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Hindi Family Story – My Sweet Home
Photo credit: AcrylicArtist from morguefile.com
पटाखों के शोर-गुल में घर के अन्दर पूजा-अर्चना चल रही थी… इस घर को पैदा हुए आज पूरे ७ साल हो गए… दिवाली के चार-दिन पहले ये घर हमारी दुनिया में आया.. और इन ७ सालों में इस घर ने हम सब सदस्यों को अपने में समेट लिया. वैसे तो काफी समय से इसे अपने पास लाने की इच्छा थी, लेकिन स्थिति बिलकुल अलग थी… इस शहर में खुद के पाँव पर खड़े रहने में ही समय लग जाता है…इस प्यारी सी चीज़ को कैसे सहेज कर रखते…बाप-दादा ने सारी जिंदगी इसको पाने के लिए लगा दी. इसलिए इन सात सालों में इस घर के एक एक कोने को मेरी माँ ने अपने हाथों से सजाया था. चिंटू सबसे बड़ा उत्साही कार्यकर्ता था, जो माँ के कामों में हाथ बटा रहा था.
मेरे लिए इस घर की सबसे आकर्षक जगह थी, इसकी छत… इतनी जगह किराए से रह चुका था…हर बार छत मकान मालिक की होती. मेरे लिए घर से ज्यादा उसकी छत थी, जो मुझे सपनो में आती थी. छत में सुबह-सुबह कुर्सी लगा के, बीवी के हाथों की चाय पीना…वाह…
बचपन में मुझे मेरे दोस्त राकू बुलाते थे…जो अब राकेश हो चूका है… दिवाली के दिन सारे बच्चे पटाखे फोड़ते…हर चेहरा दिवाली की रौशनी में चमक रहा था, पर मैं चुप-चाप एक कोने में बैठा था. तभी पापा ने मुझे चुपचाप एक कोने में बैठे देखा….वो मेरे पास आये….और मुझसे ऐसे बैठने का कारण पुछा…उन्हें जानकार आश्चर्य भी हुआ, और कोतुहल भी…कि मैं दिवाली में बम नहीं फोड़ना चाहता था. मुझे बस एक फुलझड़ी जलानी थी और वो उसे कोई दे नहीं रहा था. उन्होंने मेरी छोटी बहन पिंकी के पटाखों में से फुलझड़ी का एक पैकेट निकाला और मुझे दे दिया..
“इतनी सारी नहीं…बस दो बहुत हैं…” – मैंने ने पैकेट से दो फुलझड़ियाँ निकाल कर कहा.
“क्यों पटाखे तुम्हें अच्छे नहीं लगते ?”- पापा ने कौतुहल दूर करने के लिए मुझसे ये सवाल पूछा.
“बहुत ज्यादा नहीं…आप कहते हो,ना ये पैसे की बर्बादी है… इतने पैसे खर्च करके हम लोग जला देते हैं, और बदले में क्या मिलता है..”शोर और धुँआ. इसलिए मुझे पटाखे नहीं चाहिए आप वो मेरी पॉकेट मनी में जमा कर दो “- मैंने पापा को कहा…
“अच्छा और फिर उन पैसों का क्या करोगे?”- पापा ने पूछा.
“मैं ना…उन पैसों से ईंटें खरीदूंगा….और जब ढेर सारी ईंटें हो जाएँगी.. तो उन सबको जोड़ के, हम सब के लिए घर बनाऊंगा…”
पापा मुझे एकटक देखते रहे…वो राकू की अन्दर छिपे राकेश को तलाश रहे थे….
“राकेश बेटा, प्रसाद….”
पूजा समाप्त हो चुकी थी…पापा प्रसाद लिए खड़े थे… मैंने पापा के पैर छुए….प्रसाद की थाली में प्रसाद के बगल में फुलझड़ी थी…पापा ने मेरे हाथ में फुलझड़ी दी और कहा-
“Happy Diwaali, राकू बेटा”-
मैंने पापा के हाथ से फुलझड़ी ली और छत की ओर दौड़ लगा दी…
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