In this Hindi poem the poet is remembering that wonderful lips of his beloved which once made him excite and invited too for mating.Thought of that lips refresh his feels
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Hindi Poem – Adhron Ki Kasam
Photo credit: taliesin from morguefile.com
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
उसके अधरों ने ली थी कसम ,
कि ख़तम हमको करके रहेंगे ….
तोड़ दुनिया के सारे भरम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
पसीने से लथपथ थे जब दो बदन ,
अधरों को अधरों की पिपासा थी ,
चंचल हुआ था जब ये मन ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
उसके क़दमों से मिले थे जब कदम ,
हाथों में जकड़ी थी बेड़ी कोई ,
दिलों का हुआ था मिलन ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
उसकी खुशबू ने लूटा मेरा भरम ,
सीने पर रख कर सर अपना ,
वो लगाने लगे एक लगन ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
हम बुझाने लगे थे उसकी अगन ,
धीरे-धीरे से उठता धुँआ ,
कर रहा था अधरों की लाली ख़तम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
अब बहकने लगे थे कदम ,
उसका दुपट्टा सरकने लगा था ,
पाने को कुछ और सनम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
हम संभालें अब खुद को कैसे सनम ?
वो गिरे जा रहे थे बाहों में ,
हमने तोड़ी अब अपनी कसम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
उसने लुटने की ली थी अब कसम ,
हमें “नशे” में वो लाकर ,
कह रहे थे अब रुक जाओ सनम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
कैसे रुक जाएँ अब आगे हम ?
होने दो जो होता है अब यूँ ,
मत बुझायो अब मन में लगी ये अगन ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
जिस्मों से निकल रही थी अब एक अगन ,
आँखों ने आँखों को इशारा किया ,
यही होता है नूरानी मिलन ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
घुल रहे थे बदन में बदन ,
एक “ज्वालामुखी” जो बसा था कहीं ,
अब वो फटने लगा था उसकी कसम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
वो ना बोले कुछ और ना ही अब हम ,
बस दीवाने से हो एक-दूजे को ,
कस रहे थे बाहों में लिए शरम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
उसके अधरों ने ली थी जो कसम ,
आज पूरी हुई वो दिनदहाड़े ,
दो पल में हुआ सब ख़तम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
आज भी जब करूँ उसे ध्यान मग्न ,
उसके “अधर” मुझे सोने ना दें ,
जिनकी खातिर कभी मिटा था ये तन ।।