This Hindi poem highlights the love of the poetess in which though she knows that she is unable to get the love of her lover but still she is fond of Her teases and always assumes him to be the Guest of her heart.
पहले हम सोचा किया करते थे …… कि तुम करते हो परेशां ,
अब जो करते नहीं परेशां ……… तो हम होते हैं हैरां ,
दिल में एक हूक सी उठती है ………. तुम्हारे आने से ,
जबकि ये जानते हैं हम ……कि तुम हो सिर्फ एक मेहमां ।
बात मुद्द्त ~ए ~ पुरानी है ………जब हम हारे थे ये दिल ,
तुमको पाकर के शायद तब ……… सुकूं से गुज़रे थे ये दिन ,
अब जो मिलते नहीं हो हमको …………. तो हो जाते हैं परेशां ,
तुम्हारी आदत की खातिर ……बस गए तुम्हारे ही देशां ।
साथ अपना है अधूरा ……देखो इस जनम में ,
रखना चाहें भी तो ना रख सकें ………तुमको अपने मन में ,
जाओ ना फिर क्यूँ करते हो हमको ……तुम परेशां ,
जबकि ये जानते हो तुम ……कि तुम हो सिर्फ एक मेहमां ।
मेरा मन रोज़ तुमसे पूछना चाहे ……… ना जाने कितने ही सवाल ,
क्योंकि तुम हर सवाल को बना देते हो ………. एक नयी सी मिसाल ,
मान जाओ जो तुम मेरे लिए ………. तो मैं हो जाऊँ परेशां ,
और ना मानो तो भी लगता है ……कि मैं हूँ परेशां ।
हर रात मेरे मन में ……… एक टीस सी जगे ,
तुमको पाने की एक कमी सी ……… क्यूँ इस मन को लगे ?
मैं इस मन को समझाती हूँ …… कि तू ना हो परेशां ,
वो नहीं होगा तेरा कभी भी ………क्योंकि वो है एक मेहमां ।
तुमने जब भी पुकारा हमें …… हम आ ही गए ,
तुम्हारे होठों पर अपने साथ की हँसी …… ला ही गए ,
पर जब भी जाने लगते हैं ………. तो हो जाते हैं परेशां ,
वो जो एक साथ छूटता है …… उसका दर्द करता परेशां ।
मेरे आशिक़ ,मेरे प्यारे ……तुमसे ये कह भी ना सकूँ ,
कि मेरे दिल में तड़प उठती है ………तेरी सोच से ही हमेशा ,
फिर भी इस दिल को सम्भाला हमने …… अक्सर होकर परेशां ,
क्योंकि हम जानते हैं ……कि तुम हो सिर्फ एक मेहमां ।
आज हम सोचा किया करते हैं ………. कि तुम करो हमको परेशां ,
क्योंकि हम भी पिघल गए हैं ……… लगाकर तुम्हारे संग कहकशां ,
अपना ये साथ ही ऐसा है …… कि तुम जब भी करते हो परेशां ,
दिल इस उम्मीद से भर जाता है …… कि बन गए हो शायद फिर से अब मेरे मेहमां ॥
***