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Hindi Poem on Social Issue
Photo credit: greyerbaby from morguefile.com
“उड़ान”
चाहती हूँ कि पंछी बन उड़ जाऊं मैं
मुझे उड़ान भरने दो
इस कशमकश से उभरने दो
ना करो कैद इस कदर पिंजरे में मुझे
अाशा कि ये उड़ान भरने दो मुझे
और कुछ ना सही ऐहसास ही होने दो
ये खुलि फिज़ाऐं
बागों कि मंद-मंद मेहेक
तारों कि टिमटिमाहट
बारिश कि पेहली बूंद ॥
एक दफा मेहसूस होने दो मुझे ..
उड़ने दो मुझे
आशा कि वो उड़ान भरने दो मुझे
जुस्तजू बस इतनी है
कि,
वो सुनेहरे सपने देखने दो मुझे
“माँ”
जीने दो मुझे
ख्वाईशों के पँख ओढ़कर
“उड़ान “भरने दो मुझे !
क्यूं
हमें ही हक़ नहीं पंखों को फ़ैलाना ,
क्यूं
मजबूरीयों का हवाला मेरे ही नाम पर ???
ज़्यादा ना सही कुछ कतरा ही जी लेनें दो
मुझे…..
जानती हो कितना हौसला जुटाया है आज फिर
ये केहने को
कि ,
जीने दो मुझे …
उड़ान भरने दो मुझे
सपनों का वो जहान अबके तबदील करने दो
मुझे ॥
जज़्बा मेरी कोशिशों का ….
छाले मेरी सुरख़ हातों का चाहो तो कर दो अंदेखा
चाहो तो हो जाअो मेरी ज़िम्मेदारीयों से मुक्त
मग़र
आख़रि बार उड़ान भरने दो मुझे
वो अंतहीन नीला आसमान छूने दो मुझे
वो गेहरी उड़ान
भरने दो मुझे ….
मेरी एक आख़्ऱी आशा पूरी करने दो
“माँ”
मुझे उड़ान भरने दो..
इस कशमकश से
उभरने दो ॥
औदा दो-या-न-दो समाज में
मेरे अस्तित्व का सतकार
करो -न-करो
मेरे व्यक्तित्व का
चाहे झुटला दो मुझे …
मग़र मेरे होने का ऐहसास होने दो
मेरे हिस्से कि जि़नदगी
जीने को
मेरी ख्वाईशों को पूरा करने दो मुझे
“उड़ान”
भरने दो मुझे ॥
चाहति हूँ पंक्षि बन उड़ जाऊँ मैं
“माँ”
उड़ने दो मुझे
‘उड़ान’ भरने दो मुझे!!
***