जी तो चाहता था ………. कि चूम लूँ तेरे लब ……… जो थे बड़े मस्ताने ,
अपने होठों को ……… उन पर रख के …… लिख दूँ कई अफ़साने ।
जी तो चाहता था ……….
बड़ी मुददत के बाद ………. आज तुझे देख के ……… ये दिल था शरमाया ,
तू रुकेगा जरूर मुझे देख के ……… ये सोच के …… ये कदम था मैंने भी ठहराया ।
जी तो चाहता था ……….
तू रुका नहीं ………. चलता रहा ……… मगर तेरी नज़र मुझसे मिली ,
मुझे देख के ……… ना जाने क्यूँ ……… तेरी धड़कन भी थी थोड़ी रुकी ।
जी तो चाहता था ……….
पता नहीं ………. कई बार तेरे ख्यालों से ……… क्यूँ ये दिल बहकता जाता था ?
मैं सोचती थी ……कि कहाँ है अब तू ………जो मुझे नज़र नहीं आता था ।
जी तो चाहता था ……….
अच्छा हुआ ……… जो उस दिन के बाद ……… तू कहीं था चला गया ,
वरना मैं तुझे …… कह देती वो सब ……जो इस दिल में था कहीं रुका हुआ ।
जी तो चाहता था ……….
मगर मैं ……… अब ये सोचती हूँ ………. कि जो है वही सबसे भला ,
तू सिर्फ ………. नज़रों की है ठंडक ……… और उसके आगे सब बुरा ।
जी तो चाहता था ……….
जी के चाहने का क्या ……… ये है बड़ा ही ………. लालची और बेशरम ,
जो हर किसी पे आने को कहे ………. चाहे वो सुने या ना सुने ……… तेरी कसम ।
जी तो चाहता था ……….
मैंने आज अपने जी को ……… बड़ी मुश्किल से था ………. बहलाया वहाँ ,
कि ये वो नहीं ………. जिसके लबों को ……… तेरी चाह ने अपनाया यहाँ ।
जी तो चाहता था ……….
ये सोच के ……… मैं भी आगे बढ़ गई ………. छोड़ तेरे वो लब मस्ताने ,
जी की सुनती अगर ……… तो जा ना पाती मैं घर ……… और बन जाते कई अफ़साने ।।
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