TWO POEMS 1.balika se balika vdhu tak describes plight of child bride in society.2. ATANKVAD DHARM desribes how ill deeds of atankvadi are so cruel to society
बालिका से बालिका वधू तक
आखों में दर्द क़ा साथ लिए पूछती वह ?
बदसलूकी का शिकार हमेशा मैं ही क्यों ?
नसीब मेरा फूटा है क्यों ?
माना जन्मदाता कर्ज़ को उठाने,
धकेला बाल विवाह की तरफ अपनों ने,
क्या करूँ माँ – बापू इन सुंदर गहनों को?
क्या देगे यह अद्भुत कपड़े मुझको?
जब मन अटका मेरा हम जोली,
बीच खेलने – कूदने एवं पढ़ने को ।
हे ! समाज के ठेकेदारों, बताओ तुम ही,
किसको बताऊँ दास्ताँ बदनसीबी की,
मायके वा ससुराल वालों को,
कितना ठीक है, समाज में,
वर से आधी उम्र की बहू लाना ?
इस पर वह समझे अपने को गर्वित क्यों ?
रखकर देखे ,वह अपनी बेटी को,
मेरी जगह बेमेल विवाह में,
तब कांपती उनकी atmaआत्मा क्यों ?
यह शराफत मेरी जो बन बहू,
पर्दापण किया इस घर में ।
दूर कोसो मील,
पल – पल ख़ुशी से मैं,
सुबह सब उठते अपने – अपने काम करने को,
मैं उठती सबकी तीमारदारी करने को,
मैं तरसूँ सम्मान पूर्वक घर बसाने को ।
मुझ पर जब जोर जबरदस्ती से सभी राज़ करते ,
मेरा अन्तःकरण, बुरी तरह जल जाता ,
तब जानवर से बतर मै समझूं अपने को,
क्योंकि बचपन मेरा तिल – तिल घट जाता ।
यह संवेदनहीन, पहचान मेरी,
यह बोझिल मन वजूद मेरा,
जब कभी भूले भटके आते, पैसेbhent मायके से मेरी,
पति देव छीन ले, वह लघु धन मेरा,
बालिका वधू तो है, शोषण करने को,
पर सब भावुक उपदेश देते दूसरों को,
बहू – बेटियाँ में, अन्तर ना समझने को ——-
2. आतंकवाद- धर्म
माना दन – दन बंदूके चलाना —–
माना धम – धम गोले बरसाना —–
आतंकवाद ! दहशत गर्दी का तन्त्र तेरा —-
क्यों दुश्मन पर तू —–
आतंकवाद फैला रहा तू —–
ढेर मानव देह के लगाये तूने ——
सोच ! वह भी इंसान है जैसे तेरे —–
जिन्दगी जिनकी दाव पर लगाई तूने —–
रहम कहाँ उनके मासूमों पर तुझे ?
जैसे जु ड़ा पक्के धागों से अपनों के संग तू,
वैसे दुश्मन भी जु ड़ा अपनों के संग
अरमान भी है, उनके जैसे तेरे —–
माना आतंकवाद फैलाना, समझे धर्म अपना तू —
‘दुश्मन’ की पवित्र राखी खत्म कर खुश होता तू —
किस हक से उजाड़े सुहाग -सिन्दूर बहनों के तू ?
काश ! जानता कीमत इन रिश्तों की तू ।
माना सब दुश्मन – परिजन बेबस ,
देखे ओर तेरी ——
पर बद् दुआ देते थकते नहीं तुझे —–
दुश्मन – परिजनों के आहत मन !
सकते में है, यह भोली पृथ्वी माँ,
नहीं जानता है, आतंकवादी तू,
जिस दरिंदगी पर गर्व करे तू,
उपर वाला करतूत देखकर तेरी,
इस अव्यवस्थित कनायात में,
मन ही मन सोच कितना परेशान है ।।2
डा ० सुकर्मा थरेजा
क्राइस्ट चर्च कालेज
कानपुर