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IIT KANPUR-DEEPAK

Published by sukarma Thareja in category Hindi | Hindi Poetry | Poetry with tag candle | IIT | students

The Hindi poem describes IIT-Kanpur in terms of its symbol of strength , IITK –DEEPAK which inspires Teachers ,staff and students of IITK to excel in research and academics .

burning-candle

Hindi Poem – IIT KANPUR-DEEPAK
Photo credit: lorettaflame from morguefile.com

सुदूर कल – कल बिठूर गंगा जल का मीठा शोर,
जुड़ता एक छोर उसका कल्याण पुर की ओर,
मध्य में सिर उठाये खड़ा गर्व से,
भारतीय प्रौधोगिकी संस्थान कानपुर महान,
इसको हाशिये पर है, ऐतिहासिक नानकारी, बारहसिरोही गाँव ,
इसका – स्मृति चिन्ह – शक्ति स्त्रोत,
आई ० आई ० टी ० – के० – दीपक – महान ।
प्रतिपल, प्रतिक्षण, प्रतिदिन,
विश्व प्रतिभाओं का पथ प्रदर्शित कर,
पुलक – पुलक जलता आई ० आई ० टी ० – के ० – दीपक ।

सिन्धु सा विज्ञान प्रोद्यौगिकी ज्ञान,
स्टाफ, शिक्षक, विद्यार्थी,
नमन कर लेते उर्जा,
इसकी कण – कण ज्वाला से,
तब गर्व से जलता
आई ० आई ० टी ० – के० – दीपक l

जो ना घुस पाये इस सिस्टम में,
तैरता एक सपना बोझिल आँखों में,
काश ! कोई उपाय हम भी ढूंढ पाते,
पतंगे की तरह, हम भी जल पाते,
प्रकाश में, आई ० आई ० टी ० – के०- दीपक ।

आई ० आई ० टी ० – के ० – कैम्पस में,
जलते अनेक आलौकिक दीपक,
इसे देख स्नेहिल,
हो जाते वह सभी दीपक,
इस दीपक के, आंचल की ओट में,
इसके मृदु पलकों की चपेट में,
सहल – सहल जलते,
वैज्ञानिक अभियात्रिंक ,
आई ० आई ० टी ० – के ० – दीपकll l

खेलता यह खेल निरन्तर,
कभी क्लास रूम की पढ़ाई,
कभी क्वीज़ परिक्षा, की दुहाई,
कभी विद्यार्थी एवं एलूम्नाई,
सांस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम,
कभी कान्फरैन्स वर्कशाप का जलवा,
इन सभी एकटिविटिज़ में,
छिपा है कानपुर के,
आई ० आई ० टी० – के ० – दीपक का उजाला,
तभी तो धमक – धमक जलता,
आई ० आई ० टी० – के ० – दीपक l

आई ० आई ० टी ०- के०- परिसर में ,
प्रत्येक अणु -अणु में,
अंकित होता, अनुसंधान, पेटंट,
वैज्ञानिक प्रक्रियाओं का सजल चित्रण,
जब इसी तरह निरंतर,
स्वदेशी – विदेशी प्रतिभाए,
आलौकित होती,
तभी सरल – सरल जलता ,
आई ० आई ० टी ० – के० – दीपकl

इसके श्वासों में मिलते,
विद्यार्थी, शिक्षक एवं कर्मचारियों के दीपक,
सुभग – सुभग बुझने का ना डर
क्योंकि शांत अभय होकर जलता
आई ० आई ० टी ० – के ०- दीपक ।

जब आई ० आई ० टी ० – के० – प्रांगण में,
एलूमनि(alumni )विद्यार्थियों का ऊर्जा जल भरता,
तब सभी की आँखों में,
पिछली स्वर्णिम यादों का,
कैन्वास झलकता,
तब सजल – सजल जलता,
आई ० आई ० टी ० – के० – दीपक ।
इस दीपक के उजाले में ,
परिवार, रिश्तों का बन्धन भी;
राह से भटकने ना देता किसी को,
भावना के बोल भी,
रोकते नहीं किसी को,
निष्पक्ष न्याय देकर,
स्वयं ही जलता यह,
आई० आई ० टी ० – के ०- दीपक ।

एलूम्नस हो या विद्यार्थी,
शिक्षक वा कर्मचारी,
सदैव अदम्य साहस भरता,
यह अभय शील दीपक,
ईश्वर करे अमर रहे,
आई ० आई ० टी ० – के० – दीपक,
भावी पीढ़ियों को निरंतर आलौकित करे ,
यह तेजस्वी, विवेक शील दीपक,
सदा सत कर्मों से विश्व में जाना जाये,
यह कर्मठ, न्याय प्रिय,
आई ० आई ० टी ० – केOOooo० – दीपक,
तिरंगे की शान बने ,
आई ० आई ० टी ०- के ० – दीपक ।। २

***

डाo सुकर्मा थरेजा
कानपुर

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