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Madhavi

Published by manojchamoli in category Family | Hindi | Hindi Story with tag death | job | parents | suicide

माधवी – Madhavi : (I was single child of my parents, and pampered because I was born many years after my parents’  marriage. Read family short story in Hindi.)

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Hindi Family Short Story – Madhavi
Photo credit: rollingroscoe from morguefile.com

मैं अपने माता पिता की एकलौती औलाद था. शादी के करीबन 15 साल बाद मेरा जनम हुआ, इसलिए मेरी परवरिश बहुत ही लाड़-प्यार से हुई. वैसे तो हम मिड्ल क्लास को बिलॉंग करते थे पर फिर भी घर में किसी चीज़ की कमी नही थी. मेरा बचपन बिल्कुल राजसी था, एकलौता होने के ये फाएेदे होते ही हैं और मैं तो फिर शादी के इतने साल बाद पैदा हुआ था. किसी भी चीज़ में सोचने भर की देर थी और वो सामने होती थी. कब स्कूलिंग हुई, कॉलेज हुआ पता ही नही चला. पढ़ने मैं ज़हीन था इसलिए जल्द ही एक अच्छी सरकारी नौकरी भी मिल गयी.

दिन के समय ऑफीस में और शाम का समय दोस्तों में बीतता था. धीरे-धीरे दोस्त कम होने लगे कुछ को नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर जाना पड़ा, कुछ की शादी हो गयी और वो अपनी शादी शुदा ज़िंदगी में बिज़ी हो गये. कुछ को प्राइवेट मल्टिनॅशनल कंपनी मैं जॉब मिल गयी तो वो देर रात तक ऑफीस में ही बिज़ी रहने लगे. अब मेरा बोरियत का समय शुरू हो गया. गवर्नमेंट जॉब होने की वजह से शाम होते ही घर पहुँच जाता था. अब मुझे अकेलापन सताने लगा.

वैसे तो मैं माजी-बाबूजी से बहुत प्यार करता था पर माजी-बाबूजी में और मुझ में दो जेनरेशन का गॅप था. इसलिए हमारी सोच का मिलना वैसे भी पासिबल नही था. पर फिर भी एक बात का सहारा होता था की कम से कम घर पर कोई तो है और मैं भी अपना बाकी का बचा हुआ समय उनके साथ बिताता था. पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था. माजी-बाबूजी का एक आक्सिडेंट में स्वर्गवास हो गया और मैं अकेला रह गया. उनके जाने के बाद मुझे पता चला की मैं उनसे कितना प्यार करता था. और फिर कभी-कभी अपने आप को कोसता था की मैने उनके साथ अधिक समय क्यों नही बिताया.

समय के इस कुठाराघात से मैं बिल्कुल टूट गया था . कुछ दीनो तो रिश्तेदारों ने साथ दिया पर वो भी कब तक अपना घर बार छोड़ कर मेरे साथ रहते. अब मुझे घर के कामो में भी बड़ी मुस्किल होने लगी. छाई बनाना और अंडे उबालने के अल्लावा मुझे कुछ नही आता था. ऐसे समय में पापा की बात याद आया करती थी. वो कहते थे की बेटा तोड़ा बहुत किचन का काम भी सीख लो. जब हम घर पर नही होते तो हमें कम से कम इश्स बात का तो सुकून रहेगा की तुम भूखे नही हो. पर तब उनकी बात एक कान से सुनी और दूसरे कान से निकल दी. आज पशचता रहा हूँ की काश उनकी बात मान ली होती.

हालाँकि मेरी उमर ज़्यादा नही थी, पर फिर भी माँ कहती थी की बेटा बहू ले आओ. कब तक मैं रसोई में पड़ी रहूंगी. तेरा भी मॅन बहल जाएगा और मुझे भी किचन से छुट्टी मिल जाएगी. अगर माँ की वो बात मान ली होती तो आज ना तो अकेलापन सताता और ना ही किचन का गम. खैर पड़ोस की आंटीस की वजह से खिचड़ी बनाना सीख लिया जिसकी वजह से मुझे भूके पेट नही सोना पड़ता था.

ऐसे मैं एक दिन मेरी पोस्टिंग साउत इंडिया के एक छोटे से कस्बे कुन्नूर में हो गयी. मेरी जॉब ट्रांस्फ़ेरब्ले है. इसलिए ट्रान्स्फर रेफ्यूज़ नही कर सकते. फिर यहाँ कोई था भी नही जिसके लिए रुकता इसलिए चल पड़ा. अब ज़िंदगी किस्मत के हवाले कर दी थी जहाँ लेकर चलती है चल पड़ा. शुरू के एक हफ्ते तो ऑफीस के गेस्ट हाउस में गुज़ारा, फिर ऑफीस के एक कूलीग की मदद माँगी की कहीं किराए के घर का बंदोबस्त कर दे. छोटा कस्बा होने की कारण किराए के मकान का वहाँ चलन नही था.

सबके अपने मकान थे. कस्बा बहुत छोटा था इसलिए जॉब्स के बहुत ज़्यादा स्कोप नही थे. इसलिए आउटसाइडर्स भी नही थे. खैर काफ़ी ढूँढने पर एक मकान मिल गया. घर काफ़ी बड़ा था मुझे छत पर एक बड़ा सा कमरा और एक किचन दे दिया गया. घर की मालकिन ने मुझे ये मकान बड़ी मजबूरी में दिया था. उनकी माली हालत अच्छी नही थी. उनकी कोई पर्मानेंट आमदनी नही थी. पहले तो घर का खर्च खेती-बाड़ी से चलता था. पर कुछ साल पहले घर मालिक ने बॅंक का क़र्ज़ वापस ना कर पाने की हालत मैं आत्महत्या कर ली थी.

ये साउत इंडिया में आजकल आम बात है. हर साल कई किसान जब बॅंक लोन रिटर्न नही कर पाते तो आत्महत्या कर लेते हैं. सरकार भी आँखे बंद कर के बैठी है. किसानो की दयनीय हालत है पर सरकर  कुछ नही कर रही. जिस साल नंबर ऑफ स्साइड्स बढ़ जाते हैं, उस साल कुछ किसानो का लोन माफ़ हो जाता है. इसके अल्लावा कोई सरकारी मदद नही. स्थिति को सुधारने के लिए काग़ज़ों पर तो बहुत कुछ होता है पर ज़मीनी हक़ीकत कुछ और ही है.

खैर इस घर की हालत भी कुछ ऐसी ही है इस घर में मिर्सज राव  अपने चार बच्चों के साथ रहती है. दो लड़के और दो लड़कियाँ. सबसे बड़ी माधवी जिसकी उम्र 20 साल है, फिर 15 साल का वंशी, फिर 12 साल की नागलक्ष्मी और सबसे छोटा 8 साल का श्री निवासा. खेती–बाड़ी औरत के बस की बात नही इसलिए ये सारा काम उनके देवर देखते हैं. और बदले मैं गुज़ारे लायक अनाज दे जाते हैं. माधवी पड़ोस के बच्चों को म्यूज़िक और डांस सीखाती है. उसके बदले जो आमदनी होती है उस से बाकी बच्चों की पढाई होती है.

मिर्सज राव  अडोस-पड़ोस के कपड़े सिलती हैं. और खाली समय मैं नारियल के रेशों से रस्सियान बनाती है. ये आमदनी घर के बाकी खर्चों के अलावा एमर्जेन्सी मैं काम आती है. मेरे उनके घर में किराए पर आने की वजह से उनकी मुश्किलों से भारी ज़िंदगी में कुछ आराम आ गया था. वैसे तो वो लोग बहुत अच्छे थे, पर चाह-कर भी वो मेरी कोई मदद नही कर पाते थे. मैं उनकी तमिल  भाषा नही जानता था और वो मेरी हिन्दी नही जानते थे. इंग्लीश में भी घर में सभी का हाथ तंग था. थोड़ी बहुत हिन्दी और इंग्लीश माधवी और वंशी जानते थे, पर वो जब नही होते थे तो मुझे बड़ी मुस्किल होती थी.  मिर्सज राव   तो ज़्यादा पढ़ी-लिखी नही थी और बाकी दोनो बच्चे अभी छोटे थे.

पर धीरे-धीरे मैने तमिल  सीखना शुरू कर दिया. ताकि मेरा काम चल सके. इसमें बहुत ज़्यादा कठिनाई नही आई .  यूँ   तो इस  इल्लाके मैं तमिल  बोलने वाले लोगों की बहुतायत थी. ऑफीस मैं भी मेरे कुलीग इसी भाषा मैं बात करते थे. सो थोड़  थोड़ा मैं भी सीखने लगा था. जगह नयी थी इसलिए मैं अपनी आदत के अनुसार छुट्टी होते ही घर आ जया करता था. शाम के समय माधवी बच्चों को क्लॅसिकल डांस सिखाया करती थी. मैं अक्सर छ त पर से उससे डान्स  सीखते हुए देखा करता था. बच्चों को देख-देख कर मैं भी थोड़े बहुत स्टेप्स सीख गया था. अकेले मैं कभी कभी उन स्टेप्स की प्रॅक्टीस भी किया करता था.

एक दिन माधवी ने मुझे डांस  करते हुए देख लिया. वो चुपचाप मुझे देखती रही फिर अचानक मुझे टोकते हुए बोली, “ये स्टेप ग़लत है, इससे ऐसे नही ऐसे करो… तो छुप-छुप कर डॅन्स सीख रहे हो और गुरु शायद मैं ही हूँ. फिर निकालो गुरु दक्षिणा.” और फिर हँसने लगी. फिर बोली, “अगर डॅान्स अच्छा लगता है तो सीखते क्यों नही?”

मैने कहा, “शर्म आती है… खैर समय मिले तो तुम ही सीखा देना.”

अब माधवी अक्सर छत पर आने लगी और कभी-कभी मुझे डॅान्स भी सिखाने लगी. इसके बदले में, मैं उसे थोड़ी बहुत इंग्लीश और हिन्दी सीखा दिया करता था. इसी बीच एक दिन माधवी को पता चला की मैं हफ्ते के सातों दिन खिचड़ी ख़ाता हूँ. वो पहले तो दुखी हुई फिर उसने अपनी माँ से बात करके मुझे भी खाना अपने साथ खाने के लिए कहा. अँधा क्या माँगे दो नैन, यहाँ तो चार मिल रहे थे. मैने भी झट से हान कर दी. अब मैं उन्ही के साथ खाना खाने लगा. और किरायेदार से पेयिंग गेस्ट बन गया. मैं खाने के लिए उन्हे कुछ पैसे अलग से देने लगा. कभी-कभी राशन और सब्जी भी मार्केट से ले आता था.

अब मैं घर वालों से काफ़ी अच्छी तरह से घुल मिल गया. घर के छोटे-मोटे कामो में भी हाथ बटाने लगा. खाली समय में बच्चों को पढ़ाने लगा. उनके घर में एक जो मर्द की कमी थी वो थोड़ी-थोड़ी भरने लगी थी. मैं भी उनके घर का एक सदस्य बन गया था. धीरे-धीरे समय बीतने लगा मुझे उनके साथ करीबन चार साल हो गये. वंशी 12 वीं पास कर चुका था. उसका एम बी  बी एस  में सिलेक्षन हो गया था. लेकिन फीस के चलते अड्मिशन नही ले पा रहा था.

पर मेरे ज़िद्द करने पर मिर्सज राव   ने वंशी को  एम बी  बी एस करने के लिए बॅंगलुर भेज दिया. ‘मेरे ज़िद्द करने पर…’, हान इन चार सालों में, मैने इस घर में वो जगह बना ली थी की अब मैं ज़िद्द कर सकता था और मेरी ज़िद्द मानी भी जाती थी. दरअसल मैं इस परिवार में काफ़ी घुल मिल गया था. एक बार की बात है,  मिर्सज राव   की तबीयत कुछ खराब हो गयी. चेक उप करने पर पता चला की उन्हे दिल की बीमारी है. बात तब बिगड़ गयी जब उन्हे पता चला की उनके देवर ने उनकी सारी ज़मीन धोके से हड़प ली है.

ये ज़मीन ही उनके बुरे वक़्त का सहारा थी. इससे बेचकर ही वो अपनी बेटियों की शादी करना चाहती थी. देवर के इस धोखे को वो बर्दाश्त नही कर पाई और उन्हे हार्ट अटॅक आ गया. उन्हे हॉस्पिटल में भरती करवाया गया. डॉक्टर ने बाइ-पास की सलाह दी. करीबन 2.5 से 3 लाख का खर्चा था. सारा परिवार टूट गया. बच्चे सारे दिन भर रोते रहते थे. वो अपने पिता को खो चुके थे अब अपनी माँ को नही खोना चाहते थे. पर वो असहाय थे. माधवी अपने चाचा के पास गयी गिड़गिडाई पर उन्होने कोई मदद नही की. उनके इस दुख को मुझसे ज़्यादा कौन समझ सकता था. मैं अपने परिवार को खो चुका था.

मैने बगैर किसी को बताए हॉस्पिटल में सारे पैसे जमा करा दिए.  मिर्सज राव  का ऑपरेशन ठीक ठाक हो गया. डॉक्टर ने उन्हे प्रिकॉशन्स लेने के लिए कहा और फिर कुछ दिनो के बाद उन्हे डिसचार्ज कर दिया.   मिर्सज राव   के बहुत पूछने पर डॉक्टर ने उन्हे बता दिया की पैसे मैने दिए हैं. उस दिन शाम को  मिर्सज राव   ने मुझे बुलाकर पूछा की मैने पैसे क्यों दिए. मेरा उनसे क्या रिश्ता है. और वो मेरा इतना बड़ा क़र्ज़ कैसे चुकाएँगी.

मैने उन्हे बताया की मैं अपना परिवार खो चुका हूँ, और एक अनाथ की ज़िंदगी जी रहा हूँ.

“इतनी बड़ी दुनिया मैं    बगैर किसी अपने के जीना कितना मुश्किल होता है, मैं अच्छी तरह जानता हूँ. भगवान ने मुझे दूसरा परिवार दिया है और आप को खोकर मैं इस दूसरे परिवार को भी नही खोना चाहता.” इतना कहते ही मेरे आँसू निकल आए.

मुझे देख कर घर के सब लोग रोने लगे. मिर्सज राव   ने मुझे गले लगा लिया और बोली आज से मेरे चार नही पाँच बच्चे हैं. तबसे मैं उस घर का एक सदस्य बन गया. और मुझे भी ज़िद्द करने का अधिकार मिल गया.

इसके बाद एक दिन वो भी आया जिसने मुझे परेशान कर दिया. माधवी 24 साल की हो गयी थी. एक दिन उसके लिए एक रिश्ता आया. लड़का बॅंक में काम करता था.

मिर्सज राव  ने मुझे बुलाया और बताया की माधवी के लिए रिश्ता आया है. लड़का बॅंक में काम करता है और हमारी जात का है. खाते पीते घर का है और बगैर दहेज के माधवी से शादी करना चाहता है. भला इस से अच्छा रिश्ता हमें कहाँ मिलेगा. वो सामने से खुद चलकर ये रिश्ता माँगने आए हैं. अगर यहाँ माधवी की शादी हो जाती हैं तो माधवी के भाग खुल जाएँगे.“और फिर मुझ विधवा की लिए इस से बढकर क्या बात हो सकती है की वो लोग बगैर किसी दहेज के मेरी बेटी से शादी करने के लिए तैयार हैं. बोलो बेटा तुम्हारी क्या सलाह है. अगर तुम्हे ठीक लगता है तो तुम माधवी से बात करो.”

मेरे मूँह से एक भी शब्द नही निकला. मैं चुपचाप उनकी बात सुनता रहा. और अंत में “जैसा आप चाहे…” कहकर चला आया.

माधवी की शादी के बात सुनकर मुझे पता नही खुशी नही हो रही थी. एक अजीब सी बेचैनी होने लगी मेरा दम घुटने लगा, ऐसे लग रहा था जैसे साँस नही लिया जा रहा है. मैं दौड़कर छत पर चला गया ताकि खुली हवा में साँस ले सकूँ, पर कुछ फयदा नही हुआ.

कुछ देर में माधवी भी छत पर आ गयी और बोली माँ कह रही थी की तुम्हे मुझसे कुछ बात करनी है. दरअसल माधवी ने माँ की सारी बातें सुन ली थी. लेकिन फिर भी वो मुझ से कुछ सुनना चाहती थी.

मैने बगैर उसकी तरफ देखे उसे झिड़क दिया. “अभी मुझे कुछ नही कहना, मुझे परेशान मत करो.” माधवी चली गयी और मैं अपने आप को टटोलता रहा की मुझे क्यों माधवी के रिश्ते से खुशी नही हो रही. अगले दिन माधवी ने मुझसे कहा की माँ कह रही थी की मेरे लिए एक रिश्ता आया है. मुझे क्या करना चाहिए?

मैने कहा की अब तुम कोई बच्ची नही हो बड़ी हो चुकी हो ये तुम्हारी ज़िंदगी है, इसका फ़ैसला तुम्हे लेना है, इसलिए इस फ़ैसले को तुम खुद लो.

माधवी बोली, “ये तो ठीक है पर ये इतना बड़ा फ़ैसला है की डर लग रहा है, मैं ग़लत डिसिशन भी तो ले सकती हूँ. इसलिए तुम्हारी राय लेना चाहती हूँ.”

मैने कहा, “  मिर्सज राव  एक हार्ट पेशेंट हैं, तुम्हे उनकी खुशी का ख़याल रखना चाहिए.”

माधवी बोली, “क्या तुम इश्स रिश्ते से खुश हो?”

मैं गुस्से से बोला, “अब मेरी खुशी की बात कहाँ से आ गयी.”

“लेकिन मैं जानना चाहती हूँ.”

“हान मुझे खुशी होगी, बहुत खुशी होगी.”

मैं गुस्से से बाहर चला गया. माधवी भी रोते-रोते अपने कमरे में चली गयी.

मिर्सज राव  ने रिश्ते के लिए हान कर दी. सगाई का दिन पक्का हो गया. पहले नवरात्रि को मँगनी और दशमी को शादी. घर मैं शादी की तैयारियाँ होने लगी. घर में रंग रोगन, कपड़ो की शॉपिंग और गहनो की खरीददारी होने लगी. हालाँकि लड़के वालों ने दहेज के लिए माना किया था, पर फिर भी एक माँ अपनी बेटी की शादी की तैयारी उसके जनम से ही कर देती है और फिर तोड़ा बहुत तो लोकलाज और लोक दिखावे के लिए भी करना पड़ता है.

मिर्सज राव ने भी काफ़ी कुछ जोड़ रखा था. बस ज़रूरत थी उसको एक नया रूप देने की. जैसे-जैसे दिन नज़दीक आने लगे माधवी का चेहरा मुरझाने लगा. वो जब भी अकेली होती रोने लगती. हर समय खिलखिलाने वाली माधवी गुम सुम रहने लगी. अब वो मुझ से नज़रें चुराने लगी. इधर मैं भी चिड़-चिड़ा हो गया. घर में तो नॉर्मल रहने की कोशिश करता, झूठी हँसी हंसता, पर ऑफीस में बात-बात पर झगड़ पड़ता. हर बात पर गुस्सा हो जाता. धीरे-धीरे मुझे इस बात का एहसास हो गया की मैं माधवी से प्यार करता हूँ.

और इसीलिए मैं उसके रिश्ते की बात को सह नही पा रहा हूँ. उसको खो देने के डर से दुखी रहता हूँ. पर मैं मजबूर हूँ कुछ कर नही सक��

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