क़ैद ~ ए ~ हयात को ………… चश्म ~ ए ~ गम ………. क्यूँ समझ लिया तुमने सनम ?
बगावतों की बू से ……… इस सहर में ………. अब हो रही हैं आँखें नम ।
ढल गए अब वो दिन तुम्हारे ……… जब सहे थे ………. हमने तुम्हारे सारे गम ,
अब देते हैं हम भी गालियाँ ………. सीख गए हैं …… जीने के ये नए ढंग ।
बाद में बहुत पछताते ………… सोचते हैं ………. क्यूँ कहे तुम्हे ऐसे लफ्ज़ ?
मगर फिर सोचें सही किया था ……… क्यूँ सहें हम भी अब ………. तुम्हारे जुलम ?
ये चिंगारी धीरे-धीरे से ……… शोला बनके ………. भड़क है गई अब ,
हर बार पलकें अपनी ………. क्यूँ भिगाएँ …… यही सोचते हैं अब हम ।
तुम्हारे संग हम भी अपना ………… रँग बदलने लग गए हैं ………. अब देखो,
इस जनम के हिसाब को ……… इसी जनम में पूरा करने लगे हैं ………. तुम सोचो ,
गर वो चाँटा ……… होता किसी कसूर का ……….तो शायद समझते हम ,
मगर हुकूमतों से दिल था ऊबा ………. तभी ज़ुबाँ से निकले …… तुम्हारे लिए तीर ~ए ~ चुभन ।
अफ़सोस है अब हमें अपने किए पर ………… क्योंकि समझते हैं हम ………. तुम्हे अपना हमदम ,
क्या हुआ जो इस क़ैद ~ ए ~ हयात में ……… निकल भी जाए ………. अपना ये दम ।
हमें इंसा ही रहने दो ……… मत उकसाओ ………. हमारे तुम ज़ज़्बात ,
क़ैद ~ ए ~ हयात में ………. इस क़ैदी को रख लो …… तुम अपने मन-मुताबिक़ हिसाब ।
हम डरते हैं उस माँ “सरस्वती” से ………… जो ज़ुबाँ पर ………. दिन में एक बार होती ,
कहते हैं लोग अक्सर ऐसा ……… कि पूरे दिन में कही हुई कोई बात ………. अक्सर कभी सज़ा बनती ।
नहीं बनना हमें ……… इस पाप का भागीदार ………. ओ जान ~ ए ~ जाना ,
अपनी ज़ुबाँ से ………. तुम्हे दे गालियों का …… कोई प्यार सा नज़राना ।
बागी मत बनने दो हमें ………… रहने दो ………. इस क़ैद ~ ए ~ हयात में यूँही ,
करने दो इस जनम को सफ़ल ………पाने दो अपने गुनाहों की सज़ा ………. यहाँ पर यूँही ।।
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