Mera Mann – Hindi poem describing state of mind before and after love. Before love she found her mind under control but after love it became out of control.
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Hindi Poem – Mera Mann
Photo credit: jdurham from morguefile.com
जब मेरा मन मंथन करने लगा ,
तब नफरत सी हो गयी ……दुनियावालों से ।
जब मेरी साँस मंथन करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी …..चंद सवालों से ॥
हर रोज़ “मैं” …..अपने मन के भीतर ,
झाँकती हूँ पाने को सुकून अक्सर ,
जब मेरा सुकून मंथन करने लगा ,
तब नफरत सी हो गयी …….कई बहानो से ॥
लोग कहते हैं …..”मन” आइना है चेहरे का ,
उस पर छपती है हर लकीर …..मन के भावों की ,
जब उन भावों को मंथन मैं करने लगी,
तब नफरत सी हो गयी ….. हर चेहरे से ।
मेरा “मन” हर रोज़ बहका ……क्यूँ अक्सर ?
क्या था उसमे …जो नहीं था पढ़ा ……मैंने अब तक ,
जब उसको पढने का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी …..उसके ख़्वाबों से ।
मुझे अपने “मन” पर है ……रोज़ ऐतबार ,
कि वो करता है सिर्फ ……उससे प्यार ,
जब उस प्यार का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी ……अपने ख्यालों से ।
मेरा “मन” क्यूँ चला है ……लुटने को ,
उसकी चाहत में देखो ….मिटने को ,
जब उस चाहत का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी …….अपने ठिकानों से ।
मैं पहले ही बेहतर थी …..अपने ख्यालों में ,
“वो” क्यूँ आया ……मेरी जिंदगी की राहों में ,
जब उन राहों का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी ……अपने फसानो से ।
बहुत तकलीफ में है देखो …….आजकल मेरा “मन”,
उसको पढ़ने के लिए …….बाकी नहीं अब कोई गम ,
जब उस गम का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी …….अपने निशानों से ।
मैं अपने “मन” को ……रोज़ बहलाती हूँ ,
उसमे नयी साँस भरती जाती हूँ ,
जब उस नयी साँस का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी …….अपने नए आशियाने से ।
मेरा “मन” पहले जैसा ही …..फिर से बना ,
मैंने जितना दूर “उसे” करना चाहा ……उसमे “वो” और जमा ,
अब मंथन को बाकी जब कुछ रहा ही नहीं ,
तब नफरत सी हो गयी ………खुद को हराने से ।
अब मेरा “मन” मंथन करने लगा ,
क्योंकि नफरत नहीं थी ……..उसमे तेरे फ़साने से ,
अब मेरी साँस मंथन करने लगी ,
क्योंकि अब हर वक़्त मैं काबिल थी ……..लड़ने ज़माने से ॥
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