खामोशी से हम , खामोशी में उन्हें ……… खामोश कर गए ,
खामोश लफ़्ज़ों से पढ़ के हमें ……… वो खामोश से हो गए ।
चले थे वो हमारी खामोशी को …… झाँकने परत-परत ,
हर परत को सुलझाते-सुलझाते ……… वो खुद एक परत से बन गए ।
हमारी नासमझी से जैसे ही …… वो हमें भाँपने चले ,
खामोशी से हम , खामोशी में उन्हें ……… तब खामोश कर गए ।
अभी कुछ चंद मुलाक़ातों में …… उनसे रूबरू हुए ,
सोचा कि नाप लेंगे वो हमारे ……… पैरों के पहरे घने ।
इसलिए उनसे तन्हाई में ……. अपने दिल की गुहार लगाईं ,
अपनी बेगैरत सी ज़िंदगी में ……. लाने को एक नई पुकार लगाईं ।
वो हँसते-हँसते से हमारी ज़िंदगी को ……जब झाँकने चले ,
खामोशी से हम , खामोशी में उन्हें ……… तब खामोश कर गए ।
हज़ार सवाल उनके मन में …… पैठे कई बार ,
कि ये कैसी है ज़िंदगी ……… और ये कैसा संसार ?
हर कड़ी को तब वो ……. एक सिलसिले से जोड़ते गए ,
हर कड़ी में तब वो ……. एक और कड़ी को तोड़ते गए ।
जब भी समझने की लत से ……वो और ताकने चले ,
खामोशी से हम , खामोशी में उन्हें ……… तब खामोश कर गए ।
समझते-समझते उन्हें लगा …… एक नया अद्भुत संसार ,
जिसमे रहती थी एक बंद कली ……… पाने कुछ नए विचार ।
मगर जिस तरह से उन विचारों को ……. मिल रही थी एक गति ,
क्या उस तरह से उन विचारों की ……. होगी आगे प्रगति ?
सच को समझते-समझते …… जब वो हमसे कुछ बाँटने चले ,
खामोशी से हम , खामोशी में उन्हें ……… तब खामोश कर गए ।
कल सुनाना था हमें उन्होंने …… अपने फैसले का एक फ़रमान ,
कल लेना था हमें उनसे ……… अपने वज़ूद का एक नाम ।
कल लिखेगी हमारे आगे आने वाले ……. एक फैसले की तक़दीर ,
कल दिखेगी ज़माने को ……. हमारी भी एक तस्वीर ।
मगर उस कल को लाने-लाने में …… वो कलम ताकते रहे ,
खामोशी से हम , खामोशी में उन्हें ……… तब खामोश कर गए ।
नहीं लेना अब हमे उनसे …… अपने लेखों पर पुनर्विचार ,
नहीं देना अब हमें उन्हें ……… अपनी कल्पनाओं पर कोई विचार ,
गर समझ गए हमें ……. तो भूल जाना हमारी किताब ,
गर परख गए हमें ……. तो मत देना कोई ज़वाब ।
इस कविता को पढ़ के अब वो …… खुद को सँभालते रहे ,
खामोशी से हम , खामोशी में उन्हें ……… तब खामोश कर गए ।।
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