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Dont Accolade Me

Published by praveen gola in category Hindi | Hindi Poetry | Poetry with tag gender discrimination

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Hindi Poem on Gender Discrimination – Dont Accolade Me
Photo credit: Carool from morguefile.com

मत सराहो मुझे ……..मुझे आदत है ऐसे जीने की ,
नारी हूँ …….नारी के लिए बनी शराब को पीने की ।

जब पाया था पहली बार कभी …….मैंने सफलता का Report Card ,
सोचा था सराहेंगे मुझे भी ……मेरे पिता होकर बेताब ,
दो शब्द भी न थे उनके पास ………मेरा उत्साह बढाने को ,
“कन्या” की सफलता को कैसा सरहाना ……..ऐसी सोच थी उनकी दर्शाने को ।

मत सराहो मुझे ……..मुझे आदत है ऐसे जीने की ,
नारी हूँ …….नारी के लिए बनी शराब को पीने की ।

ब्याह हुआ तो सोचा कि …….ससुराल में सब सराहेंगे ,
मेरे बनाए भोजन को ………अपनी ऊँगली तक खा जायेंगे ,
मगर “नारी” को सराहना ………मिलती नहीं इस जहान में ,
घर का काम करना है उसका फ़र्ज़ ……….यही लिखा हर किताब में ।

मत सराहो मुझे ……..मुझे आदत है ऐसे जीने की ,
नारी हूँ …….नारी के लिए बनी शराब को पीने की ।

दफ्तर में फाइलों के बीच फँसी ……..मैं दिन-रात कमर कसती रही ,
Boss के सराहने की उम्मीद में ……..कितनी बार Overtime करती रही ,
लेकिन Promotion के वक़्त ……..फिर से “पुरुष” सहपाठी तमगा ले गया ,
मेरा Overtime सिर्फ Co-operation बनकर …………Office Updates में लिखा गया ।

मत सराहो मुझे ……..मुझे आदत है ऐसे जीने की ,
नारी हूँ …….नारी के लिए बनी शराब को पीने की ।

धीरे-धीरे मैं भी समझ गयी ……….कि “नारी” के लिए “सरहाने” जैसा कोई शब्द नहीं ,
उसके द्वारा लिखे “दो शब्द” को …………..पढने तक का भी किसी के पास वक़्त नहीं ,
इसलिए अब आदत हो गयी है मुझे भी ……….ऐसे ही जीने की ,
स्थिरता से भरे मन में ………….ज़हर के दो घूँट पीने की ।

मत सराहो मुझे ……..मुझे आदत है ऐसे जीने की ,
नारी हूँ …….नारी के लिए बनी शराब को पीने की ।

अपने अंतर्मन के भावों को अब मैं ………….यहाँ Internet पर व्यक्त करने लगी ,
उस असफलता को सीने की ……….सफल करने की कोशिश में भटकने लगी ,
अचानक से एक दिन अपने लिए ……..Facebook के Likes को देखकर मैं घबरा गयी ,
कि क्यूँ सराहा मुझे अनजान लोगों ने …….जिनकी सोच में मैं इस तरह समा गयी ।

मत सराहो मुझे ……..मुझे आदत है ऐसे जीने की ,
नारी हूँ …….नारी के लिए बनी शराब को पीने की ।

मैं रोने लगी बहुत जोर से …………..करती हुई ये चीख-पुकार ,
कि “मत सराहो मुझे”……..मैं हूँ इस जग में सबसे बेकार ,
मुझे आदत हो चली है अब ……….ऐसे ही जीने की ,
नारी हूँ …….नारी के लिए बनी शराब को पीने की ।

मत सराहो मुझे ……..मुझे आदत है ऐसे जीने की ,
नारी हूँ …….नारी के लिए बनी शराब को पीने की ।

गर सरहाना ही है ………..तो अपनी आने वाली पीढ़ी में पैदा हो रही ………हर “कन्या” को सरहाना ,
मेरी तरह उनके मन में पैदा हो रहे ……लड़का -लड़की के हर  भेद को मिटाना ,
कि तू “नारी” है ………इसलिए तेरे काम को न सरहाएंगे  हम ,
क्या पता आपके सरहाने से ही ……..अपनी मंजिल पर वो रख देंगे अपने भी “दस कदम” ।।

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