This Hindi poem highlights the pain of an Indian wife in which Her husband made a false implication to prove that she had an extra marital affair with someone.
आपको लगता है क्यूँ ऐसा ……… कि हम बिक हैं चुके ,
अपने तन से ,अपने मन से ……… कहीं टिक हैं चुके ।
आपने साथ निभाने की ……… कसमें खाईं थी ,
फिर क्यूँ आपको लगता है अब ……… कि हम बिक हैं चुके ।
आप दस क़दमों की गहराई को ……… समझते तो अगर ,
आप ना कहते कभी भी ……… कि हम बिक हैं चुके ।
रोज़ घुट-घुट के हमने काटी थीं ……… वो आपकी हिदायतें ,
आज जो दो कदम खुद से चले ……… तो क्या हम बिक हैं चुके ?
ये कैसी है आपकी ……… इस हुकूमत का भरम ,
जब भी दम भरते हैं ज़रा सा ……… तो आप कहते हैं कि हम बिक हैं चुके ।
बिकना जो चाहा होता अगर हमने ……… तो रोक ना पाते आप भी ,
खुद को रोक के किया सितम ……… फिर भी तोहमत लगी कि हम बिक हैं चुके ।
अपनी गर्दिश के सितारों को ……… रोज़ हम देखा किए ,
बिकना भी चाहा अगर तो भी ……… बिक ना सके हम ।
वो खरीदार बिन पैसों के ……… कीमत आँके अपनी ,
मोल-भाव ना आए हमको करना ……… फिर कैसे बिक जाएँ बोलो हम ?
आपको लगता है क्यूँ ऐसा ……… कि हम बिक हैं चुके ,
अपने ख्यालों में ,सवालों में ……… कहीं टिक हैं चुके ।
रोज़ बिकने की बात करके ……… हमें बेच ना डालो ,
जो चंद लम्हे रखे सँभाले ………. उन्हें भेद ना डालो ।
जब भी बिकने लगेंगे हम ……… तो ये समझ लेंगे ,
कि आपको क्यूँ लगा था ऐसा कभी ………. कि हम बिक हैं चुके ।
बिकना-बिकाना तो है ख्यालों का ………. एक रंगीन सफर ,
इसमें हक़ीक़त की कोई भी नहीं ……… अपनी कहीं नज़र ।
दिल को सँभालो अपने ओ यारा …………. कि हम यहीं टिक हैं चुके ,
आपको लगता है क्यूँ ऐसा ……… कि हम बिक हैं चुके ।
आपको लगता है क्यूँ ऐसा ……… कि हम बिक हैं चुके ,
अपने तन से ,अपने मन से ……… कहीं टिक हैं चुके ॥
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