्रसन्नता लेकर आता है इसीलिए हम इसका स्वागत करते हैं।”
निम्मी, “तो क्या भगवान जी मेरी माँ को भी नया करके वापस भेज देंगे?”
नानाजी ने सोचा कि बच्ची का ह्रदय दुखाने से अच्छा है कि मै उससे असत्य कह दूँ, कुछ ही दिनों में ये अवश्य भूल जाएगी। नानाजी भी स्नेह से बोले, “हाँ ,हाँ बेटा, तेरी माँ भी नव वर्ष पर वापस आ जाएँगी। तू बस प्रसन्न रहा कर। ”
और उसी दिन से ये निश्छल,अबोध लड़की नव वर्ष के आने की बात जोह रही है। नव वर्ष उसकी माँ को जो लेकर आएगा। आज वर्ष का अंतिम दिन है, पता नहीं निम्मी को कैसे पता चल गया। तभी वो अपने नानाजी से माँ के स्वागत की तैयारी करने के लिए विवश का रही थी।
कितना भोला होता है ये बचपन, जिसमे बालक एक कल्पनालोक में ही विचरता है, उसे जीवन की वास्तविकता का कोई ज्ञान नहीं होता है। क्या सच है क्या झूठ इसमें वो बालमन अपना समय व्यर्थ नहीं करता। सदा ही उत्साहित रहता है हर बच्चा।
नानाजी धीरे से बोले, “हाँ हाँ बेटा, अवश्य ही तैयारी करते हैं. माँ अवश्य आएंगी। ”
ऊपर से तो कह दिया पर अपनी वाणी का खोखलापन उन्हें कहीं भीतर तक हिला गया। नानाजी इसी उहापोह में थे कि कल जब नव वर्ष आएगा तो मै इस नादान बच्ची को क्या उत्तर दूंगा? इसके उत्साह को मै कैसे तोड़ दूँ … कैसे …. ?क्या करूँ ? कैसे समझाऊँ इस बच्ची को ? कैसे …? आखिर कैसे …….? नानाजी पहले ही अपनी बेटी की अकाल मृत्यु के दुःख से बाहर नहीं आ पाए थे, ऊपर से इस नन्ही सी निम्मी का दर्द उन्हें और साल रहा था। बिना किसी अपराध के ये बच्ची अपनी माँ के बिछोह का दर्द पी रही थीं।
निम्मी चहकती हुई बोली, “नानाजी उठो, सुबह हो गई। चलो तनिक तीव्रता दिखलाओ। आज वो नव वर्ष आ गया नानाजी। आज वो नव वर्ष आ गया। आज मेरी माँ आएगी। चलो ना नानाजी उठ भी जाओ अब। ”
अश्रुपूर्ण आँखों से नानाजी बोले , “निम्मी ! चल आज मै तुझे कहीं घुमा के लाता हूँ। ”
निम्मी लाड से , “आज तो मै यहाँ से हिलूंगी तक नहीं। पता नहीं कब भगवान जी माँ को भेज दे? हमें यहाँ न पाकर वो दुखी होकर वापस चली जाएगी। ना ना, आज मै माँ का रास्ता देखूँगी।जब वो आएंगी तो मै उनकी गोदी में बैठूंगी। मुझे माँ के पास बहुत सुकून मिलता है नानाजी। ”
नानाजी स्नेह से बोले, “निम्मी ! ये सारी बातें तूने कहाँ से सीखीं ? चल झटपट तैयार हो जा, मै तुझे टॉफ़ी, खिलौना, या जो तू कहे वो ही दिलाऊंगा। चल बच्ची जल्दी चल। ”
निम्मी अकड़कर बोली, “नानाजी ! कितनी बार आपको समझाऊँ कि आज मै कहीं नहीं जा सकती। माँ की प्रतीक्षा जो करनी है। और आज तो मै उनके हाथों से ही कुछ खाऊँगी अन्यथा भूखी ही रहूंगी। ”
नानाजी का कलेजा मुंह को आने लगा,” ना ना बेटी ऐसा नहीं कहते। अभी कुछ खा ले, जब माँ आएगी तो उनके हाथ से भी खा लेना। ठीक है मेरी लाड़ो ?”
निम्मी ने आशाभरी आँखों से नानाजी की ओर देखा और पूछा , “नानाजी, माँ आएगी ना ? आज तो नव वर्ष है। यदि आज माँ नहीं आई तो मै समझ जाउंगी कि भगवान हमारी पुकार नहीं सुनते हैं। वो बहरे होते हैं। वो बहुत ही गन्दे …………. . ”
नानाजी ने तत्परता से निम्मी के मुख पर हाथ रख दिया, “नहीं ऐसा नहीं कहते बच्ची। ऐसा नहीं कहते। ” नानाजी ने अपने ह्रदय की पीड़ा को दबाने का भरसक प्रयत्न किया । किन्तु आँखे छलक ही गईं ।
निम्मी ने नानाजी के आंसू पोछते हुए पूछा, ” आखिर माँ हमसे रूठी क्यों है ? बताओ ना नानाजी। मै उनसे अपने सारे अपराधों के लिए क्षमा मांग लूँगी और उनको वचन भी दूँगी कि आगे से उन्हें कभी नहीं सताऊँगी। मै भी अन्य बच्चों की भांति अपनी माँ के साथ खेलना चाहती हूँ उनके कोमल हाथों के स्पर्श की याद मुझे अभी तक है। नानाजी कृपा कर भगवानजी से कहिये न कि मेरी माँ मुझे वापस दे दे। आज मै केवल अपनी माँ के हाथों से ही भोजन करूंगी। ”
नानाजी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? उन्होंने निम्मी के पिता को फ़ोन लगाया किन्तु कई बार घंटी बजने पर भी जब फ़ोन नहीं उठा तो वो हताश हो गए। हैरान,परेशान नानाजी को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो वो घर के मंदिर में जाकर असहाय से बैठ गए।
कहते हैं कि जब सारे रास्ते बंद हो जाते है तो मात्र एक ही रास्ता सुझाई देता है, और वो है भगवन की आस । नानाजी मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगे, ‘हे ईश्वर! हे परमपिता परमेश्वर! ये कैसा न्याय है तेरा ? क्यों तू उस अबोध बच्ची को उसकी माँ के प्यार से वंचित रख रहा है? उसे आज माँ ना मिली तो कदाचित उसका विश्वास तेरे ऊपर से सदा के लिए उठ जाएगा। कुछ तो चमत्कार कर। अपनी दया के सागर की एक बूँद हम पर बरसा दे।
और नानाजी फूटफूटकर रोने लगे। रोते -रोते कब उनकी आँख लग गई उन्हें पता ही नहीं चला।
उनकी तन्द्रा तब भग हुई जब निम्मी की उत्साह पूर्ण गूँज उनके कानो में पड़ी, “नानाजी !!! नानाजी!!!! देखो तो कौन आया है? मेरी माँ आ गई। मेरी प्यारी माँ आ गई। धन्यवाद भगवानजी आप बहुत अच्छे है।”
नानाजी को अपने कानो पर विश्वास ही नहीं हुआ। क्या सच में भगवन ने मेरी मृत बेटी, निम्मी की करुण पुकार सुन वापस भेज दी? क्या सच में चमत्कार हो गया?
स्वयं को सँभालते हुए किसी तरह नानाजी बाहर आए। उन्होंने किसी स्त्री को घर से बाहर जाते देखा।
निम्मी उसाह से बोली ,” पता है नानाजी ! माँ के हाथों से भोजन करने की बात ही अलौकिक सुख देती है। मेरी माँ आ गई। वो नव वर्ष आ गया जो मेरी प्रसन्नता, और मेरी माँ को लेकर आया है। ”
नानाजी लपककर बाहर गए। ये देखने कि कौन निम्मी की माँ के रूप में आया था। तभी बाहर खड़ी आकृति से उनके सारे प्रश्नो के उत्तर मिल गए। वो और कोई नहीं उनकी पड़ोस में रहने वाली एक विधवा स्त्री थी जो स्कूल में नौकरी कर अपना पेट पालती थी। नानाजी ने अपने हाथ जोड़कर उसका धन्यवाद दिया तो उसकी आँखे भर आईं।
आज सच में निम्मी की प्रसन्नता और उत्साह देखकर नानाजी को पूर्ण रूप से विश्वास हो गया कि भगवान है, अवश्य है, बस ह्रदय से पुकारने की आवश्यकता है. यदि हम हृदय से पुकारे तो वो दौड़ा चला आएगा। अवश्य आएगा।
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