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When An Angel Came To Save My Wife!

Published by Durga Prasad in category Family | Hindi | Hindi Story with tag blood | doctor

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Hindi Story – When An Angel Came To Save My Wife!
Photo credit: cohdra from morguefile.com

चाहे कारण जो भी हो , आजकल चारों तरफ क्या शहर , क्या गाँव सभी जगह नर्सिंग होम आप को देखने को मिल जाएँगे. कुछेक शहरों में तो ये अनगिनत संखाओं में मिलते हैं – आप चाहकर भी सबों का नाम याद नहीं रख सकते. मेट्रो सीटिज की तो बात ही निराली है. रोगानुसार नर्सिंग होम आप को मिल सकते हैं. इन्हें सुपर स्पेसिलिटी हॉस्पिटल के नाम से भी जाना जाता है. कुछेक तो इतने सुसज्जित हैं कि यहाँ सभी बीमारियों का ईलाज हो जाता है – ए टू जेड सुविधा उपलब्ध है, केवल आप की पॉकेट में प्रयाप्त रकम होनी चाहिए.कुछेक इतने अच्छे हैं जहां वाजिब दर पर सेवा भावना से ईलाज मुहैया कराये जाते हैं. इनके चिकित्सक, नर्स, अधिकारी , एवं कर्मचारी पुरी निष्ठा से अपने कर्तव्य एवं दायित्व का निर्वहन करते हैं, प्यार बांटे हैं सो अलग, लेकिन कुच्छेक ऐसे भी हैं जो निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर गलत काम भी करने में इंसानियत को तार – तार कर देते हैं – यहीं हमारा सर शर्म से झूक जाता है.

सच पूछा जाय तो ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे समाज को बूरा सन्देश जाता है.हमारा जीवन अमूल्य है जिसे सहेजकर रखने में सभी का सहयोग अपेछित है.

वो कहते हैं न कि कोर्ट – कचहरी और हॉस्पिटल का चक्कर भगवान दुश्मन को भी न दे क्योंकि यह चक्कर जान से तो मारता नहीं , लेकिन प्रेत की तरह परेशान इतना करता है कि नानी याद आ जाती है. बहुत से ऐसे वाक्या हैं जिनसे आप भली – भांति परिचित हैं . यहाँ आपबीती का जिक्र करना अप्रासंगिक नहीं होगा. अचानक मेरी पत्नी की ब्लीडिंग शुरू हो गई . मासिकधर्म ( Menses ) का भी वक़्त नहीं था. मैं और मेरी पत्नी काफी चितित थे कि अचानक यह बीमारी कैसी हो गयी. स्थानीय डॉक्टर को दिखलाया गया तो उसने किसी अच्छे स्त्रीरोग विशेषज्ञ से सलाह करने की बात कही. उस समय हमारे छोटे – छोटे छः बच्चे थे – एक लडकी और पांच लड़के – उम्र लगभग २ , ५ , ७ , ११ और १५ वर्ष . मैं काफी चिंतित था इस बात से कि छोटे – छोटे बच्चे हैं – कहीं कुछ गंभीर बीमारी न निकल जाय जांच में.

हम दूसरे दिन एक नर्सिंग होम में गये और वहाँ के लोकप्रिय डॉक्टर से दिखलाया. देखने के बाद उसने कई जांच लिख दिए. रिपोर्ट आने में दो- तीन दिन लग गये . रिपोर्ट देखने के बाद उसने कहा कि तीन – चार दिन दवा खिलाईये, उसके बाद फिर बताया जाएगा कि क्या करना है. हमने केबिन ले रखी थी. एक व्यक्ति हमेशा पेशेंट के पास रहता था. रात को मैं अपनी पत्नी के पास रहता था . सुबह कोई आता था तो मैं घर चला जाता था . ब्लीडिंग तो हो रही थी, लेकिन उतनी मात्रा में नहीं . हमें कुछ सुधार दिख रहा था. सुबह – शाम रोज मुझसे मिलने और पत्नी का हाल – चाल जानने लोग अक्सरां आया करते थे. डॉक्टर की बेटी, जो खुद डॉक्टर थी और जो मेरी पत्नी को सुबह – शाम देखने आया करती थी , ने मुझे सूचित किया कि बच्चेदानी में सिस्ट है और जखम भी है , इसलिए बच्चेदानी निकाल देनी है , नहीं तो केंसर होने की संभावना हो सकती है. दस हज़ार रुपये आज जमा कर दीजिये , कल शाम को ओपरेसन हो जाएगा, कोई चिंता की बात नहीं है , आठ दस दिन के बाद घर ले जा सकते हैं . बच्चेदानी निकालने की बात सुनकर हम घबडा गये , पत्नी भी एवं घर के दूसरे लोग भी. वजह साफ़ थी कि घर में छोटे – छोटे बच्चे हैं , सब की देख – रेख की जरूरत है , सभी बच्चे स्कूल भी जाते हैं . ऐसी अवस्था में गर्भाशय (Uterus) का निकलवाना बड़ी परेशानी की बात थी.

मैं पत्नी के सिरहाने बैठकर , गाल पर हाथ देकर चिंता में डूबा हुवा था . पत्नी का भी चेहरा लटका हुआ था , वो भी नहीं चाहती थी कि युटेरस निकाल दिया जाय. मैं पत्नी को समझा रहा था कि भगवान ही अब हमारी इस संकट से उबारेंगे. हम भी नहीं चाहते हैं कि ऐसी अवस्था में जब बच्चे छोटे – छोटे हैं , तुम्हारा युटेरस निकले. तभी रोज की भांति नर्स आयी – दवा और इंजेक्सन देने. उस वक़्त हमारे सिवा केबिन में कोई नहीं था – मैं और मेरी पत्नी सिर्फ. उसने भीतर से छिटकिनी लगा दी और मेरे पास बैठ गयी. जो बात बोली वह कलेजा हिला देनेवाली थी. उसे हमारे बच्चों को देखकर शायद दया आ गयी हो . वह हमारे करीब आकर बैठ गयी और बोली :

भैया ! दीदी को जितनी जल्द हो सके यहाँ से दूसरी जगह ले जाईये . दीदी को वैसी बीमारी नहीं है कि उनका युटेरस निकाला जाय . सिस्ट वगेरह कुछ नहीं है. मैंने आज सुबह डॉक्टर और उनके पिता को बात करते सुना कि युटेरस निकाल दिया जाय , तो दस – पंद्रह हज़ार का बिल बन ही जाएगा. मैं क्रिस्चन हूँ और जीसस क्राईस्ट पर मैं भरोसा करती हूँ. किसी को भी पता न चले नहीं तो मेरी नोकरी चली जायेगी. युटेरस निकालने की जरूरत नहीं है. जख्म है . दवा से ही ठीक हो जायेगी दीदी . छोटा – छोटा बच्चा देखकर मुझको दया आ गयी. युटेरस निकालने से दीदी बहुत कमजोर हो जायेगी. भैया कल शुबह ही कोई तगड़ा आदमी के साथ आकर रिलीज करवाकर ले जाईये , डाक्टर उल्टा सीधा समझा – बुझाकर रखना चाहेगा , मत रहिये.

वह खुद घबड़ाई हुयी इतनी थी कि बोलते वक़्त कांप रही थी. उसको नोकरी जाने का डर तो था ही उसकी जान भी जा सकती थी. हम तो इस बात को सुन कर सन्न हो गये कि इतना लोकप्रिय डॉक्टर – इतना लोकप्रिय नर्सिंग होम – कैसे ऐसी घिनौनी हरक़त कर सकता है. मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था , लेकिन जिस विश्वास के साथ नर्स ने हमें जान बचाकार निकल जाने की बात कही थी उसको भी नजरअंदाज करना हमारे लिए मुस्किल था. वह तो झटपट चली गयी , लेकिन हम आगे की कार्यवाही के बारे सोचने में निमग्न हो गये.

तभी मेरी पत्नी की बड़ी बहन मालती अपने पति शिव शंकर बाबू के साथ केबिन में प्रवेश किये और हाल – चाल पूछने लगे. जब हमने इस बात की और उनका ध्यान आकर्षित किया तो वे भी सुनकर दंग रह गये. उन्हें भी आश्चर्य हुआ कि इतना बड़ा डाक्टर पैसों के लिए ऐसा कुकृत्य भी कर सकता है. उस रात को मालती वहीं अपनी छोटी बहन के पास रह गयी और शिव शंकर बाबू और मैं लौट गये. निर्णय ले लिया गया कि किसी भी कीमत पर कल रिलीज करवा लेना है.

अब मेरे सामने एक ऐसे व्यक्ति की तलाश करनी थी जिसमें दमखम हो और डॉक्टर से अपनी दबंगता के बल पर मेरी पत्नी को रिलीज करा सके. उस वक़्त मेरे दोस्त शिवशंकर बाबू का अनुज बासुदेव बर्मन ऐसे ही किस्म के आदमी थे. मैंने उससे इस सम्बन्ध में बात कि किसी भी कीमत पर कल शुबह मेरी पत्नी को रिलीज करवा लेना है . मैंने उसे सारी बातों से भी अवगत करवा दिया.

उसने कहा , ‘ आप निश्चिन्त रहिये , रिलीज तो डॉक्टर को करना ही पड़ेगा , पेशेंट हमारा है , हम ले जाना चाहते हैं अपने रिस्क पर. आनाकानी तो करेगा , लेकिन मैं नहीं मानूंगा. आप यह भी तबतक पता लगा लीजिये फिर कहाँ ले जाना अच्छा होगा. उधर से ही रिलीज करवाके वहाँ ले चलेंगे. ‘

सलाह माकूल था . मैं ने अपने फेमली डॉक्टर एम के साहा से बात की तो उसने मुझे अपनी मौसी डॉक्टर शीला कुंडू के नाम एक लेटर लिखकर मुझे थमा दिया और उम्मीद जताई , विश्वास दिलाया कि वहाँ आप की पत्नी का ईलाज सही ढंग से हो जाएगा , चिंता की कोई बात नहीं है. सुबह होते ही बासुदेव को साथ लेकर आठ बजे नर्सिंग होम हम पहुँच गये. डॉक्टर साहब से मिलकर हमने पत्नी को रिलीज कर देने का आग्रह किया तो वे उखड़ गये . बोले ,’ आज ही शाम को ओप्रेसन फिक्स है , कैसे पेशेंट को रिलीज किया जाय. ‘

बासुदेव ने कड़क आवाज में कह दिया कि आपको हर हालत में पेशेंट को अभी रिलीज करना है, हम कुछ भी सुनने को तैयार नहीं . आप बिल बनवा दीजिये , हम अबतक का पेमेंट कर देते हैं.

उसने अपनी बेटी से सलाह – मशविरा किया और मेरी पत्नी को रिलीज करने का आदेश दे दिया . हम उनसे मुक्ति पाकर डॉक्टर शीला कुंडू से मिले , डॉक्टर मानस का लेटर भी दे दिया. उसने पत्नी को अपने नर्सिंग होम में भरती कर ली. कई तरह की जांच हुयी. तीसरे दिन शाम को ओप्रेसन किया गया. युटेरस के मुंह पर किसी वजह से जख्म हो गया था जिससे ब्लीडिंग हो रही थी.

दूसरी शाम को डॉक्टर शीला कुंडू ने मुझे बुलाया और सुबह आठ बजे डिस्चार्ज करने की बात रख दी और यह भी बता दी कि उस दिन हमारा होली का त्यौहार है , छोटे – छोटे बच्चे हैं घर पर , इसलिए अहले सुबह घर ले जाईये और बाल – बच्चों के साथ होली का त्यौहार मनाईये, बिल आज ही पे कर दीजिये. हमने बिल बनवाया और भुगतान कर दिया. उस शाम को मैं पत्नी के साथ केबिन में रह गया . गोबिंद मेरा छोटा भाई खाना लेकर आया तो घर समाचार भेजवा दिया कि कल शुबह छुट्टी हो जायेगी , हम किसी गाड़ी से लेकर नौ बजे तक आ जायेंगे.

दूसरे दिन हम आठ बजते – बजते हम तैयार हो गये . एक टेक्सी मंगवा ली और घर चले आये. मेरी बड़ी बेटी सुमन माँ को स्वस्थ देखकर काफी खुश हुयी , बच्चे भी माँ से लिपट गये . आस – पड़ोस की महिलायें भी पत्नी को देखने चली आयी. घर में खुशी का माहौल छा गया. होली का त्यौहार की खुशी थी सो अलग. आज इस घटना के घटे करीबन इक्कीस साल हो गये , लेकिन जब भी उस नर्सिंग होम की तरफ से गुजरता हूँ तो मन में उस दिन की सुसुप्त घटना जीवंत हो उठती है. यही नहीं हम नतमस्तक हुए बिना अपने आपको रोक नहीं पाते उस नर्स के समक्ष , जो देवदूत बनकर उस शाम को आयी थी मेरी पत्नी को मुशीबत से उबारने -एक तरह से जीवनदान देने के लिए. शत – शत कोटी उन्हें प्रणाम !

आत्मकथा से :
लेखक : दुर्गा प्रसाद , बीच बाज़ार , जीटी रोड , गोबिंदपुर , धनबाद , तिथि : १५ सितम्बर २०१३ , दिन : रविवार |
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