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“Main Phir Aaongi”

Published by praveena mishra in category Hindi | Hindi Story | Suspense and Thriller with tag birthday | doctor | parents | rebirth

“Main Phir Aaongi” is a Hindi, suspense and thriller story of Nisha. At the end, mysterious circumstances creates confusion,whether she is alive or dead.

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Hindi Suspense Story – Main Phir Aaongi
© Anand Vishnu Prakash, YourStoryClub.com

निशा, अपने माँ-बाप की अकेली संतान होने के कारण बड़े लाड-प्यार से पली बढ़ी | उसके पिता,डॉ.दिनेश राय पेशे से cardiologist हैं और माँ,समाज सेविका | व्यस्त जीवन की वजह से, वे दोनों अपनी बच्ची का ज़रा भी ख्याल न रख सके,उनके मुताबिक़ निशा को उन्होंने वो सब कुछ तो दिया ही था, जो हर बच्चे की चाह होती, अच्छे कपड़े,कीमती खिलौने,बड़े स्कूल में दाखिला, पर जो उसे नहीं दे पाए,वह था उनका कीमती वक़्त | इसलिए आज अठारह साल बाद भी उसे हर वक़्त अकेलापन महसूस होता | इन सब में केवल गोपी काका ही उसका सहारा बने, बचपन से लेकर आजतक निशा उन्ही के भरोसे अपनी जिंदगी बिताने पर मजबूर थी |

रात के ग्यारह बज गए,निशा खाने की मेज़ पर पापा और माँ का इंतज़ार कर रही, पर अब तक वे नहीं लौटे | गोपी काका से पूछने पर पता चला, दोनों एक क्लब पार्टी में गए हैं, इसलिए लौटने में देर हो जाएगी | काका के लाख मना करने पर भी निशा उनका इंतज़ार करती रही| ऐसा पहली बार नहीं हुआ, पर आज उनकी इकलौती बेटी निशा का जन्मदिन था,कम से कम आज, साथ समय बिताते |

हर बार की तरह इस बार भी वे निशा के लिए एक कीमती तोहफा लेकर आए,माँ ने गले लगा कर उसे जन्मदिन की बधाइ दी और पापा बोले-
“Happy Birthday Sweetheart!, तुम अब तक सोई नहीं,गोपी काका ने बताया ही होगा, हमें देर हो जाएगी,चलो चलो go and sleep,कल सुबह college भी जाना है ”

निशा ने कितना कुछ सोचा था,माँ-पापा आज उसके साथ समय बिताएंगे, उससे ढेर सारी बातें करेंगे, साथ खाना खायेंगे, पर ऐसा कुछ न हुआ | माँ-पापा Goodnight! कहकर सोने जाने लगे | निशा अपनी भावनाओं के आवेग को रोक न सकी,और जन्मदिन का तोहफा फेंकते हुए बोली-
“आपका तोहफा आप ही को मुबारख| क्यूँ पापा! आपने ऐसा क्यूँ किया? Atleast आज तो मेरे साथ आपलोग वक़्त बिताते | I hate you मम्मी-पापा,I hate you!”

निशा आगे कुछ कहती इससे पहले माँ ने एक ज़ोर का थप्पर उसकी गाल पे जड़ दिया और गुस्से से बोली-

“बहुत बोलने लगी हो आजकल,बड़ों से बात करने की तमीज़ नहीं,अपनी हद में रहो, जाओ! जाकर चुप-चाप सो जाओ ”
गोपी काका हतप्रभ होकर सबकुछ देखते रहे, और निशा सिसकती हुई दौड़कर अपने कमरे में चली गई, आज उसे माँ ने जन्मदिन का काफी अच्छा उपहार दिया| गोपी काका निशा के पीछे गए |

माँ-पापा के इस दुखद व्यवहार से तंग आकर निशा sleeping pills का overdose लेकर खुदखुशी करना चाही, ऐन वक़्त पर गोपी काका पहुँचकर उसे रोक लेते हैं | बड़े प्यार से उसे समझाते हुए बोले-

“न बिटिया! ऐसन पाप कबहूँ न करिह,भगवान् नराज हो जइहें | माई-बाप तोहरा से बहुत प्रेम करत हैं, उ का करिहें, हुनका एतना काम हो जा ला जे तोहरा बखत नहिखे दे पओले, हुनकर मजबूरी समझे के कोसिस करा बबुनि”

निशा ,गोपी काका को पकरकर रोते हुए बोली-

“तो आप ही बताओ काका मै क्या करूं ,मेरी क्या गलती थी, जो मम्मी ने मुझे थप्पर मारा,क्या जन्म देना ही माँ-बाप का फ़र्ज़ है,उसके बाद बच्चा मरे या जिए उससे उनका कोई सरोकार नहीं ? मैं, उन अनाथ बच्चों की तरह जीवन बिताने को मजबूर हूँ, जिनके माता-पिता नहीं होते | आज मैं अपनों को तरसती हूँ क्या सारा जीवन ऐसे ही बीतेगा,या अपनी मौत के बाद मुझे अपनों का साथ नसीब होगा?”
निशा के सवालों का काका के पास कोई जवाब न था |

हमेशा की तरह आज भी निशा के जागने से पहले माँ-पापा अपने काम पर जा चुके हैं | वह भी नहा-धोकर, चाय-नाश्ता लेके अपनी कार से college को निकल पड़ी | उसे गाड़ी चलाने की इच्छा नहीं हो रही,दस मिनट में पहुँचने वाला college का वो रास्ता उसे काफी दूर लग रहा था, अब तक वह कल रात की घटना को याद कर पता नहीं कहाँ खोई थी, की अचानक वह बेहोश हो गई |

कुछ पल बाद होश आने पर, खुद को एक सुनसान अंधरे जंगल में देखकर हैरान रह गई | आखिर कहाँ और कैसे आ गई थी वो ? कार के भीतर से बहार झाँकने पर कोई भी इंसान नज़र न आया, घबराकर वहां से भागना चाही,पर गाड़ी स्टार्ट न हुई | तभी एक छोटे बच्चे के रोने की आवाज़ सुन वह उसकी मदद के लिए जंगले की तरफ दौड़ी,पर ये क्या ? वहां कोई नहीं था,आखिर वो बच्चा कहाँ गया ? इस कशमकश से जूझते हुए,निशा बेचैन हो अपनी गाड़ी वहीँ छोड़ भागने को जैसे ही आगे बढ़ी,फिर से उस बच्चे के रोने की आवाज़,पर इसबार काफी तेज़, मानो वह पास में ही खड़ा हो, वह पीछे मुरकर देखती है,पर कोई न दिखा | निशा को यह सब उसके मन का वहम लगा | अचानक,उसके सामने एक साया खड़ा था,अंधेरे में उसका चेहरा ठीक से नहीं दिख रहा,अपनी टोर्च जलाकर उसे देखना चाही पर वह व्यक्ति उसका टोर्च छीन दूसरी तरफ फ़ेंक देता है | निशा के हाथ-पाँव ठंडे हुए जा रहे थे, घबराकर ज़ोर से चींखी-

“Help! somebody help” पर उसकी चीख सुननेवाला वहां कोई न था | तभी उस सुनसान जंगल में तेज़ हवा का झोंका आया,पेड़-पौधे हिलने लगे,पशु-पक्षी इधर उधर भागने लगे, मानो कोई भयानक तूफ़ान आने वाला हो | कुछ पल बाद, हल्की सी रौशनी दिख पड़ी, वह व्यक्ति अपने हाथ में रखी लालटेन को ऊपर उठाया, उसका चेहरा स्पष्ट दिख पड़ा| एक अधेर उम्र की महिला, जिसका पूरा शरीर काँप रहा था,बाल बिखरे थे, आँखें लाल, और हाथ में एक लाठी के सहारे खरी लालटेन की बत्ती को ऊपर कर,निशा की तरफ अपने कदम बढ़ाते हुए आगे बढ़ी | उस साये को अपनी ओड़ बढ़ता देख निशा बेहोश हो गई | पता नहीं इस भयावह जगह में निशा का क्या होगा ?

कुछ देर पश्चात,निशा को होश आया,वहां का मनमोहक नज़ारा देख वह अचंभित रह गई | एक आलिशान हवेली में, मखमल के बिस्तर पर वह लेटी थी,उसके आस-पास कोई न था, सिवाय तन्हाई और सन्नाटे के | उसे समझ नहीं आ रहा,ये सब क्या हो रहा है? उसे वहां कौन लेकर आया? यह सोच निशा बिस्तर से उठने की कोशिश कर रही थी की, वहां अँधेरा छा गया | किसी महिला की रौंगटे खड़े कर देने वाले शब्द निशा के कानों में गूंजने लगे,जिससे उसका मन बेचैन हुआ जा रहा था | हैरतंगेज़ कर देने वाले वो शब्द थे-

“कहाँ हो भाईसा! आ जाओ……..मैं वापस आ गई अपनी मौत का बदला लेने…..किसी को नहीं छोरुंगी…हाँ, सब को मार डालूंगी….सब को…..”

निशा-“आह! ये मुझे क्या हो रहा है,मेरा सर फटा जा रहा है,ये क्या हो रहा है,उफ!”

उसका सारा शरीर कांप रहा था,उसकी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा,पूरा माहौल बदल गया,कमरे में टंगी तस्वीरें हिलने लगी,उसका बिस्तर हिल रहा था,ऐसा लग रहा था,जैसे प्रलय आया हो |

फिर सब कुछ पहले जैसा शांत हो गया,पर ये क्या,निशा बिस्तर पर नहीं,कहाँ गई वो?क्या हुआ उसके साथ?कहीं कुछ………….
थोरी ही देर में वहां किसीके कराहने की आवाज़ आई, ओह! बेहोशी की हालत में ये तो निशा है | उसके पूरे बदन से रक्त की धार बह रही है,कैसे हुआ ये सब? वह बच तो जाएगी न,उसे कुछ होगा तो नहीं?

होश आते ही निशा अपने सामने कुछ अपरिचित चेहरे को देख हैरान हो गई,वे कौन थे ? क्या कोई इंसान थे,या…………………..
तभी ऊपर से एक आवाज़ आती है-

“गौर से देखो इन्हें, ये तुम्हारे अपने हैं…तुम्हारे माता-पिता, अपना भाई, तुम्हारी बुआ….सब तुम्हारे हैं,याद करो इन्हें,याद करो……………..”

इस आवाज़ की गूंज से निशा का सर फिर से घुमने लगा-

“मैं इन्हें नहीं जानती,आह! नहीं…….मुझे कुछ याद नहीं,कौन हूँ मैं ? ये मुझे क्या हो रहा है……..”

उफ! ये निशा को क्या हो गया,उसे यह भी याद नहीं की वो यहाँ कैसे आई ? माँ-पापा,गोपी काका,उसके दोस्त,उसका घर,कुछ याद न रहा | सामने उसने देखा, वही अधेर उम्र की महिला जो जंगल में मीली थी,उसके सर पर हाथ फेरकर, उसे कहती है-

“ म्हारी दिकड़ी! थारा नाम कामिनी है, मैं थारी बुआसा, याद कर……. जे सब थारे अपने हैं,जे थारा लाडेसर भाईसा, जो थारे को अपनी जान से बढ़कर प्रेम करता था,याद कर छोरी, के हुआ था थारी पिछली जिन्दगी में”

इतना कह वह औरत निशा को एक दुसरे कमरे में ले गई,जहाँ दीवार पे कुछ पुरानी तस्वीरें थीं,जिन्हें देख उसने निशा को बताया,ये उसके माता-पिता की तस्वीर है,ये उसका बड़ा भाई,ये………………….,निशा को अचानक एक अजीबोगरीब तस्वीर देख बड़ा आश्चर्य हुआ,उसमे निशा मृत्युशय्या पर लेटी है, एक पुरुष उसके शरीर पे सफेद कफन डालते हुए रो रहा है | उसे कुछ समझ नहीं आ रहा कौन है वो और ऐसा क्यूँ कर रहा था ?

वह औरत जिसने खुद को निशा की बुआ बताया,उसे उसकी पिछली जिंदगी से जुड़ी घटना उसके सामने व्यक्त करने लगी |

(अब हम निशा को कामिनी के रूप में, उसके भूतकाल की घटना को जानेंगे)

कामिनी मारवार के ठाकुर उदय प्रताप सिंह और उनकी पत्नी कौशल्या देवी की दूसरी संतान थी | जन्म देते ही उसकी माताजी का स्वर्गवास हो गया,पिताजी इस घटना को बर्दाश्त न कर सके,और वह भी जल्द ही भगवान् को प्यारे हो गए | माता-पिता के मौत के पश्चात,कामिनी के बड़े भाईसा,ठाकुर कुंवर प्रताप सिंह ने उसकी परवरिश की| कुंवर प्रताप अपने पिता की तरह दयालु,बलवान और कर्मठ पुरुष थे, नगर के सभी लोग उनके गुणों का बखान करते कभी न थकते,सभी काफी खुश थे उनसे | वे अपनी लाडली बहन से इतना प्रेम करते की रात-दिन उसी के बारे में सोचते,उसकी पसंद-नापसंद को हमेशा तवज्जू देते,उसके शरीर पर एक छोटी-सी खरोंच भी उन्हें बर्दाश्त न होती,इतना ही नहीं उन्होंने विवाह भी इसी वजह से नहीं किया की कहीं उनका प्यार, अपनी लाडली के लिए बंट न जाये |

पर अचानक एक दिन, एक लड़की जिसकी उम्र कामिनी के जितनी थी, ठाकुर के दरबार में गुहार लगाने आई-

“भाईसा, मुझे याद करो मैं तुम्हारी बहन हूँ…….. और जो तेरे घर में मौजूद है वह कुमुदिनी की बेटी है,जो बरसो पहले तुम्हारे घर में नौकरानी थी,और आज वह इस दुनियाँ में नहीं…………| धोखाधारी और गद्दारी के कारण तुम्हारे पिता ने कुमुदिनी के पति को फांसी सज़ा सुनाई | जब मेरा जन्म हुआ उसी वक़्त उसने भी एक बच्ची को जन्म दिया, बदले की भावना से कुमुदिनी, चुपके से अपनी बच्ची को तुम्हारी माँ के पास रख, मुझे उठाकर ले गई |

भोले स्वाभाव के कारण कुंवर उस लड़की की बातों पर यकीन कर उसकी तरफ बढ़ने की कोशिश करते,लेकिन तभी उनका करीबी दोस्त व अंगरक्षक, काफित, रोक लेता है और समझाया,कानों से सुनी बातों से ज्यादा, आँखोंदेखी पर यकीन किया जाये | तबतक के लिए उस लड़की को वापस भेज दिया गया, और उसकी कही बात की पुष्टि के लिए छानबीन शुरू हुई |

एक दिन शाम के समय,ठाकुर कुंवर, कफित के साथ सैनिकों को लेकर शिकार पर गए,जहाँ रास्ते में उन्होंने उस लड़की को जंगल की तरफ जाते हुए देखा,और उसका पीछा किया | कुछ पल बाद,वो लड़की एक झोपड़े के अंदर गई, कफित और कुंवर उसकी खिड़की से अंदर झांकते हैं | वहां वो लड़की,किसी बूढी औरत से हंसकर बातें कर रही थी-

“अब तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी होने वाली है माँ, उन ठाकुरों से मेरे पिताजी के मौत का बदला हम जल्द ही लेंगे, मैंने ऐसा पासा फेंक, कुंवर की दुख्तिरथ पर हाथ रख दिया, अब उन ठाकुरों का विनाश हमारे ही हाथों होना है”, इतना कह वे दोनों हंसने लगते हैं |

बातें सुन, कुंवर और काफित को अब पक्का यकीन हो गया की वो लड़की झूठ बोल रही थी | परन्तु,उन्हें ये समझ नहीं आ रहा, अगर कुमुदिनी मर गई है तो ये औरत कौन है, जिसे वो लड़की माँ कह रही? दोनों अपनी तलवार निकाल कर अंदर गए | उन्हें देख दोनों महिलाएं घबरा गयीं और भागने की कोशिश करती हैं, तुरंत सैनिकों के घेरे में आ गयीं | पूछताछ करने पर उस बूढ़ी औरत ने जो बातें बताई,उससे सब आश्चर्यचकित रह गए-

“ मैं कुमुदिनी, मरी नहीं जिंदा हूँ, और ये तुम्हारी बहन नहीं, मेरी बेटी किशोरी है | मैं खुश हूँ की इतने वर्षों में जो काम मैं न कर सकी वो मेरी बच्ची ने कर दिखाया,और अपने पिता की मौत का बदला लेना कोई गलत काम नहीं”

इतना कह,उसकी बेटी,किशोरी तुरंत,कुंवर के सीने पे अपनी बन्दूक रख,निशाना लगाने की कोशिश करती,पर कुमुदिनी उसे रोक कहती-

“नहीं बेटी! हमें इसे इतनी आसान मौत नहीं देनी, कुछ ही देर में हमारे आदमी इसकी जान से प्यारी बहन को लेकर यहाँ पहुँचनेवाले हैं, दोनों भाई-बहन को इतना तरपाकर मारेंगे की इनकी सात पुश्ते याद रखेंगी”

कुछ ही पल में, कुमुदिनी के आदमी, कामिनी को लेकर वहां पहुँच गए | अपने भाई के ऊपर बन्दूक तना देख,कामिनी चिल्लाती है-

“ छोर दो! मेरे भाईसा को,इनके बदले तुम मेरी जान ले लो”

कामिनी को नीचे धक्का देते हुए,कुमुदिनी बोली-

“चिंता मत कर छोरी,तुझे भी तेरे भाईसा के साथ परलोक भेज देंगे”

जैसे ही किशोरी कुंवर पर गोली चलाती है,कामिनी,खुद को उनके चंगुल से छुराकर अपने भाईसा को एक तरफ धकेलती हुई, खुद बन्दूक की गोली का निशाना बन गई| कफित और उसके सैनिक, किशोरी और कुमुदिनी को गोलियों से छल्ली कर देते हैं | बहन को अपनी गोद में लिटाकर, कुंवर असहाय से रोने लगे, उन्हें यकीन नहीं हो रहा की क्या सचमुच कामिनी को गोली लग गई-

“ओह! कामिनी ये तूने क्या किया ? अब मैं किसके भरोसे जियूँगा, मैं भी तेरे साथ इस दुनियां को छोर दूंगा”

कामिनी खून से लथपथ बेहोशी की हालत में अपने भाईसा को समझती है-

“ न भाईसा न! ये जीवन आप ही का दिया था,सो आपके किसी काम आया, इससे बड़ी ख़ुशी मेरे लिए और क्या हो सकती है | अपनी जान देने की बात गलती से भी मत करना, हमारा पूरा नगर आप ही के भरोसे पर टिका है,इन्हें कौन देखेगा………..अब मुझे जाने की आज्ञा दो भाईसा, अपना ख्याल रखना, मैं फिर आऊँगी………………………..”

इतना कह कामिनी दम तोड़ देती और अपने भाई को हमेशा के लिए छोरकर चली गई | इस तरह निशा उर्फ़ कामिनी, मृत्यु के पश्चात् जीवन के आनंद को अनुभव करती है |

पर ये क्या!, हॉस्पिटल के वार्ड नंबर ६४ में एक लड़की oxygen mask लगाये बिस्तर पे लेटी है, उसके आस-पास, मम्मी-पापा और गोपी काका, सब बैठे हैं | वो लड़की और कोई नहीं, निशा थी |

पापा के मुताबिक, जब निशा college जा रही थी, उसकी गाड़ी एक ट्रक से टकराकर खाई में जा गिरी, और निशा वहीँ घायल हो गई | सर पे गहरी चोट लगने से,वो छे महीने से कोमा में थी, भगवान् की कृपा से आज, उसे होश आया है |

क्या निशा ने कोई सपना देखा………….. या वो सचमुच, हकीकत से रूबरू होकर वापस आई है | वो निशा थी या कामिनी? कहीं ये कामिनी का पुनर्जन्म तो नहीं? “ मैं फिर आऊँगी……………………….”

END

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