This Hindi poem highlights the Love of parents for their child .Though at this time their child is enough mature to take her decisions about right and wrong but still Her parents scolded her for her acts.
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Hindi Poem – Incredible Parents
Photo credit: Carool from morguefile.com
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ,
भेद ना जानत गुण-अवगुण का ……… कर बैठी नादानी ।
सात -समुन्दर पार गई मैं ……… करने कुछ मनमानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
लूटने वाले लूट गए मुझे ……… मैं बन गई एक कहानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
चाल-चली है देखो अपनों ने ही ………. ले गए सब रक्त और पानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
दान भी दे-दो ,भिक्षा दे दो ……… पर क्यों दी खुद की निशानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
दुविधा ऐसी थी मेरे आगे ………. फिर किसकी मैं समझूँ मीठी वाणी ?
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
एक ओर था धर्म खड़ा ……… दूजी ओर लालसा की थी जवानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
हँस -हँस कर दुःख भोग लिया क्यूँ ………. कठोर बन कर कहनी थी कड़वी वाणी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
ना सोचा मैंने कौन था वो जिसके लिए ……… अपनी ही बलि की मैंने थी ठानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
जब धन था यहाँ सब पर पूरा ………. फिर क्यूँ तन से थी तृष्णा बुझानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
देखी ना सुनी कहीं उन्होंने अब तक ……… ऐसी निगोड़ी-निपट अदभुत प्रेम की कहानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
सोचती हूँ तो डर लगता है ………. किसकी सुनूँ मैं आज्ञा अवमानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
जीने दो माँ-बाप मुझे अब ……… अपने ही जीवन में ढूँढने एक वीरानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
कब तक फ़िक्र करोगे मेरी ………. एक दिन तो ना होगा ये जिस्म और ना ये पानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
अब तो जवानी ढलने लगी है ……… फिर क्या सोचना खुद के सुख और दुःख की कहानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
माँ-बाप करते रहेंगे सदा अपने खून की रक्षा ………. तभी तो इस जग में है ना उनका कोई सानी ,
माँ-बाप कहें मुझे …………. मैं मूरख अज्ञानी ।
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